विश्व भर में कोविड-19 की वैक्सीन पर काम चल रहा है। इस बीच, एक अध्ययन में कहा गया है कि अमेरिकी बायो टेक कंपनी मॉडर्ना की कोरोना वायरस वैक्सीन ने एक मजबूत प्रतिरक्षा क्षमता विकसित की है। साथ ही कोरोनावायरस को बंदरों की नाक तथा फेफड़ों में संक्रमण फैलाने से रोक दिया।
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के एक अध्ययन में यह बात कही गई है। इस अध्ययन में कहा गया है कि इस वैक्सीन ने कोरोनावायरस को बंदर की नाक में संक्रमण फैलाने से रोका है और यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि क्योंकि इससे दूसरों में संक्रमण फैलने का खतरा कम हो जाता है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के टीके का ट्रायल जब बंदरों पर किया गया तो ठीक इसी तरह के नतीजे देखने को नहीं मिले थे। हालांकि, इस वैक्सीन ने वायरस को जानवरों के फेफड़ों में जाने और बहुत बीमार होने से रोका दिया था।
मॉडर्ना की जानवरों पर अध्ययन में कहा गया है कि 8 बंदरों के तीन समूहों को प्लेसीबो या फिर वैक्सीन के दो अलग-अलग डोज-10 माइक्रोग्राम और 100 माइक्रोग्राम- दिए गए। जिन बंदरों को टीके लगाए गए थे, सभी ने वायरस को समाप्त करने वाले एंटीबॉडीज का अच्छी खासी मात्रा में उत्पादन किया, जो सार्स कोव-2 वायरस से मुकाबला करते हैं।
गौरतलब है कि दोनों तरह की खुराक लेने वाले बंदरों में एंटी बॉडीज का स्तर कोरोना से ठीक हुए इंसानों के एंटीबॉडीज से ज्यादा था। इस अध्ययन के लेखकों ने बताया कि यह वैक्सीन विभिन्न तरह की प्रतिरक्षा कोशिकाओं को विकसित भी करती है, जिन्हें टी-सैल के नाम से जाना जाता है। यह कोशिकाएं पूरे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने में सहायता करती हैं।
हालांकि, चिंता की बात यह है कि विकसित किए जा रहे ये टीके बीमारी को दबाने के बजाय उन्हें बढ़ाकर उल्टा ब्राभव्य भी कर सकते हैं।
बंदरों को दूसरा इंजेक्शन देने के 4 सप्ताह बाद उन्हें सार्स-कोव-2 वायरस के संपर्क में लाया गया। वायरस को बंदर की नाक और एक ट्यूब के जरिये सीधे फेफड़ों में पहुंचाया गया। दो दिन बाद, आठ में से सात बंदरों के फेफडों में वायरस का फिर से संक्रमण नहीं पाया है। इनमें ज्यादा और कम दोनों डोज लेने वाले बंदर शामिल हैं।
इसके उलट, बंदरों के जिस ग्रुप को प्लेसीबो दिया गया तो उनमें वायरस मौजूद था। वायरस के संपर्क में आने के दो दिन बाद भी जिन बंदरों को हाईडोज ग्रुप में रखा गया था, उनकी नाक में वायरस के पता लगाने योग्य स्तर नहीं निकला है।