पिछले 10 साल के दौरान बनी नेपाल की आठवीं सरकार की अगुवाई करने के लिए पिछले अक्तूबर में प्रधानमंत्री बने के पी ओली ने इस्तीफा दे दिया। गठबंधन सरकार से माओवादियों द्वारा समर्थन वापस ले लिए जाने के बाद ओली अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे थे। अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के लिए तैयार बैठे सांसदों से 64 साल के ओली ने कहा, मैंने इस संसद में एक नए प्रधानमंत्री के चुनाव का रास्ता साफ करने का फैसला किया है और अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया है। ओली ने इस्तीफा उस वक्त दिया जब सत्ता में साझेदार दो अहम पार्टियों, मधेसी पीपुल्स राइट्स फोरम-डेमोक्रेटिक और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने नेपाली कांग्रेस और प्रचंड की अगुवाई वाली सीपीएन-माओइस्ट सेंटर की ओर से उनके खिलाफ पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने का फैसला किया। इन पार्टियों ने ओली पर आरोप लगाया था कि उन्होंने पिछली प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं की। ओली की जगह लेने के लिए प्रबल दावेदार बताए जा रहे माओवादी प्रमुख प्रचंड ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया था कि वह अहंकारी और आत्मकेंद्रित हैं। उन्होंने कहा था, इससे उनके साथ काम करते रहना संभव नहीं रह गया था।
नेपाल की 598 सदस्यों वाली संसद में ओली के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को नेपाली कांग्रेस के 183, सीपीएन-एमसी के 70 और सीपीएन-यूनाइटेड के तीन सांसदों का समर्थन प्राप्त था। संसद में तीनों पार्टियों के कुल 292 सांसद हैं। ओली की सीपीएन-यूएमएल के अभी 175 सांसद हैं, जो विश्वास प्रस्ताव जीतने के लिए जरूरी 299 सीटों से काफी कम हैं। संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए ओली ने प्रचंड एवं अन्य की ओर से लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने देश के नए संविधान का विरोध कर रहे मधेसियों, जिनमें ज्यादातर भारतीय मूल के हैं, की शिकायतों के निदान के लिए वार्ता का समर्थन किया। मधेसियों ने कुछ महीने पहले प्रदर्शन शुरू किए थे जिससे भारत से वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित हुई थी। ओली ने कहा, आंदोलनकारी मधेसी पार्टियों की मांगों के मामले का निदान शांतिपूर्ण तरीकों से किया जा सकता है और उनकी मांगें पूरी करने के लिए संविधान में संशोधन किया जा सकता है। ओली ने देश को पीछे की तरफ खींचने के लिए रची जा रही साजिश के खिलाफ भी लोगों को आगाह किया। सीपीएन-यूएमएल के नेता ओली ने कहा, इस वक्त सरकार में बदलाव का खेल रहस्यमय है। उन्होंने कहा कि उन्हें अच्छा काम करने की सजा दी गई। माओवादियों ने ओली को सत्ता से बेदखल करने का फैसला दो माह पहले तब किया जब उन्होंने कहा कि वह मधेसियों की चिंताएं दूर करेंगे और पिछले साल भूकंप में तबाह हुए घरों को फिर से बनाएंगे।
पिछले साल सितंबर में नए संविधान को अपनाने के बाद से ही नेपाल में राजनीतिक संकट कायम है। मधेसी समुदाय नए संविधान का विरोध कर रहा है, क्योंकि उन्हें आशंका है कि इससे देश को सात प्रांतों में बांट कर उन्हें हाशिये पर डाल दिया जाएगा। करीब पांच महीने चले मधेसियों के विरोध-प्रदर्शन के कारण नेपाल में जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति ठप पड़ गई थी। पुलिस के साथ झड़प में 50 से ज्यादा लोगों के मारे जाने के बाद यह प्रदर्शन फरवरी में समाप्त हुआ था। नेपाल ने मधेसी संकट के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था। हालांकि, भारत ने इस आरोप को खारिज किया है। अपने संबोधन में ओली ने पिछले हफ्ते काठमांडो में हुई एमिनेंट पीपुल्स ग्रुप की बैठक का जिक्र किया जिसमें 1950 की नेपाल-भारत शांति एवं मैत्री संधि सहित नेपाल एवं भारत के बीच हुई विभिन्न संधियों एवं समझौतों की समीक्षा के लिए चर्चा हुई। उन्होंने कहा, नेपाल-चीन संबंध और नेपाल-भारत संबंध खास हैं, जिनकी तुलना एक-दूसरे से नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि उनके प्रयासों से किसी एक देश पर नेपाल की आर्थिक निर्भरता कम हुई है। ओली ने यह भी कहा कि हम अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे रिश्ते चाहते हैं, लेकिन हम अपने अंदरूनी मामलों में दखल स्वीकार नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि नए संविधान के लागू होने में रोड़े अटकाने की खातिर उनकी सरकार गिराने की कोशिशें की गई। उन्होंने चेताया कि देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।