पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आसिया बीबी को ईशनिंदा मामले में बरी करने के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही आसिया के पाकिस्तान छोड़कर जाने की आखिरी कानूनी अड़चन भी दूर हो गई। ईसाई महिला आसिया बीबी को ईशनिंदा मामले में पहले मौत की सजा सुनाई गई थी।
चीफ जस्टिस आसिफ सईद खोसा की अगुआई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने उनकी सजा को पिछले साल 31 अक्टूबर को पलट दिया था। इसके बाद कट्टर इस्लामी पार्टी तहरीक-ए-लब्बाइक पाकिस्तान के नेतृत्व में तीन दिनों तक व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ था।
जस्टिस खोसा ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “मेरिट के आधार पर इस याचिका को खारिज किया जाता है। आप सुप्रीम कोर्ट के फैसले में एक भी गलती नहीं बता सकते हैं।” उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट के फैसले में एक भी त्रुटि स्थापित करने में असफल रहे। अदालत ने उनकी याचिका में सुनवाई के लिए इस्लामी विद्वानों को भी शामिल करने की मांग खारिज कर दी।
जस्टिस खोसा ने कहा, “क्या इस्लाम यह कहता है कि अगर अपराध साबित नहीं हुआ है, तो भी किसी को सजा देनी चाहिए।” उन्होंने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि इस्लाम की मर्यादा को ठेस न पहुंचाएं और इस मामले से पूरी दुनिया में पाकिस्तान छवि को नुकसान न पहुंचाएं।
आसिया बीबी के वकील सैफुल मलूक चरमपंथियों से अपने जान के खतरे के कारण तीन महीने यूरोप निर्वासन के बाद सुनवाई के लिए पिछले सप्ताह लौटे थे। इस फैसले के बाद मलूक ने कहा, “आसिया बीबी अब एक आजाद महिला हैं और वह एक खूबसूरत देश में रहेंगी।”
उन्होंने यह नहीं बताया कि आसिया कहां जाने वाली हैं। हालांकि, उन्होंने बताया कि उनकी दो बेटियों ने हाल में कनाडा गई हैं।
आठ साल तक जेल में रहीं
बता दें कि पांच बच्चों की मां बीबी ने मौत की सजा मिलने के बाद आठ वर्षों तक मुल्तान जेल में बिताए। पिछले साल ही उन्हें रिहा किया गया था। 2009 में पैगंबर मोहम्मद की निंदा करने के आरोप में सजा सुनाई गई थी। अदालत ने 2010 में उन्हें सजा सुनाई थी। उन्होंने लाहौर हाई कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दाखिल की, लेकिन वहां जीत नहीं मिली। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया था।