मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने ताशकंद में मुलाकात की जबकि वहां से लगभग 5,000 किलोमीटर दूर दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में एनएसजी सदस्यों की रात्रिभोज के बाद की विशेष बैठक में भारत का मामला उठा हालांकि यह औपचारिक एजेंडे में नहीं था। एनएसजी के सदस्य देश इसमें भारत के प्रवेश को लेकर विभाजित हैं क्योंकि भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
समझा जाता है कि भारत की सदस्यता के मुखर विरोधी चीन के अलावा तुर्की, ऑस्ट्रिया, न्यूजीलैंड और आयरलैंड ने भी यह रुख अख्तियार किया कि भारत के मामले में कोई अपवाद नहीं बनाया जा सकता। जाहिर है कि मोदी का अनुरोध चीन के रुख में बदलाव नहीं ला पाया लेकिन एनएसजी की दो दिवसीय पूर्ण बैठक के आखिरी दिन कल क्या होता है उसे देखना फिलहाल बाकी है।
हालांकि, एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले भारत जैसे देशों को सदस्य बनाने का मुद्दा एजेंडा में नहीं था, लेकिन समझा जाता है कि जापान और कुछ अन्य देशों ने उदघाटन सत्र में इस विषय को उठाया जिसके चलते रात्रिभोज के बाद की विशेष बैठक में इस पर विचार किया गया। भारत के मामले पर जोर देने के लिए विदेश सचिव एस. जयशंकर के नेतृत्व में भारतीय राजनयिक सोल में हैं। हालांकि, भारत की सदस्यता के अभाव में वे पूर्ण बैठक में प्रतिभागी नहीं हैं। लेकिन उन्होंने इस सिलसिले में कई प्रतिनिधिमंडलों के नेताओं से मुलाकात की।
पूर्ण बैठक में 48 सदस्य देशों के करीब 300 प्रतिभागी शरीक हो रहे हैं जिसके पहले आधिकारिक स्तर का सत्र 20 जून को शुरू हुआ था। इससे पहले भारत की सदस्यता के लिए चीन का समर्थन मांगते हुए मोदी ने शी से भारत के आवेदन पर एक निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करने का अनुरोध किया। ये दोनों नेता शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) सम्मेलन के लिए ताशकंद में हैं।
मोदी ने आग्रह किया कि नई दिल्ली के मामले का उसके खुद के गुण-दोष पर फैसला किया जाना चाहिए और सोल में एक आमराय बनाने में चीन को योगदान देना चाहिए। हालांकि, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने संकेत दिया कि शी ने तत्काल कोई वादा नहीं किया है। साथ ही, उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा, आप जानते हैं कि यह एक जटिल और नाजुक प्रक्रिया है। हम इंतजार कर रहे हैं कि सोल से किस तरह की खबर आती है। मैं इस पर कोई और टिप्पणी नहीं करूंगा।
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता कितनी महत्वपूर्ण है यह इस बात से पता चलता है कि मोदी और शी की बैठक में यही विषय छाया रहा। इस समूह की सदस्यता भारत को परमाणु प्रौद्योगिकी के व्यापार में सक्षम बनाएगा। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत ने एनएसजी की सदस्यता की भारत और पाकिस्तान की कोशिश को एक-दूसरे से अलग करने की जरूरत के बारे में बात की है, उन्होंने कहा,...आपने सुना कि प्रधानमंत्री ने शी चिनफिंग से कहा कि चीन को अवश्य ही भारत के आवेदन का इसके गुण दोष के आधार पर एक निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ आकलन करना चाहिए तथा चीन को सोल में उभरने वाली आमराय में शामिल होना चाहिए।
बाद में एक संवाददाता सम्मेलन में मोदी के आग्रह पर चीन के रुख के बारे में पूछा गया तो चीनी अधिकारी ने कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। चीन एनएसजी की भारत की सदस्यता के लिए एनपीटी पर हस्ताक्षरकर्ता होने की अर्हता के अपने रुख पर अडिग है और भारत के मामले को पाक से जोड़ रहा है जिसकी वह हिमायत कर रहा।
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
			 
                     
                    