बैंकॉक में आयोजित आरसीईपी यानी रीजनल कॉम्प्रेहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐन वक्त पर घोषणा की कि भारत इसमें शामिल नहीं होगा। इस समूह के माध्यम से चीन अन्य देशों के बाजार में अपने पैर पसारने और हित साधने में जुटा था। पीएम मोदी ने बैठक में यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीयों के हितों को ताक पर नहीं रखा जाएगा।
कई राजनीतिक दलों ने किया इसका विरोध
दरअसल, आरसीईपी समझौता 10 आसियान देशों (इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया, चीन, जापान, फिलिपीन्स, कम्बोडिया, लाओस, ब्रूनेई, म्यांमार और सिंगापुर) और 6 अन्य देशों (भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया, चीन, ऑस्ट्रेलिया) के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता है। इस समझौते के तहत प्रस्ताव था कि यह 16 देश एक दूसरे को टैक्स में राहत से लेकर कई अन्य सुविधाएं देंगे। मगर भारत में कई राजनीतिक दलों ने यह कहकर इसका विरोध किया कि इससे भारतीय बाजार चीन और दूसरे देशों के माल से पट जाएंगे और घरेलू निर्माताओं को नुकसान होगा।
इसे विश्व की सबसे बड़ी डील कहा जा रहा था
इस समझौते को विश्व की सबसे बड़ी डील कहा जा रहा था। इसे चीन-अमेरिका ट्रेड-वॉर से भी जोड़कर देका जा रहा है। दरअसल अमेरिका से व्यापार युद्ध में मात खा रहा चीन इस समझौते को जल्द से जल्द पारित कराने को उतावला था। भारत सहित आरसीईपी के अन्य आसियान देशों का मत था कि इस पर विचार-विमर्श किया जाना चाहिए और 2020 तक इसे लंबित किया जाए ताकि इसपर विस्तृत चर्चा हो सके।
भारतीय बाजार को भारी क्षति पहुंचने की आशंका
मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया था कि इस समझौते से भारतीय बाजार को भारी क्षति पहुंचने की आशंका है और हो सकता है कि भारतीय बाजारों में चीनी सामान की बाढ़ आ जाए। ऐसे में इसका सीधा नुकसान भारत के छोटे कारोबारियों पर पड़ेगा। साथ ही इसे अमेरिका के ट्रांस पैसेफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) का चीन की ओर से प्रति-उत्तर के रूप में देखा जा रहा है। जब डोनाल्ड ट्रम्प ने इस टीपीपी से अमेरिका को अलग कर दिया तब एशियाई देशों के मुक्त व्यापार के लिए आरसीईपी का गठन किया गया था। कहा जा रहा था कि यह सिर्फ टैरिफ फ्री ट्रेड यानी कर मुक्त व्यापार के लिए है।
2012 से ही चल रही थी आरसीईपी पर चर्चा
भारत ने इस समझौते पर हस्ताक्षर से पूर्व कुछ शर्तें रखी थीं जिसके बाद इसके लंबित होने की आशंका थी मगर बाद में भारत ने उसे रद्द कर दिया। बता दें कि पीएम मोदी ने पहले ही साफ कर दिया था कि भारत समावेशी और संतुलित आरसीईपी के समझौते पर ही सहमत होकर इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ेगा। रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप यानी आरसीईपी पर चर्चा 2012 से ही चल रही थी।