असैन्य परमाणु समझौते ने अमेरिका के साथ भारत के समग्र जुड़ाव को बदल दिया और इसने विशेष रूप से उच्च प्रौद्योगिकी एवं रक्षा क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी का संबंध बनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त किया।

दोनों नेताओं के संयुक्त बयान के अनुसार, ‘‘ट्रंप और मोदी ने बड़े पैमाने पर स्थानीयकरण और संभावित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत में अमेरिका द्वारा डिजाइन किए गए परमाणु रिएक्टरों के निर्माण के लिए मिलकर काम करने की योजनाओं के साथ आगे बढ़ते हुए अमेरिका-भारत 123 असैन्य परमाणु समझौते को पूरी तरह से साकार करने की अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की।’’

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी को केंद्रीय बजट पेश करते हुए भारत के परमाणु दायित्व कानून के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन की योजना की घोषणा की।

भारत के परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 के कुछ खंड असैन्य परमाणु समझौते के कार्यान्वयन की दिशा में आगे बढ़ने में बाधक बनकर उभरे हैं।

बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने संसद में बजट सत्र के दौरान परमाणु रिएक्टरों के सदंर्भ में परमाणु ऊर्जा अधिनियम और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम (सीएलएनडीए) में संशोधन करने की भारत सरकार की हालिया घोषणा का स्वागत किया।

बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने सीएलएनडीए के अनुसार द्विपक्षीय व्यवस्था स्थापित करने का निर्णय लिया है, जो नागरिक दायित्व के मुद्दे को संबोधित करेगा और परमाणु रिएक्टरों के उत्पादन और स्थापना में भारतीय एवं अमेरिकी उद्योग के सहयोग को सुविधाजनक बनाएगा।

वर्ष 1962 का परमाणु ऊर्जा अधिनियम, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में निजी क्षेत्र द्वारा निवेश को प्रतिबंधित करता है। प्रस्तावित संशोधन से इस प्रावधान को हटाने की उम्मीद है।

अमेरिका ने जनवरी में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर) और इंडियन रेअर अर्थ्स (आईआरई) पर प्रतिबंध हटा दिए। इस कदम को अमेरिका द्वारा भारत के साथ असैन्य परमाणु सहयोग पर आगे बढ़ने के इरादे के रूप में देखा गया।

भारत और अमेरिका ने जुलाई 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ बैठक के बाद असैन्य परमाणु ऊर्जा में सहयोग करने की महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की।

ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौते को अंततः कई वार्ताओं के बाद लगभग तीन साल बाद बंद कर दिया गया।

इस समझौते से अमेरिका को भारत के साथ असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने की अनुमति देने का मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद थी।

हालांकि, भारत में सख्त दायित्व कानूनों सहित कई कारणों से अपेक्षाकृत सहयोग आगे नहीं बढ़ सका।

जनरल इलेक्ट्रिक और वेस्टिंगहाउस जैसे अमेरिकी परमाणु रिएक्टर निर्माताओं ने भारत में परमाणु रिएक्टर स्थापित करने में गहरी रुचि दिखाई थी।

पिछले कुछ वर्षों में भारत छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) में सहयोग के लिए अमेरिका और फ्रांस सहित कई देशों के साथ बातचीत कर रहा है।