सदन की विदेश मामलों की कमेटी के अध्यक्ष एड रॉयस ने कहा, 2012 में मलाला यूसुफजई पर हमला करने वाले 10 आतंकियों में से आठ को गोपनीय तरीके से जेल से रिहा कर दिया गया है।
रॉयस ने एक बयान में कहा, ‘इससे सभी पाकिस्तानी लड़कियां जो शिक्षित होने का सपना देखती हैं, उनमें संदेश जाएगा कि उनकी सरकार उनकी रक्षा नहीं करेगी।
विदेश विभाग ने कहा कि इस बारे में पाकिस्तानी सरकार से और ज्यादा विवरण मांगा गया है। विदेश विभाग की प्रवक्ता मैरी हर्फ ने कहा, ‘इस बारे में हम और सूचना पाने की कोशिश कर रहे हैं।’
पाकिस्तान खुद पर आतंकवाद न फैलाने की दुहाई बड़े जोर-शोर से देता रहता है। भारत के हर दावे को खारिज करता है कि उसके देश को आतंक फैलाने वालों से कोई प्रेम नहीं है। लेकिन एक बार फिर उसका चेहरा बेनकाब हो गया है।
एक स्कूली बच्ची मलाला युसुफजई पर खैबर पख्तूनवा प्रांत के स्वात इलाके में कुछ तालिबानियों ने सन 2012 में 15 साल की एक बच्ची को इसलिए गोली मार दी थी क्योंकि वह लड़कियों को स्कूल जाने का पक्ष ले रही थी। हमले के बाद चौतरफा घिरे पाकिस्तान ने उस बच्ची को इलाज के लिए लंदन भेजा और वहां से भी उसने पढ़ाई के प्रति अपनी मुहिम जारी रखी।
इसी बच्ची को नोबेल पुरस्कार मिला और पूरी दुनिया में वह लड़कियों की शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ने वाली लड़की के रूप में प्रसिद्ध हो गई। उन हमलावरों को छोड़ देना पाकिस्तान की नीयत को दर्शाता है।
पाकिस्तान की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मलाला पर हमले के दोषी ठहराए जाने के बाद आतंकवाद निरोधी अदालत ने अप्रैल में दस पाकिस्तानी तालिबान आतंकवादियों को 25 साल की सजा सुनाई थी। लेकिन दोषी केवल दो ही लोगों को सिद्ध किया जा सका। साथ ही मुकदमे की सुनवाई बंद कमरों में हुई, जिससे संदेह पैदा हुआ।
पाकिस्तानी उच्चायोग के एक प्रवक्ता मुनीर अहमद ने बताया कि आठ लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। स्वात में जिला पुलिस प्रमुख सलीम मेरवात ने अलग से पुष्टि की कि केवल दो लोगों को दोषी ठहराया गया है।