भट्टाराई ने कहा कि शांति प्रक्रिया को पूरा करने के लिए नेपाल में भारत की एक भूमिका है, प्रत्यक्ष राजनीतिक दखल के रूप में नहीं बल्कि सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने के लिए ताकि नेपाल में राजनीतिक दल एक साथ आएं और संविधान को सबके लिए स्वीकार्य बनाएं। यह भारत के भी राष्ट्रीय हित में होगा।
नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत-मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पर अपने दावों से मुकरने का आरोप लगाते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि मौजूदा गतिरोध क्रांति के अधिकार और चुनाव के जनादेश के बीच विरोधाभास की उपज है।
उन्होंने कहा, संविधान सभा, जो एक प्रक्रिया है, को उस बेसिक एजेंडा को मानना होगा, जिस पर क्रांति और बाद में मधेसी आंदोलन के दौरान सहमति हुई थी, जिसमें संघवाद का मामला शामिल है। वह सिर्फ इसलिए इसके खिलाफ नहीं जा सकते क्योंकि वह बहुमत में हैं।
भट्टाराई की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन, जो बातचीत में मध्यस्थता कर रहे थे, ने कहा, भारत आगे भी इस बात पर असमंजस में रहेगा कि नेपाल का समर्थन करे और उससे कुछ दूरी भी बनाकर रखे। भारत के सामने एक सवाल हमेशा खड़ा रहेगा कि नेपाल की मदद किस हद तक की जाए।