भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते पर बुधवार से दो दिवसीय बातचीत शुरू होगी। इसके लिए भारतीय जल आयोग का एक प्रतिनिधिमंडल सिंधु जल संधि के विभिन्न पहलुओं पर अपने समकक्षों से महत्वपूर्ण बातचीत करने के लिए मंगलवार को पाकिस्तान पहुंचा। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के पद संभालने के बाद दोनों देशों के बीच यह पहला द्विपक्षीय संवाद होगा।
पाकिस्तान जल आयुक्त सैयद मेहर अली शाह और अतिरिक्त आयुक्त शेराज जमील ने वाघा सीमा से होकर यहां पहुंचने पर जल आयुक्त पी के सक्सेना नीत नौ सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगवानी की। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा, "जल आयोग की बैठक काफी लंबे वक्त से नहीं हुई थी। ये पानी की समस्या से जुड़ा मुद्दा है। ये केवल भारत-पाकिस्तान के बीच का नहीं बल्कि क्षेत्र का मामला है। हम एक सूखे इलाके में रहते हैं। हम पर पानी की कमी का असर पड़ सकता है।''
पाकिस्तान-भारत स्थायी सिंधु आयोग की अंतिम बैठक नयी दिल्ली में मार्च में हुई थी जिसमें दोनों पक्षों ने 1960 के सिंधु जल संधि के तहत जल प्रवाह तथा इस्तेमाल किये जाने वाले जल की जानकारी साझा की थी।
शाह ने कहा कि पाकिस्तान ने चेनाब नदी पर एक हजार मेगावाट पाकल दुल और 48 मेगावाट लोवर कलनाई पनबिजली परियोजनाओं पर आपत्ति जताई थी और वार्ता में इस विषय पर विस्तृत चर्चा होगी।
सिंधु जल समझौता क्या है?
भारत-पाकिस्तान के बीच पानी के बंटवारे के मुद्दे पर 9 साल तक चली बातचीत के बाद वर्ल्ड बैंक की सहायता से सिंधु जल समझौता हुआ था। इस पर 19 सितंबर, 1960 को प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में हस्ताक्षर किए थे। इसमें 6 नदियों ब्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी के बंटवारे और उपयोग करने का अधिकार शामिल है। इस समझौते में वर्ल्ड बैंक मध्यस्थ की भूमिका में था। इस समझौते पर इसलिए दस्तखत किए गए, क्योंकि सिंधु बेसिन की सभी नदियों का उद्गम भारत में हैं (सिंधु और सतलुज हालांकि चीन से निकलती हैं)। समझौते के तहत भारत को सिंचाई, परिवहन और बिजली पैदा करने के लिए इन नदियों का उपयोग करने की अनुमति है। वहीं, पाकिस्तान को डर था कि भारत के साथ यदि जंग होती है, तो वह पाकिस्तान में सूखे का खतरा पैदा कर सकता है।