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पाकिस्तान के इस राजनयिक ने माना, ग्वादर से अमेरिका, खाड़ी को भी दिक्कत

अमेरिका में पाकिस्तान के एक पूर्व दूत का दावा है कि चीन द्वारा 46 अरब डॉलर की लागत से आर्थिक गलियारा पहल के तहत विकसित किए जा रहे पाकिस्तान के रणनीतिक बंदरगाह से न केवल भारत, बल्कि अमेरिका, ईरान और खाड़ी के अन्य देशों को भी दिक्कत होगी।
पाकिस्तान के इस राजनयिक ने माना, ग्वादर से अमेरिका, खाड़ी को भी दिक्कत

अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी के अनुसार, अगर ग्वादर का रखरखाव चीन करने जा रहा है या उसकी यहां सैन्य तथा नौसैन्य मौजूदगी रहती है तो इससे केवल भारत को ही मुश्किल नहीं होगी। इससे खाड़ी, ईरान, अन्य देशों तथा अमेरिका तक को दिक्कत होगी और तेल आपूर्ति तथा खाड़ी देशों के साथ व्यापार पर असर होगा। हक्कानी ने कहा कि ग्वादर को इस्लामाबाद हमेशा से ही एक रणनीतिक सैन्य स्टेशन समझता रहा है।

चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा वास्तव में सड़कों, रेलवे और ऊर्जा परियोनाओं का एक नियोजित नेटवर्क है जो दक्षिणी पाकिस्तान और ग्वादर बंदरगाह को चीन के अशांत शिनजियांग उइगुर स्वायत्तशासी क्षेत्र से जोड़ता है। चूंकि यह पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है इसलिए भारत ने इस परियोजना को लेकर आपत्ति जताई है। हक्कानी ने कहा, ‘पाकिस्तान के पास बड़े नौसैन्य स्टेशन के लिए संसाधन नहीं हैं। लेकिन पाकिस्तान का पूरा रणनीतिक प्रारूप भारत केंद्रित है। यही वजह है कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का विरोध करता है।’

उन्होंने कहा, यह इसलिए नहीं है कि उसे सुरक्षा परिषद में नए सदस्यों को स्थायी सदस्य बनाए जाने में आपत्ति है बल्कि वह नहीं चाहता कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बने।

दूसरी ओर नई दिल्ली स्थित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के उपाध्यक्ष समीर सरन ने एक शीर्ष अमेरिकी विचार समूह ‘द हडसन इन्स्टीट्यूट’ द्वारा आयोजित एक गोलमेज में कहा कि सीपीईसी ऐसी परियोजना है जहां आर्थिक विचार-विमर्श पर राजनीति हावी रहती है। भारत का रुख दोहराते हुए सरन ने कहा कि सीपीईसी का कुछ हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरता है जो कि भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है।

साथ ही उन्होंने यह भी चेताया कि परियोजना के आर्थिक पहलू पाकिस्तान को चीन के अधीन बना देंगे। इसके फलस्वरूप चीन का उभार एशिया प्रशांत क्षेत्र तक ही नहीं रहेगा। सरन ने कहा यह हिंद महासागर, आर्कटिक, अटलांटिक महासागर और भूमध्य सागर में भी हो सकता है। सरन ने यह भी कहा कि अपनी आर्थिक स्थिति के मद्देनजर नहीं लगता कि पाकिस्तान चीन से मिली वित्तीय मदद वापस करेगा। उसके लिए तो चीन को सालाना तीन अरब डॉलर का भुगतान करना ही मुश्किल होगा। उन्होंने कहा कि हर बार, जब पाकिस्तान भुगतान नहीं कर पाएगा तो नई बातचीत, नए समझौते होंगे और पाकिस्तान में चीन की हिस्सेदारी बढ़ती जाएगी। सरन ने कहा सीपीईसी का ढांचा आर्थिक की तुलना में राजनीतिक अधिक है।

पिछले सप्ताह वाशिंगटन में, जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के प्रो. सी. क्रिस्टीन फेयर ने कहा था कि सीपीईसी पाक अधिकृत कश्मीर से हो कर गुजरता है और बलूचिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह में खत्म होता है और इसके लिए बीजिंग ने 46 अरब डालर से अधिक राशि देने का वादा किया है। यह मूलत: पाकिस्तान का औपनिवेशीकरण है जबकि इसे आर्थिक पैकेज बताया जा रहा है। (एजेंसी)

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