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राजपक्षे को क्यों सता रहा है लिट्टे का डर

श्रीलंका से तमिल विद्रोहियों को पूरी तरह कुचल देने वाले देश के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को डर सता रहा है कि इतनी मुश्किल से हराए गए अलगाववादी तमिल टाइगर्स फिर से एकजुट हो सकते हैं और देश में आतंकवाद फिर से पनप सकता है।
राजपक्षे को क्यों सता रहा है लिट्टे का डर

पिछला राष्ट्रपति चुनाव अपने ही सहयोगी रहे मैत्रिपाला सिरीसेना के हाथों हार चुके राजपक्षे ने कहा, हमें खुशी है कि आतंकवादी नहीं बचे हैं। लेकिन मुझे आशंका है कि हम आतंकवाद की वापसी होते देख सकते हैं। गौरतलब है कि राजपक्षे की हार में देश के तमिल मतदाताओं की बड़ी भूमिका रही है जिन्होंने एकतरफा रूप से सिरीसेना को अपना समर्थन दिया था।

उत्तरी मध्य शहर अनुराधापुर में शुक्रवार को उन्होंने एक धार्मिक समागम में कहा, हम नहीं चाहते कि जो कुछ हुआ वह फिर से देखें। हम चाहते हैं हर कोई शांति और सौहार्द से रहे। 2009 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम पर श्रीलंकाई सेना की फतह का नेतृत्व करने वाले राजपक्षे की सत्ता में वापसी के लिए संसदीय चुनाव लड़ने की योजना है। उन्होंने 2005 में पहली बार जीत हासिल की थी और सिंहली बहुसंख्यकों के बीच लोकप्रियता की लहर के बीच 2010 में फिर से जीते। उन्होंने बाद में संविधान बदल दिया और तीसरी बार जीतने की आस में जनवरी में चुनाव करवाया। लेकिन, दिग्गज नेता को राष्ट्रपति चुनावों में हार का सामना करना पड़ा और सिरीसेना राष्ट्रपति बने।

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