लखनऊ से एक घंटे की यात्रा कर कई धर्मों के लोग बाराबंकी में हाजी वारिस अली शाह की दरगाह देवा शरीफ जाते हैं। इक्वेटर लाइन पत्रिका के ताजा अंक में द सूफी ऑफ देवा शीर्षक से लिखे लेख में बताया गया है, इस जगह का वातावरण उदार है। लोग फूलों, मिठाइयों और रंग-बिरंगी चादरों के साथ इस सूफी संत की दरगाह पर आते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि शाह ने अपने अनुयायियों को कभी अपना धर्म छोड़ने को नहीं कहा और यही वजह है कि भारी संख्या में हिंदू श्रद्धालु यहां मत्था टेकने आते हैं। इस दरगाह की आधारशिला कन्हैया लाल ने रखी और इसके बाद कई और हिंदू आगे आए। आज यहां हिंदू और मुस्लिम बराबर की संख्या में आते हैं।
पोखरण से करीब 12 किलोमीटर दूर रामदेवरा का स्थान हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए ही पवित्र जगह है। रामदेवरा, बाबा रामदेव या रामशा पीर का समाधि स्थल है और यह देश में संभवत: अकेला सा मंदिर है जहां श्रद्धालुओं का संगम होता है।
इस मंदिर की सबसे अजीब खूबी इसके भीतर कई मजार हैं। ये उन लोगों की मजारें हैं जो बाबा रामदेव के बेहद करीब थे। असम के गुवाहाटी में पोवा मक्का, सूफी संत पीर गियासुद्दीन औलिया की गद्दी है। इस मस्जिद की आधारशिला रखने के लिए मक्का से मिट्टी लाई गई थी। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मजार पर आने से मक्का में हज करने जैसा सबाब मिलता है। हिंदू, मुस्लिम और बौद्ध लोग इस पवित्र स्थान पर आते हैं।