भारतेंदु नाट्य अकादमी से स्नातकोत्तर रंगकर्मी भूपेश जोशी ने नाटक का निर्देशन किया। नौटंकीपुर राज्य के राजा का देहांत हो गया है। राज्य की सलेक्शन समिति विदूषक को राज्य के लिए नया राजा खोजने का जिम्मा सौंपती है। विदूषक पूरे देशभर में भ्रमण कर कुछ चुने हुए लोगों को सलेक्शन कमेटी के पास लेकर पहुंचता है और उनकी खासियत से समिति को रू-ब-रू कराता है। अंत में सलेक्शन कमेटी विदूषक को ही नौटंकीपुर राज्य का राजा घोषित कर देती है।
सलेक्शन कमेटी सभी कैंडिडेट को देखने के बाद फैसला करती है कि ये तो अपने-अपने धंधों में ही नौटंकी कर सकते हैं, लेकिन हमारा विदूषक तो ऑलराउंडर है। सभी क्षेत्रों में पक्का नौटंकीबाज है इसलिए नौटंकीपुर राज्य के लिए यह ही उपयुक्त राजा होगा। इस तरह एक बार फिर नौटंकीपुर राज्य अस्तित्व में आ जाता है।
नाटक में विदूषक का किरदार मयंक ने निभाया है। विदूषक राजा की खोज के लिए सबसे पहले एक बाबा के पास पहुंचता है। बाबा के किरदार में भूपेश जोशी ने अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया और उसमें राधे मां, निर्मल बाबा जैसे स्वयंभू बाबाओं के शेड्स को बखूबी उकेरा। वहीं, थानेदार की भूमिका में रोहित ने स्टेज पर दमदार उपस्थिति बनाए रखी। जबकि शराबी की भूमिका में निलेंद्र की स्लाइलेंस उपस्थिति काफी एट्रेक्टिव थी। नाटक के हर पंच को दर्शकों ने हाथों हाथ स्वीकारा और जमकर तालियां बजाई।
नाटक में सुविधाभोगी अभिजात्य वामपंथियों पर भी करारा कटाक्ष किया गया है। क्लबों में बैठकर मदिरा के नशे में क्रांति का दिवाप्सन देखने और सर्वहारा से कोसों दूर छिटक कर रहने वाले ऐसे कथित वामपंथियों को शाम ढलते ही क्रांति और सर्वहारा की याद आती है। और फिर नशा उतरने के साथ ही क्रांति का भूत भी उतर जाता है।
नाटक में साउंड ऑपरेशन पंकज दुबे और लाइटिंग रविंद्र ने की है। परिधान सभी कलाकारों ने खुद ही डिजाइन किए जबकि मेकअप निर्देशक भूपेश जोशी ने ही किया। नाटक का म्यूजिक सेतू और अनुराग ने कंपोज किया है। नाटक में अन्य भूमिकाओं में रिचा, रोहित, विपुल, अक्षय, और आशीष, अरुण, सुशांत, ललित, चित्रा,रिजवान यशी शामिल थे।