कथक की ऊर्जस्वी और पारंगत नृत्यांगना विदुषी शोभना नारायण का शुमार विशिष्ट कलाकारों में होता है। एकल नृत्य और संरचनाकार के रूप में उनकी सृजनात्मकता मौलिक है। गुरु के रूप में भी उनका खास स्थान है। गुरु-शिष्य परंपरा के आधार पर उन्होंने अनेक शिष्य-शिष्याओं को नृत्य में पारंगत किया है। उनमें उभरती हुए युवा नृत्यांगना सुपर्णा सिंह और महिमा सत्संगी का नाम शामिल है। हाल ही में हेबिटेट सेंटर के स्टेन सभागार में आसवरी संस्था ने उनके नृत्य कार्यक्रम का आयोजन किया।
गौरतलब है कि दोनों ने पहली बार स्वयंरचित नृत्य सरंचना सुमंग को प्रस्तुत करने में अपने कौशल और दूरदर्शिता दिखाने का सुंदर प्रयास किया। सुमंग प्रेम संबंध, मित्रता और बन्धुत्व भाव को जगाने का वह सूत्र है जिसके पिरोये धागे की प्रतिध्वनि में अंतरात्मा की संगीतमय गूंज है। स्वयं की खोज में जीवन के सांसारिक और दार्शनिक पहलुओं को एकाग्र चिंतन से मंथन करके उसके यथार्थ को उजागर करने का भी एक सार्थक प्रयास सुपर्णा और महिमा ने नृत्य संरचना के माध्यम से किया। जीवन यात्रा के पड़ावों से गुजरते हुए जीवन को समग्रता प्रदान करने और नई राह को खोजते आगे बढ़ने की कल्पना भी नृत्य-भाव में काफी हद तक सजीवता से साकार हुई। तालबद्ध एकल और युगल नृत्य में भी सुपर्णा सिंह और महिमा संत्संगी ने अपनी प्रतिभा का भरपूर परिचय दिया।
सुमंग की प्रस्तुति से यह आभास हुआ कि नृत्य न सिर्फ दर्शनीय है बल्कि वह हृदय अंतर्मन को भी गहराई से छूता है। नृत्य चक्र शारीरिक परधि के पार निकलकर संवेदनशील भाव और आध्यात्मिक शक्ति को भी जगाता है। इसमें मानवीय प्रेम, करुणा और बन्धुत्व का गहरा भाव है। दरअसल यही हमारी समोवेशी संस्कृति की खास चीज है।
सुपर्णा के अनुसार सुमंग की यात्रा भी हदय को छूकर गुजरती है जिसमें आत्मभाव और आध्यात्मिक गुणों का समावेश है। महिमा सत्संगी के अनुसार नृत्य में जो मानवीय संबंधों का स्पर्श और सौन्दर्य है उसकी छवि अनहद के पार भी दिखाई देती है। सम्पूर्णा नृत्य की समग्र यात्रा को प्रतिबिंब, आलिंगन, सर्वज्ञ और समागम में बड़े विवेक और गहराई से दोनों युवा नृत्यांगनाओं ने नृत्य सरंचना में जो रंग भरे, उसमें एक नई ऊष्मा, शांति और मधुरता व्याप्त होती नजर आई।