Advertisement

प्रेम-वेदना-विद्रोह के कथक रंग

कथक नृत्य में जयपुर घराने के सुपरिचित कुशल नर्तक मुल्ला अफसर खां ने घराने के उत्कृष्ट नृत्यकार और...
प्रेम-वेदना-विद्रोह के कथक रंग

कथक नृत्य में जयपुर घराने के सुपरिचित कुशल नर्तक मुल्ला अफसर खां ने घराने के उत्कृष्ट नृत्यकार और गुरु राजेन्द्र गंगानी की छत्रछाया में नृत्य की बारीकियां और चलन को गहराई से सीखकर कथक में अपनी अलग पहचान बनाई। इस समय वे नृत्य के अच्छे गुरु के रूप में स्थापित हैं। उनकी शार्गिदी में देश-विदेश के बहुतेरे नई पीढ़ी के युवा नृत्य सीख रहे हैं। उनमें सिंगापुर में बसी पूर्वी सिंह एकल नृत्य और संरचना के क्षेत्र में तेजी से उभर रही हैं।

हाल में लोटस पेटल फाउंडेशन के बैनर के तले गुरुग्राम के एपिसेंटर में पूर्वी सिंह के नृत्य की कालात्मक और रोमांचक प्रस्तुति हुई। इस 22 वर्षीय युवा नृत्यागंना के नृत्य को देखने से लगा कि उसने परंपरा और प्रयोग के बीच सुंदर संतुलन साधा है। उनकी लगन और तैयारी साफ दिखती है। पूर्वी ने पूरी निष्ठा और समर्पण से गुरु मुल्ला अफसर खां से नृत्य के हर पक्ष को गहराई से सीखकर अपने को परिपक्व नृत्यांगना के रूप में स्थापित किया। इस कार्यक्रम में पूर्वी ने अपने नृत्य प्रदर्शन के जरिए यह साबित करने का प्रयास किया कि समाज में सकारात्मक चेतना जगाने में नृत्य की अभिव्यक्तियां कितनी असरदार और कारगर हैं, जो जनमानस की सोच में बदलाव ला सकती हैं।

इस विशेष कार्यक्रम में पूर्वी और उनके सहयोगी कलाकार- इप्सा, सुमन, सीमा, विशाल आदि ने कला और सेवा का अनूठा संगम प्रस्तुत किया। पूर्वी सिंह संरचित यज्ञसेनी की प्रस्तुति को देखना कला रसिकों के लिए एक नया अनुभव था। पवित्र अग्नि से उपजी यज्ञसेनी पांचाल राज्य में द्रौपदी की दिव्य उत्पत्ति का प्रतीक है। शृंगार से वीर रस तक नौ रसों के जरिए द्रौपदी की आभा और व्यक्तित्व का विशलेषण कर सकते हैं। कौरवों के साथ पासा खेल में युधिष्ठिर का द्रौपदी को दांव पर लगाना और हार जाना, अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए असहाय द्रौपदी की कृष्ण से गुहार, कृष्‍ण के दिव्य आभा से प्रेरित द्रौपदी में निडरता और वीर रस का संचार होता है और वह दुर्गा का रूप धारण करके समूचे पुरुषप्रधान समाज पर तीखे प्रहार करती है। भगवत गीता के उल्लेख के आधार पर मार्मिक प्रतिबिंबों के साथ कुरूक्षेत्र की वीरता और दिव्य चेतना के सामने समर्पण का जो दृश्य नृत्य संरचना के जरिए चित्रित हुआ उसमें गहरे प्रतिरोध और साहस की प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है।

हरे कृष्णा नृत्य संरचना में पांचाली द्रोपदी की सुंदरता, उसके स्वाभिमान का चित्रण, दुर्गा अवतार में दिव्य रोष और बदला लेने की प्रतिज्ञा आदि की पूर्वी की प्रस्तुति ओजस्वी और प्रभावी थी। इस प्रस्तुति में धर्मक्षेत्र में विश्वासघात, कुरूक्षेत्र की वीरता का एहसास, अहंकार का विघटन, समर्पण और दिव्य चेतना के मिलन निर्गुण परंपरा में निराकार आध्यात्मिक भाव से प्रदर्शित हुए। इसे काफी हद तक नृत्य अभिनय से अभिव्यक्त करने में पूर्वी ने दूरदर्शिता का परिचय दिया। भगवत गीता के मार्मिक प्रतिबिंबों के साथ कुरूक्षेत्र की वीरता और दिव्य चेतना के सामने समर्पण का जो दृश्य नृत्य संरचना के जरिए चित्रित हुआ, वह बहुत मार्मिक था।

सरंचनाकार की कल्पना में हर कदम के माध्यम से हम काल की नब्ज और समय की अडिग शक्ति को महसूस करते हैं। यह प्राचीन पाठ हमें ताकत, लचीलापन और कर्म के शाश्वत नृत्य की याद दिलाता है। यह आज के जीवन में भी प्रसागिंक और महत्वपूर्ण है। एक महाकाव्य यात्रा की प्रस्तुति की दिव्य शुरुआत मुरलीधर कृष्ण के द्वारा दिव्य राग से होती है और उसमें कृष्ण के कई मोहक रंग को नृत्य संरचना में सुन्दरता से पिरोया गया है। यह महाभारत के जटिल नृत्य को सूक्ष्म रूप से बांधता है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad