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संगीत में नई प्रतिभाओं की दस्‍तक

कला संस्कृति के क्षेत्र में दिल्ली की संगीत साधना संस्था एक अरसे से मंचीय कला विधाओं के कार्यक्रम...
संगीत में नई प्रतिभाओं की दस्‍तक

कला संस्कृति के क्षेत्र में दिल्ली की संगीत साधना संस्था एक अरसे से मंचीय कला विधाओं के कार्यक्रम आयोजित करने में सक्रिय रही है। हाल में इस संस्था ने मैथिली भोजपुरी अकादमी के सहयोग से गायन-वादन के कार्यक्रम का आयोजन नई दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम के सभागार में किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ सुरीले और ऊर्जावान गायक श्री सुन्दरम की भगवती वदंना की प्रस्तुति से हुआ। उनके गायन में शास्त्रीय और लोक संगीत का सुंदर जुड़ाव था। गायन के जारिए उन्होंने भगवती की उपासना और उनके विविध रूपो को सरसता से दर्शाया। उसके उपरांत कुशल तबलावादक गुरु नागेश्वर लाल करण के निर्देशन में तबला संगम की प्रस्तुति हुई। तबला के इस मिलेजुले वादन में युवा वादक तुषार गोयल, जीतू परिहार, वसु और विदेशी मूल के इमरान नियोनी शमिल हुए। तीनताल पर एकल वादन में सभी वादकों ने पारंपारिक तबलावादन के चलन में पेशकार, कायदा, रेला, गतें, तिहाइयों, कई प्रकार के टुकड़े, बोलछंदों से लेकर तिरकिट के बोल और लयकारी को सही ढंग से पेश करने की अच्छी कोशिश की। आखिर में सबने एक साथ मिलकर लयबद्ध वादन को सही लीक पर पेश किया।

मैथली और भोजपुरी की युवा गायिका श्वेता पाठक और उनकी मां ने युगल गायन से बिहार की इन भाषाओं में कई रचनाएं संगीतबद्ध करके प्रस्तुत की। ‘जय जय दुर्गा रानी,’ ‘घन घन घंटा बाजे’ की प्रस्तुति भक्तिमयी और रसपूर्ण थी। इस समारोह में सुयोग्य मोहनवीणावादक पंडित अजय झा तेजी से अपनी पहचान बना रहे हैं। उन्होंने शुरुआत राग यमन की प्रस्तुति से की। हिंदुस्‍तानी संगीत में संपूर्ण स्वरों के इस राग को रागों का महासागर कहा जाता है। स्वरों के मेल में इस राग का कितना विस्तार किया जा सकता है, यह कलाकार की क्षमता पर निर्भर करता है। अलबत्ता अजय ने इस राग को आलाप, जोड़-झाला और तालबद्ध बदिंशों में बाधंकर सकुंलता और मोहकता से प्रस्तुत किया। संगीत में लय गति का विशिष्ट रूप है। लय-ताल पर ही गायन वादन प्रतिष्ठित होता है। उसी तरह राग की बढ़त करते समय मंद-मध्य से लेकर तार सप्तक तक संतुलित स्वरसंचार करना महत्वपूर्ण है। सुनने से लगा कि रागदारी में इस मर्म को समझने का प्रयास अजय झा ने सजगता से किया है। क्रमानुसार धीरे धीरे राग की बढ़त से राग के स्वरूप को निखरना, राग की प्रकृति और परंपरागत रूप को बनाए रखते हुए, क्रमिक रूप से यमन को शुद्धता से पेश करने में उनकी अच्छी सूझ थी। राग अलंकरण में गमक, बहलावा, मीड और विविध प्रकार की तानों की निकास भी सही लीक पर थी। द्रुत तीनताल पर लयकारी और झाला भी लययुक्त था। सुविख्यात मोहनवीणावादक पंडित विश्व मोहन भट्ट के शिष्य अजय झा के वादन में गुरु की शैली की मनोरम झलक थी। उनके साथ तबला पर नागेश्वर लाल किरण और वीरमणि ने बराबर की संगत की।

कार्यक्रम का समापन पंडित राकेश पाठक के ख्याल गायन से हुआ। उन्होंने राग चंद्रकौंस में गाने की शुरुआत शुद्ध चलन में रस पूर्णता से की। विलबिंत में स्वरो के जरिए राग के वैचित्र रूप को सहजता से उभारा पर समय कम होने के कारण विस्तार से गायन की प्रस्तुति नहीं हो पाई। उनके साथ हारमोनियम पर पं. देवेंद्र वर्मा और तबला पर वीर मणि ने प्रभावी संगत की।

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