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गायन-वादन के मधुर रस

हाल में भारतीय कला केंद्र के झंकार सभागार में साध-मन-परम रस संस्था के द्वारा गायन-वादन का मनोरम आयोजन...
गायन-वादन के मधुर रस

हाल में भारतीय कला केंद्र के झंकार सभागार में साध-मन-परम रस संस्था के द्वारा गायन-वादन का मनोरम आयोजन हुआ। कार्यक्रम का आरंभ आगरा और किराना घराने के प्रखर गायक पंडित तुषार दत्ता के गायन से हुआ। उन्होनें विलंबित एकताल और द्रुत तीनताल में राग गौड़ सारंग को बड़ी तल्लीनता और सहजता से शुद्ध रागदारी में पेश किया। द्रुत तीन ताल में वृदांवनी सारंग को सुनना भी रोमांचक था। आखिर में भजन गायन भी कर्णप्रिय था। साध-मन-परम रस संस्था शास्त्रीय गायन के क्षेत्र में कुशल गायक के रूप में उभरे युवा दंपती रिदांना रहस्य और अविनाश कुमार ने स्‍थापित की हैं। गुरुओं के प्रशिक्षणा में उन्हें जो मिला, उसे निखारने और गाने की तकनीक में कई सराहनीय प्रयोग करते वे नजर आ रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत संकाय में रिदांना और श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज में अविनाश शिक्षक के रूप में कार्यरत है।

कार्यक्रम में खयाल, पूर्वी अंग की गायिकी ठुमरी, चैती, दादरा आदि और सुगम संगीत की मशहूर गायिका विदूषी उमा गर्ग ने खास किराना घराने शैली के अनुगमन पर पेश' किया। उन्होंने गाने की शुरुआत मधुवंती राग से की। विलंबित एकताल की बंदिश ‘सुनिए नाथ गरीबनवाज' और द्रुत तीन ताल में छोटा खयाल की बंदिश ‘माने न सखी मोरा कान्हा’ और ‘अन्तरा अबीर गुलाल के बादल छाए’ के रसपूर्ण गायन में खरज से लेकर तीनों सप्तकों में स्वरों की निकास और स्वर संचार में गमक का प्रयोग, बहलावा, सरगम सपाटदार और गमकदार आकार की तानें, खटका आदि का लगाव और गायन में बंदिश का भाव उद्वेलन प्रभावकारी था। लेकिन खास पूरबिया अंदाज में राग खमाज से निबद्ध ठुमरी ‘देखे बिना बेचैन सुरतिया हे रामा’ की भावपूर्ण प्रस्तुति के बोल बनाव में उनका अनोखा अंदाज था। आखिर में राग खमाज में दादरा ‘मान जाओ सैया मैं पडू तोरे पंइया’ गायन पूरी तरह शृंगारिक भाव में रचा-बसा था।

दोनों गायन की प्रस्तुतियों के साथ तबला पर दुर्जय भौतिक और सारंगी पर ललित सिसोदिया ने कमाल की संगत की। कार्यक्रम का समापन सारंगी के उत्कृष्ट वादक उस्ताद मुराद अली के द्वारा राग मुल्तानी की प्रस्तुति से हुआ। तोड़ी थाट और ऑडव सम्पूर्ण इस राग में स्वर स, प और नि पर ठहराव और बार-बार स्वर म-ग के लगाव कि सरस ध्वनि से राग का जो सौंदर्य उभरता है, उसका सुंदर अनुकरण करते हुए विलंबित एकताल द्रुतताल में मुराद भाई प्रस्तुति को रंगत दे रहे थे। वादन में गमक, मींड विविधतापूर्ण तानें और तीनों सप्तको में स्वरों के संचार में उनकी गहरी सूझबूझ दिखी। अपने साज के साथ उनकी सहाजता देखते ही बनती है। बजाने में लयकारी भी भावोद्रेक पैदा कर रही थी। अपने मुरादाबाद घराने की सारंगी परंपरा को जीवित रखने और आगे बढ़ाने के लिए मुराद मिया कई शागिर्दों को तैयार कर रहे हैं। उनमें उनके बेटे सुवहान अली और भतीजे रिहान अली कुशल वादक के रूप में उभर रहे हैं। उन्होंने भी अपने उस्ताद के साथ वादन में शिरकत की। आखिर में मुराद अली द्वारा चैती प्रस्तुति भी सरस थी। उनके साथ तबला पर अमान अली ने खूबसूरत संगत की।

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