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जासूसी साहित्य के शहंशाह

कनॉट प्लेस स्थित ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर ने पिछले बृहस्पतिवार की शाम लोकप्रिय हिंदी साहित्य और उसमें भी जासूसी कथाओं के बादशाह स्तंभ सुरेन्द्र मोहन पाठक के साथ एक अनौपचारिक बातचीत आयोजित की। हिंद युग्म प्रकाशन के शैलेश भारतवासी और नीला स्कार्फ और हालिया रिलीज मम्मा की डायरी से चर्चित लेखिका अनु सिंह चौधरी ने उनसे बात की और जाना साहित्य की इस विधा को।
जासूसी साहित्य के शहंशाह

अपने प्रशंसकों के बीच "सुमोपा” कहे जाने वाले जासूसी साहित्य के शहंशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक ने हाल ही में लोकप्रिय साहित्य लेखन में पचपन वर्ष पूरे किए हैं। सन 1959 में मनोहर कहानियां में प्रकाशित 57 साल पुराना आदमी से शुरू किया गया सफर आज 290 किताबों का मुकाम तय करने के बाद भी अनवरत रूप से जारी है। उनकी किताबों ने सीमाएं लांघी हैं। लुगदी से सफेद शफ्फाक कागज होते हुए मोबाइल / टेबलेट तक का सफर तय किया है। आज भी उनकी किताबें सबसे ज्यादा पढ़ी जाती हैं। हार्पर कॉलिंस से प्रकाशित कोलाबा कॉन्सपिरेसी  अमेजन द्वारा इंडियन राइटिंग वर्ग में वर्ष 2014 की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तक घोषित की गई है। उल्लेखनीय है कि अमेजन द्वारा इस वर्ग में शीर्ष दस पुस्तकों की सूची में शामिल हिंदी की एकमात्र किताब कोलाबा कॉन्सपिरेसी ही थी। प्रकाशित होने के एक सप्ताह के भीतर इसकी बीस हजार प्रतियां बिक गई थीं और प्रकाशन से अब तक पंद्रह माह में तीन पुनर्मुद्रित संस्करणों को मिलाकर 40,000 प्रतियां बिक जाने की खबर है। 

अब इसी किताब का अंग्रेजी अनुवाद भी हार्पर कॉलिंस द्वारा प्रकाशित हो रहा है। वह हिंदी भाषा के पहले ऐसे लेखक हैं जिनकी किताबें ई-बुक के रूप में प्रकाशित हुई हैं और पाठकों द्वारा हाथों हाथ ली जा रही हैं। उनकी 150 के करीब किताबें ई-बुक्स के रूप में न्यूजहंट पर उपलब्ध हैं।  कुछ और ई-बुक्स किंडल, गूगल बुक्स और कोबो पर भी उपलब्ध हैं। सुमोपाई / एसएमपियन कहलाने वाले उनके प्रशंसकों की अच्छी खासी संख्या सोशल मीडिया पर मौजूद है। एक प्रशंसक-क्लब के रूप में जिसकी स्थापना वर्ष 2006 में ऑरकुट पर शरद श्रीवास्तव ने की थी। 

  

चर्चा प्रारंभ करते हुए अनु सिंह चौधरी ने बताया कि कैसे जब वे महज सात वर्ष की थीं तो उन्होंने पाया कि उनके चाचा सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यासों में इस कदर डूब जाते थे कि भूख-प्यास, नींद सब भूल जाते थे। उनके प्रश्न कि इतने सारे किरदार – प्लॉट्स के लिए प्रेरणा और ऊर्जा का स्रोत क्या है के जवाब में सुमोपा ने बताया कि ऊर्जा कहां से आती है यह उन्हें खुद नहीं मालूम पर अब उनके लिए लिखना सांस लेने जैसी आदत बन गई है। जब लिखने का वक्त आता है, अपने आप कलम चलने लगती है। कोई इनग्रेडिएंट, कोई एक्स-फैक्टर होता है, जिससे बंदा खुद ही नावाकिफ होता है, जिसे वैल्यूएट पाठक ही करता है। मिस्ट्री स्टोरीज जिसे “हूडनइट” कहते हैं, उसमें एक ही प्लॉट सारी दुनिया में अपनाया जाता है और उसी की परम्युटेशन – कॉम्बिनेशन होती है जो लेखक पेश करते हैं – एक कत्ल होता है,  उसके पांच – छः सस्पेक्ट हैं, बाई मेथड ऑफ एलिमिनेशन नायक असली अपराधी को सिंगल-आउट करता है। इस विधा के किसी भी लेखक को बस नए परम्युटेशन – कॉम्बिनेशन को पेश करना पड़ता है,  ग्राउंड तो पहले ही तैयार है।

  

शैलेश द्वारा पूछने पर कि किसी किरदार की प्रोफाइलिंग के लिए क्या तैयारी करते हैं, उन्होंने कहा कि किसी किरदार की प्रोफाइलिंग के लिए कल्पना और यथार्थ दोनों का समावेश करना पड़ता है। किसी पूर्ववर्ती लेखन या किसी अन्य भाषा के लेखन से समानता निकल आने के प्रश्न पर पाठक जी का मत था कि ये एक बहुत बड़ा इत्तेफाक है जो अमूमन नहीं होता। अगर ऐसे इत्तेफाक होने लगे तो कहर आ जाएगा, लोग आपस में झगडेंगे कि मैंने पहले लिखा। फिर भी लोग समानता ढूंढ लेते हैं – जैसे कहते हैं भगवती चरण वर्मा की चित्रलेखा किसी विदेशी कृति से प्रेरित है। मुझे तो नहीं लगता कि उन्होंने कभी शकल भी देखी होगी उस विदेशी कृति की। ऐसे तो लोग महाभारत और इलियड में भी समानताएं ढूंढ लेते हैं। अनजाने में ऐसा कुछ हो जाता है तो भी पढ़ने वाला समानता ढूंढता है, लिखने वाला नहीं। अनु सिंह चौधरी के इस प्रश्न पर कि जासूसी लेखन को लुगदी और मुख्यधारा से हीन समझे जाने की प्रवृत्ति को लेकर उनके पाठक-वर्ग  के नजरिये में कोई तबदीली महसूस की है विशेषकर पिछले डेढ़-दो वर्षों में – जब से हॉर्पर कॉलिंस से उनकी पुस्तकें आने लगी हैं, पाठक जी ने कहा कि बड़ी तबदीली तो ये आई है कि वर्तमान पाठक-वर्ग बहुत सिलेक्टिव हो गया है। पहले जब फिल्मों के अलावा किताब ही मनोरंजन का इकलौता जरिया था तो पाठक हर किताब में कुछ न कुछ गुण ढूंढ लेता था। उसे हर किताब अच्छी लगती थी किसी न किसी वजह से,  कोई – कोई बहुत अच्छी लगती थी,  खराब किसी को नहीं कहता था। अब मनोरंजन के लिए इंटरनेट, मोबाइल, मल्टीप्लेक्स, गेमिंग जोन सरीखे दूसरे कई विकल्प उपलब्ध हो जाने की वजह से अब पाठकवर्ग बहुत सिलेक्टिव हो गया है और एजूकेटिड हो गया है, अब उसे पता है कि गेहूं कहां है और भूसा कहां है। हार्पर से प्रकाशित होने के पश्चात स्वीकार्यता कुछ हद तक बढ़ी जरूर है,  अब एअरपोर्ट के स्टोर्स पर भी किताबें उपलब्ध हैं। 

इस रोचक परिचर्चा ने हिंदी प्रकाशन में विपणन – वितरण व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता और लोकप्रिय – गंभीर साहित्य के सहअस्तित्व को रेखांकित किया। लोकप्रिय साहित्य लुगदी से उम्दा क्वालिटी के सफ़ेद कागज पर छपने तक का और मेरठ की गलियों के पारंपरिक प्रकाशन  से हार्पर जैसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन तक का सफर तय कर चुका है। लोकप्रिय साहित्य पर परिचर्चा और लोकार्पण का आयोजन होना अच्छा संकेत है। उम्मीद है इसी तरह गंभीर साहित्य के साथ-साथ लोकप्रिय साहित्य को भी उचित स्थान हासिल हो सकेगा।

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