लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता कर रही मणिपुर की राज्यप़ाल डॉ नजमा हेपतुल्ला ने कहा कि इसे अपराध को हीनियस क्राइम करार दिया जाना चाहिए और बांग्लादेश में मिलने वाली पच्चीस साल की सजा से सीख लेते हुए, मौजूदा दस साल की सजा के बजाय ऐसे अत्याचारियों को उम्र कैद की सजा होनी चाहिए। इससे पूर्व केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी दस साल की सजा को नगण्य माना। उन्होंने कहा कि इन पीड़िताओं को सरकारी नौकरी दिलाने की बात से सहमत होते हुए भी मैं चाहती हूं कि इन लोगों के लिए इससे और बड़ी मदद की जानी चाहिए। उन्होंने समाजसेवियों और संस्थाओं से सुझाव भी आमंत्रित किया।
1975 से अब तक करीब चार सौ ऐसे पीड़ितों का मुफ्त इलाज करने वाले मुंबई से आए प्लास्टिकसर्जन डॉ अशोक गुप्ता ने कहा कि इन्हें पीड़ित नहीं बल्कि एक हार न मानने वाला संघर्षशील सिपाही मानें। उन्होंने कहा कि हमें शर्म आनी चाहिए कि भारत यह जघन्य अपराध करने वाले देशों में दुनिया में नंबर वन है। लेखिका प्रतिभा ज्योति ने कहा कि इन साहसी बहनों के जिस दर्द को मैने महसूस किया, इसे जितने ज्यादा से ज्यादा लोग महसूस करेंगे, वही मेरी सफलता होगी। उन्होंने कहा कि महिला व बाल अत्याचारों पर लिखने का सिलसिला वे आगे जारी रखेंगी। संचालक सईद अंसारी ने शुरुआत में ही कहा कि इस किताब का मकसद यह नहीं कि आप इन लड़कियों के प्रति अफसोस, सहानुभूति या दया जताएं, बल्कि उन कारणों के निवारण पर गहराई से विचार करें, क्योंकि कहीं न कहीं हम सब इसके लिए जिम्मेदार हैं। प्रकाशक प्रभात कुमार ने स्वागत में कहा पुस्तक का उद्देश्य लोगों को व्यथित करना नहीं, जागृत करना है। इस मौके पर करीब आधा दर्जन पीड़िताएं, उनके परिजन, पत्रकार, समाजसेवी आदि मौजूद थे।