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इश्क वाकई में न्यूज नहीं

फेसबुक फिक्शन श्रृंखला की दूसरी किताब इश्क कोई न्यूज नहीं को पाठकों के बीच लाने की तैयारियां जोरों पर हैं। इस पुस्तक का प्रोमो लंदन में आयोजित एक कार्यशाला के बाद अनौपचारिक रूप से लांच किया गया।
इश्क वाकई में न्यूज नहीं

 

लंदन में पिछले दिनों हिंग्लिश को लेकर हुई दो दिन की कार्यशाला के समापन-सत्र के बाद लघु प्रेम कथाओं यानी लप्रेक श्रृंखला की दूसरी कड़ी की प्रोमो पुस्तिका जारी तो की ही गई, साथ ही, इस कार्यक्रम में लप्रेककार विनीत कुमार ने दुनिया के अलग-अलग शैक्षणिक संस्थानों से आए लोगों के बीच लप्रेक लिखे जाने के पीछे की पूरी प्रक्रिया की विस्तार से चर्चा करते हुए अपनी पुस्तक की थीम को भी सामने रखा।

 

यह सच है कि जो न्यूज चैनल और मीडिया दुनिया-भर की खबरों को अपनी जरूरत और मिजाज के हिसाब से पेश करता है, उसके माध्यम से ऐसी कई कहानियां, इमोशनल मोमेंट्स, न्यूजरूम की चौखट नहीं लांघ पाते जो खुद मीडिया कर्मियों के बीच के होते हैं। इश्क और इमोशन के  नाम पर मीडिया भले ही लव, सेक्स, धोखा से लेकर ऑनर किलिंग तक के मामले को लगातार प्रसारित करता रहे, लेकिन क्या सचमुच वह  इश्क के इलाके में घुसने और रचनात्मक हस्तक्षेप का माद्दा रखता है। प्रोमो में शामिल कुल पांच कहानियों में से तीन कहानियों का पाठ करते हुए लेखक ने लप्रेक लिखे जाने की इस पूरी प्रक्रिया की चर्चा की।

 

ट्रैफिक जाम, मेट्रो की खचाखच भीड़, डीटीसी बसों के इंतजार के बीच लिखी जाने वाली इन फेसबुक कहानियों के बारे में प्रो.फेरचेस्का ओरसिनी (हिन्दी एवं दक्षिण एशियाई साहित्य, एसओएएस, लंदन विश्वविद्यालय, लंदन) ने कहा कि इस तरह के लेखन से हिन्दी एक नए पाठक वर्ग के बीच पहुंच सकेगी और जो कहानियां अब तक सोशल मीडिया के भरोसे रह गई थीं, उनके हिन्दी पाठकों के बीच किताब की शक्ल में आने से विचार-विमर्श में नया आयाम जुड़ सकेगा।

 

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में अध्यापन कर रहे ऐश्वर्ज पंडित ने कहा कि ये कहानियां बताती हैं कि हिन्दी में अलग तरह की सामग्री आने की गुंजाइश बनी हुई है और यह अच्छा ही है कि इस तरह से अलग-अलग रूपों में हिन्दी का विस्तार हो।

 

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