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वनमाली स्मृति व्याख्यानमाला

‘कभी जीवन का सर्वांगीण विकास करने वाली शिक्षा आज तरक्की के नाम पर पूंजीवाद की गिरफ्त में है। संस्कारों की पहली पाठशाला घर-परिवार थे, जो अब सन्नाटे फांक रहे हैं और पाठशालाएं गोडाउन बन गई हैं जहां बच्चों को ठूंस-ठूंस कर भरा जा रहा है। मुनाफे का सौदा बन चुकी शिक्षा का आदर्श अब बाजार के बीहड़ में बिला गया है।’ फिल्म समीक्षक और चिंतक जयप्रकाश चौकसे ने इस आशय के विचार खंडवा में आयोजित वनमाली व्याख्यानमाला में व्यक्त किए।
वनमाली स्मृति व्याख्यानमाला

यशस्वी शिक्षाविद और साहित्यकार स्व.जगन्नाथप्रसाद चौबे ‘वनमाली’ की स्मृति में आरंभ हुआ यह वैचारिक अनुष्ठान ‘शिक्षा में मूल्य’ विषय पर चौकसे के बेबाक, ओजस्वी और तार्किक भाषण से सार्थक विमर्श में बदल गया।

 

साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में सामान रूप से सक्रिय वनमाली सृजन पीठ द्वारा माणिक्य स्मारक वाचनालय में संयोजित इस समागम में वनमाली जी के समकालीन शिक्षक, छात्र और खंडवा के लेखक, संस्कृतिकर्मी तथा समाजसेवी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। आरंभ में सृजनपीठ के समन्वयक-कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने वनमाली जी के शैक्षिक-साहित्यिक अवदान और खंडवा में उनके यशस्वी कार्यकाल की चर्चा की। आगामी कड़ियों में साहित्य, संस्कृति, समाज, कला, विज्ञान, पर्यावरण, मीडिया और सूचना संचार क्षेत्र के विशेषज्ञों को व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया जाएगा। आभार सृजनपीठ के स्थानीय संयोजक शरद जैन ने व्यक्त किया।

     

 

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