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संगीत की एक सुरीली संध्या

पिछले छह दशकों से भारतीय संगीत-नृत्य के प्रचार-प्रसार में चंडीगढ़ की प्राचीन कला केंद्र स्थानीय और...
संगीत की एक सुरीली संध्या

पिछले छह दशकों से भारतीय संगीत-नृत्य के प्रचार-प्रसार में चंडीगढ़ की प्राचीन कला केंद्र स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर कार्यक्रम का आयोजन कर रही है। संगीत-नृत्य के कई बड़े समारोह के अलावा केंद्र तिमाही बैठक में ऊर्जावान कलाकारों को मंच पर प्रस्तुत करती है। हाल में तिमाही की 23वीं बैठक दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम के सभागार में आयोजित हुई। पारंपरिक द्वीप प्रज्ज्‍वलन के पश्चात इस सुरीली संध्या का आरंभ निराली कार्तिक के गायन से हुआ।

शास्त्रीय गायन की रागदारी में परिपक्व निराली प्रतिभावान सुरीली गायिका है। मेवाती घराने से जुड़ी इस युवा गायिका ने राग पूरिया कल्याण में गाने की शुरुआत शुद्ध चलन में मधुरता से की। अल्प आलाप के बाद विलबिंत बड़ा ख्याल की बंदिश ‘आज सो बना’ को संतुलित और सधे स्वरों से पेश करने में उनके भरावदार और गूंजती आवाज में विविध ढंग से स्वर संचार संचारित हुआ। अगली बंदिश ‘दिन रैन कछु न सुहावे’ की प्रस्तुति भी सरस थी। गाने में सुर और लय का मेल और विविध बोल बनाव से भाव भरकर गाने का अंदाज भी खूबसूरत और रसीला था। गाने के पारंपरिक चलन में कई प्रकार से सरगम और आकार की सीधी और गमकदार तानों की निकास में उनकी अच्छी सूझ दिखी। राग अलकंरणा में खटका, बहलावा मुर्की, स्वर आंदोलन और मींड के स्वरों को शुद्धता से दर्शाने का ढंग भी सुंदर था। मध्य और द्रुत की लयात्मक गति में तराना की प्रस्तुति भी आनंद दायक थी। निराली ने गायन का समापन बसंती मौसम के होली गायन से किया। ‘होरी रसिया’ की बंदिश गाने में होरी के रंगों की बौछार, उल्लास और उमंग का भाव उनके सुरम्य स्वरों में बखूबी बिखरा। गाने के साथ तबला पर जहीन खां और हरमोनियम पर सुमित मिश्र ने बेहतरीन संगत की।

अगली प्रस्तुति में संतूर और सितार वादन में वहाने-बहनों की युगल जोड़ी संगीत के क्षेत्र में नई दस्तक हैं। उन्होंने कार्यक्रम की शुरुआत राग चारुकेशी की प्रस्तुति से की। परंपरागत ढंग से आलाप, जोड़ और झाला को सही गति पर पेश करने के उपरांत विलबिंत झपताल में गत की बंदिश को सूझबूझ से सही लीक पर सुंदरता से पेश किया। देखने से लगा कि बजाने की तकनीक, शुद्धता से राग को पेश करने में तीनों सप्तकों में स्वरों का संचार, दारा दिर दारा बोलों की निकास आदि में उनकी अच्छी पकड़ और कौशल है।

रागदारी में कई प्रकार की तानें, जमजमा के बोलों के स्वरों की निकास आदि में कोई खोट नहीं थी। संतूर और सितार के तारों से फिरकती उगंलियों से स्वर निकालने में लयकारी में दोनों बहनों की रोमांचक प्रस्तुति भी सरस और दर्शनीय थी। आखिर में राग भैरवी में तालबद्ध रचना की प्रस्तुति भी मधुर थी। संतूर -सितार वादन के साथ तबला पर जोहेब खां ने प्रभावी संगत की।

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