आज हिंदी दिवस है। इस मौके पर भारत में बहुतायत बोली जाने वाली भाषा को जिससे ताकत मिलती है उस पर हम चर्चा करेंगे। भाषा को सहज, सुगम और आकर्षक बनाने वाली कई ऐसी ताकतों का हिंदी के लिए बड़ा योगदान है। कई ऐसे महत्वपूर्ण कदम, शख्सियतें और काम हैं जिनसे हमारी हिंदी विस्तार पाती है। पिछले कुछ सालों में गूगल इनपुट से लेकर मिश्री टपकाते गानों, कहानियों के जरिए हिंदी मुस्कुरा उठी है। आइए इन उम्मीदों के जगमग दीयों की ओर निहारें-
गूगल इनपुट
कोई भी भाषा जब तक तकनीक के साथ नहीं जुड़ती उसका सही मायनों में विकास नही हो पाता। अधिकतर लोगों को हिंदी टाइपिंग नहीं आती। आप याद कीजिये जब गूगल इनपुट नहीं था तब लोग मजबूरीवश रोमन में लिखते थे। सोशल मीडिया पर भी आप लोगों ने बहुतेरे ऐसे पोस्ट देखे होंगे जिसमें हिंदी के वाक्य रोमन लिपि में लिखे जाते रहे।
इस दौरान लोग मन मसोस कर रह जाते थे। जबकि मार्च 2013 में एनरॉयड फोन के लिए गूगल इनपुट आने के बाद एक क्रांतिकारी बदलाव लाया। अब गूगल में भी हिंदी की सामग्री आसानी से उपलब्ध हो जाती है। हम रोमन में टाइप करते हैं ‘K’ और हिंदी ‘क’ बोलकर चहक उठती है।
यूट्यूब वीडियो
आज-कल यूट्यूब में ट्रेंड करने वाले अधिकतर वीडियो हिंदी में होते हैं। इन वीडियो में ना केवल हास्य मनोरंजन प्रधान वीडियो शामिल हैं बल्कि गंभीर कवियों की कविताएं बखूबी सुनी जाती है। 'हिंदी कविता' जैसे कई यूट्यूब चैनल हैं जो साहित्य की सेवा में भी लगे हुए हैं। ये चैनल हिंदी कवियों को जन जन तक पहुंचा रहे हैं।
स्टोरी टेलिंग यानी नीलेश मिसरा
दादी, नानी की कहानियां जहां डायनशोर की तरह विलुप्त हो गईं। ऐसे में रात को मीठी मीठी आवाज़ में कहानी सुनाने की विधा से जिसने मन मोहना शुरु किया उसे नीलेश मिसरा कहते हैं। इनकी कहानियों ने दिन-रात हिंग्लिश और अंग्रेजी में शोर मचाते हुए आरजे की एकरसता को तोड़ते हुए हिंदी की शानदार ब्रांडिंग की। फिर क्या था देखा देखी में हिंदी स्टोरी टेलिंग का दौर चल पड़ा।
गीतकारों ने हिंदी गुनगुनाने किया मजबूर
ऐसे तो हिंदी गानें पहले से ही सबको सम्मोहित करते रहे हैं। लेकिन इस दौर में नए कलमकार अपनी कथन से गीतों की मिश्री सबके कानों में घोल रहे हैं। अमिताभ भट्टाचार्य, गौरव सोलंकी, वरूण ग्रोवर, निलेश मिसरा, पुनीत शर्मा ये ऐसे नाम हैं जो देसी भाषा के मिश्रण और साहित्यिक आत्मा के साथ अल्फाज के जादू बिखेरते हैं।
चुनाव प्रचार और सरकार
चुनाव प्रचार में तो नेता जी बड़े देसी अंदाज में हमारी भाषा बोलकर वोट मांगते दिखाई देते हैं। लेकिन सरकार बनाने के बाद वह भाषा उड़नछू हो जाती है। वे कुछ और गिटपिटाने लगते हैं।
लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में तथा दिल्ली विधानसभा चुनाव में जहां हिंदी में चुनावी अभियान की बिगुल बजाई गई,जीत के बाद भी उसकी प्रतिध्वनि बरकरार रही। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जहां मंत्रालयों और सोशल मीडिया पर सरकार हिंदी में कामकाज करती नजर आई वहीं दिल्ली में केजरीवाल सरकार भी हिंदी का इस्तेमाल बखूबी कर रही है।
इन आशाओं के पौधों की छांव में हम अब हिंदी को मजबूत होते देख रहे हैं। आखिर हिंदी की ताकत तभी बढ़ेगी जब हर क्षेत्रों में इसका उचित इस्तेमाल होगा।