प्रकृति के सुकुमार कवि श्री सुमित्रानंदन पंत की ये पंक्ति एक बार फिर मेरे मानस पटल पर अंकित हो गई जब दो दिन पहले में उस कमरे में पहुंचा जहां इन पंक्तियों के महान रचयिता ने जन्म लया। जहां उनके जन्म के छह घंटे बाद ही उनकी माता स्वर्ग सिधार गईं। अपने बाल्यकाल से ही जिंदगी में सजे एकांत को उन्होंने अपनी कविता में उतारकर हिंदी साहित्य में अपना विशिष्टि स्थान बनाया।
हजारों फुट की उंचाई पर उत्तराखंड के जिला बागेश्वर में हिल स्टेशन कौसानी में स्थित पंत जी का जन्म स्थान। वो तीन कमरों वाला घर जो अंग्रेज सरकार की ओर से उनके पिता को मिला था, जो कौसानी में चाय बागान में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। गौरतलब है कि इस जन्मस्थली को उत्तराखंड सरकार ने संग्रहालय के रूप में स्थापित तो करा दिया है। यहां तक कि उनसे जुड़े दुर्लभ चित्रों के साथ कई यादें इलाहबाद और लखनऊ से लाकर यहां सजा भी दी पर अपने उचित रख रखाव के लिए ये संग्रहालय तरस रहा है।
हिंदी प्रेमियों के लिए प्रेरक प्रांगण
कौसानी स्थित इस वीथिका में इस महान कवि की कई यादें हैं, जो हिंदी कविता के प्रेमियों के लिए एक प्रेरक पाठ लगती हैं। इन दुर्लभ चित्रों में अपने कवि मित्रों हरिवंश राय बच्चन, रामधारी सिंह दिनकर और अज्ञेय के साथ उनके दुर्लभ छायाचित्र, उनके बचपन से लेकर जवानी के छायाचित्रों के अलावा उनके पिता और रिश्तेदारों के साथ भी यहां पर कुछ छायाचित्र उपलब्ध हैं। इसके साथ ही उनकी कुछ चीजें मसलन उनके पहने कपड़े, उनका चश्मा, उनकी टेबुल कुर्सी और उनका टेबिल लैंप भी यहां पर रखा हुआ है।
सही ढंग से सहेजे जाने की जरूरत
पहाड़ की तलहटी में स्थित तीन कमरों के साथ एक बड़ा हॉल भी है, जिसमें पुस्तकालय भी है पर यहां आने वालों की संखया नगण्य है। मिली जानकारी के मुताबिक, इस संग्रहालय को सरकार द्वारा स्थापित तो करा दिया सही ढंग से सहेजा नहीं जा रहा है।
जब मैं संग्रहालय पहुंचा तो देखा कि केयर टेकर संदीप कुमार इन कमरों में भरे बरसात के पानी को पोंछने में लगा हुआ था। पूछा तो पता चला कि तीन दिनों की लगातार बारिश से इन दुर्लभ तस्वीरों में पानी प्रवेश कर ही गया । कोई भी तस्वीर वाटरप्रूफ नहीं है। कमरे की दीवार में शीशे के रैक में सजी उनकी जन्मपत्री पर प्लास्टिक कवर नहीं चढा है। जिससे समय के साथ उस पत्रिका से अक्षर मिटते जा रहे हैं।
रख रखाव पर ध्यान दे सरकार
स्थानीय निवासी गोपाल दत्त पंत के मुताबिक, उत्तराखंड सरकार महान कवि के यहां पैदा होने को लेकर खूब गर्व महसूस करती है लेकिन इस संग्रहालय के रख रखाव को लेकर जागरूक नहीं है। इस प्राचीन धरोहर के पिछले हिस्से पर समाजकंटकों ने कब्जा कर लिया। अगर उनसे संबधित धरोहरों के रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये चीजें खराब हो सकती हैं। दो साल पहले बजट भी आया लेकिन उससे कोई खास काम नहीं हुआ। इस संग्रहालय की छत बहुत पुरानी हो चुकी है, लगातार बारिश से भारी महत्व की वस्तुएं बर्बाद हो सकती हैं।