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समावेशी संस्कृति का संगीत

हाल ही में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर द्वारा आयोजित संगीत संध्या में शास्त्रीय गायन में उभरती गायिका...
समावेशी संस्कृति का संगीत

हाल ही में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर द्वारा आयोजित संगीत संध्या में शास्त्रीय गायन में उभरती गायिका सुश्री श्वेता दुबे द्वारा गायन की मनोरम प्रस्तुति हुई। संगीत जगत की प्रख्यात गायिका एवं गुरु विदूषी सविता देवी और मशहूर खयाल गायक पं. भोलानाथ मिश्र की शिष्या श्वेता ने शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय गायन को गुरुओं की निगरानी में जिस लगन और साधना से सीखा है, उसकी मनोहारी झलक उनके गायन में दिखी। ताल के आधार पर सुर और लय को सही लीक पर कायम रखते हुए राग को शुद्धता को पेश किया। रागदारी और तीनों सप्तकों में स्वरों का संचार सुंदरता से सुर और लय में गठा हुआ दिखा। 

श्वेता दुबे ने गायन का आरंभ गुरु वंदना और गणेश वंदना की प्रस्तुति से किया। इसमें गायन और भक्ति का सुंदर उभार था। इसके उपरांत तीन ताल में निबद्ध राग रागेश्री की मध्य लय में खयाल की बंदिश- ‘बन-बन बोले कोयलिया’ को सरसता से पेश किया। सुनने से लगा कि जिस शिद्दत से गुरु भोलानाथ ने खयाल में शास्त्रीय रागों को श्वेता को सिखाया है, उसी गहरे लगन से उन्होंने सीखा भी है। यह सुखद बात है कि आज की नई पीढ़ी में जो प्रतिभाएं उभर कर आ रही हैं, उनमें ज्यादातर शागिर्द गुरु भोलानाथ के हैं। 

रागेश्री बहुत ही मधुर राग है। धैवत और मध्यम स्वर संगतियां बड़ी मनमोहक हैँ। इस राग के रसास्वादन में इन स्वर लहरियों का लगाव बार-बार होता है। स्वरों की पकड़ और गुंजन का माधुर्य उनके गाने में खूब था। इस राग में द्रुत एकताल पर पं. भोलानाथ की रचना- ‘बेगी आओ मोरे श्याम’ को रागदारी के चलन में शुद्धता और सरसता से प्रस्तुत करने का अच्छा प्रयास किया। खयाल के अलावा विदूषी सविता देवी से पूरब अंग गायिकी में बनारस गायन शैली की पुख्ता तालीम ली है। बनारस की ठुमरी, चैती, कजरी, दादरा, झूला गायन एक अलग ही आस्वादन है। गुरु सविता देवी की छत्रछाया में ठुमरी अंग की गायिकी को सीखने का जिस गहराई से उन्होंने प्रयास किया है, उसकी सरस झलक श्वेता द्वारा जत ताल और राग तिलंग में निबद्ध ठुमरी ‘सैयां काहे नहीं आए’ की प्रस्तुति में दिखी। 

रचना के भाव को कई ढंग से उकेरने में विविध बोल बनाओ खास होता है। उसके लिए गायक ने सृजनशीलता का होना नितांत जरूरी है। उस रियाज से श्वेता ने एक बड़ी सीमा तक भाव भरने का सराहनीय प्रयास किया। 

दरअसल, हमारे संगीत में मानवीय प्रेम, करुणा और बंधुत्व का भाव है, जो हमारी समावेशी संस्कृति की खास चीज है। इस संस्कृति-विरासत को गुरुओं ने संगीत में सृजित करके एक अलग सौंदर्य का रूप दिया है। ये बनारस की ठुमरी में आध्यात्मिकता और भक्ति भाव में रचनाएं हैं, जिसमें एक नई ऊष्मा, ताप, शीतलता, सुगंध और मधुरता है। उम्मीद है कि श्वेता दुबे संगीत की इस विरासत को गहराई से देखें, परखें और गायन के जरिए इस धरोहर को आगे बढ़ाएं। उनके गाने के साथ तबला पर अख्तर हसन धौलपुरी, हारमोनियम वादन में जाकिर धौलपुरी और सारंगी पर तनिष धौलपुरी ने बराबर की असरदार संगत की।

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