पुरुष प्रधान कथक नृत्य में इस समय महिला नृत्यांगनाओं का दबदबा है। कथक के जिस समारोह में नजर डालो, तो नृत्यांगनाओं की छाई मिलेगी। उनमें कई नृत्यांगनाओं, सितारा देवी, रोशन कुमारी, कुमुदनी लाखिया, उमा शर्मा आदि ने कीर्तिमान भी स्थापित किए और कथक को नए संस्कार और चमक दी। इस समय युवा नृत्यांगनाओं में एक से बढ़कर एक आगे आ रही हैं। उनमें एक नाम रक्षा सिंह डेविड का है। प्रतिभा कि धनी रक्षा सिंह ने बिरजू महाराज से लेकर कई गुरुओं से इस नृत्य कि खूबियों को सीखकर अपने नृत्य में उतरा है। इस समय रक्षा एक स्तरीय गुरु के रूप में भी स्थापित हैं और अपनी संस्था नृत्यम कला संगम के जरीए बच्चों से लेकर युवा छात्रो को नृत्य का प्रशिक्षण प्रदान कर रही हैं।
हाल ही इस संस्था ने नवरंग के नाम से नृत्य का मनोरम आयोजन संचार भारती के सभागार में किया। कार्यक्रम के आरंभ में नन्हें उम्र के बच्चों से लेकर युवा छात्रो की गायन में शिफा, नयोनिका, यावही और सारा की प्रस्तुति बहुत आकर्षक और उत्साहजनक थी। उसके उपरांत सुपरिचित खयाल गायिका सुश्री नलिनी जोशी ने राग मधुकोंस को शुद्ध रागदारी में गाकर राग के स्वरुप को सहजता से दर्शाया। ताल रूपक में निबद्ध विलंबित खयाल की बंदिश – विनती सुनो मेरी और द्रुत तीनताल में छोटा खयाल की रचना- “मानों न मानों न” और श्रीराम भजन को सरसता से प्रस्तुत किया। उनके गाने के साथ तबला पर उदय शंकर मिश्र और हारमोनियम पर दामोदर लाल घोष ने लुभावनी संगत की। अगली शास्त्रीय और उपशास्त्रीय गायन पर कथक की प्रस्तुति थी। नृत्य संरचना रक्षा सिंह की थी।
नौ प्रकार के शास्त्रीय और उपशास्त्रीय गायन विधाओ पर आधारित नृत्यम कला संगम के युवा और वरिष्ठ कलाकारों के द्वारा कथक नृत्य में प्रस्तुति मोहक और दर्शनीय थी। नवरंग के अंतर्गत ध्रुपद, धमार चतुरंग, खयाल, ठुमरी, दादरा, चैती तराना और भजन को, रक्षा सिंह से लेकर रियांशी, जन्हान्वी, नव्या, गौरांगी, सानवी, अनन्या, यह्वी, नयोनिका, शिफा, उत्कर्ष, मिश्रा, अश्मिता और नंदनी शर्मा के द्वारा समूह नृत्य में प्रस्तति काफी रोमांचक और दर्शनीय थी, सुश्री रक्षा सिंह ने खयाल और चैती गायन के आधार पर सरस और भावपूर्ण नृत्य और भावाभिनय से दर्शोको को भाव विभोर किया।
भजन गायन के द्वारा भगवान कृष्णा कि विभिन्न लीलाओं का प्रदर्शन भी नृत्य में सरसता से उभरा / परम्परा कथक नृत्य की प्रस्तुति में कई दुर्लभ टुकड़े, बोल छंद, नृत्य में तिहाइयो को अनेकानेक लयो में बांधकर कर पेश करने में भी उनकी गहरी सूझ थी। परन-गत निकास , थिरकते पावों से लड़ी और लयकारी ने गहरा असर छोड़ा।