अपनी खनकती सुरीली आवाज से बनारस घराने की पहचान को दुनियाभर में मजबूत करने वाली प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी नहीं रहीं। मंगलवार को कोलकाता के बिड़ला अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। गिरिजा देवी को ‘क्वीन ऑफ ठुमरी’ भी कहा जाता है। वह 88 वर्ष की थी।
पिछले कई दिनों से बीएम बिड़ला नर्सिंग होम में उनका इलाज चल रहा था। अप्पा जी कहें या बनारस की बेटी, उनके निधन पर संगीत और कला जगत से जुड़ी कई जानीमानी हस्तियों ने गिरिजा देवी के निधन को भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए बड़ी क्षति बताया है। पीएम मोदी ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
Saddened by demise of Girija Devi ji. Indian classical music has lost one of its most melodious voices. My thoughts are with her admirers.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 24, 2017
Girija Devi ji's music appealed across generations. Her pioneering efforts to popularise Indian classical music will always be remembered.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 24, 2017
मशहूर गायिका मालिनी अवस्थी ने गिरिजा देवी के निधन की दु:खद खबर सुनने के बाद लिखा, संगीत रसविहीन हुआ, विश्वसंगीत की धरोहर पद्मविभूषण गिरिजादेवी जी प्रभुधाम को विदा हुईं। हम सब अनाथ हो गए। काशी अनाथ हो गई। प्रणाम अप्पा....।
जानिए गिरिजा देवी से जुड़ी कुछ खास बातें-
पद्मविभूषण से हुई सम्मानित
ठुमरी गायन को प्रसिद्धि के मुकाम पर पहुंचाने के लिए गिरिजा देवी को 1972 में पद्मश्री, 1989 में पद्मभूषण और 2016 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप, महा संगीत सम्मान अवॉर्ड आदि से भी सम्मानित किया गया है।
अपने घर में पहली पीढ़ी की गायिका थीं गिरिजा देवी
ठुमरी का पर्याय बन चुकीं गिरिजा देवी अपने घर में पहली पीढ़ी की गायिका थीं। उन्हें संगीत का ऐसा शौक था कि बनारस में बड़े-बड़े कलाकारों को सुनने आते थे और खुद गाना सीखते भी थे।
ठुमरी गायन को संवारने में रहा बहुत बड़ा योगदान
गिरिजा देवी का जन्म 8 मई, 1929 को बनारस में हुआ था और वे बनारस घरानों की एक प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय गायिका रहीं। ठुमरी गायन को संवारकर उसे लोकप्रिय बनाने में गिरिजा देवी का बहुत बड़ा योगदान है। संगीत की शुरूआती शिक्षा उन्होंने अपने पिता से ही ली थी।
गायन की हर मुश्किल शैलियों को उनसे कभी भी सुन सकते थे
गिरिजा देवी के संगीत के असर से कोई बच नहीं सकता था क्योंकि वो ऐसे घराने की परंपरा से आती थीं जहां चौमुखी गाना बजाना होता था। उनसे हर तरह के गायन ध्रुपद, धमार, खयाल, त्रिवट, सादरा, तराना, टप्पा जैसी मुश्किल शैलियां कभी भी सुना जा सकता था और ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती, होरी, झूला और सोहर जैसी मशहूर चीजें भी।
गायन क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए पिता का मिला साथ
यह जमाना था जब लड़कियों का मंच पर जाकर गाना अच्छा नहीं समझा जाता था, लेकिन गिरिजा के साथ तो खुद उनके पिता थे, तो फिर उन्हें किसका डर। पिता ने उन्हें लड़कों की तरह पाला। बेटी को संगीत ही नहीं घुड़सवारी, तैराकी और लाठी चलाना भी सिखाने की कोशिश की। पढ़ाई में गिरिजा का मन नहीं लगता था, लेकिन पिता ने उनके लिए हिंदी, उर्दू और इंग्लिश के टीचर रखे थे।
पति के समर्थन ने दी थी शक्ति
गिरिजा देवी ने गायन की सार्वजनिक शुरुआत 1949 में ऑल इंडिया रेडियो इलाहाबाद से की थी। उसके बाद 1946 में एक व्यापारी मधुसूदन जैन से उनका विवाह कर दिया गया। वह भी संगीत और कविता के प्रेमी थे। पति से समर्थन पाने के लिहाज से भाग्यशाली थी। शादी के एक साल बाद उन्हें एक बेटी हुई, उसके बाद भी उनके पति ने उनके संगीत के भविष्य का समर्थन करना जारी रखा।
परिवार का कड़ा विरोध झेलना पड़ा था
बताते हैं कि गायन को सार्वजनिक रूप से अपनाने के लिए उन्हें अपने परिवार का कड़ा विरोध झेलना पड़ा था। उन्हें अपनी मां और दादी से विरोध का सामना करना पड़ा, क्योंकि यह माना जाता था कि कोई उच्च वर्ग की महिला को सार्वजनिक रूप से गायन का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। हालांकि गिरिजा देवी ने प्रदर्शन करने से मना कर दिया, लेकिन 1951 में बिहार में एक संगीत कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति दी।
फिल्म में भी किया काम
ठुमरी क्वीन गिरिजा देवी ने फिल्म ‘याद रहे’ में भी काम किया था। उन्होंने ध्रुपद, ख्याल, टप्पा, तराना, सदरा, ठुमरी, होरी, चैती, कजरी, झूला, दादरा और ठुमरी के साहित्य का अध्ययन कर अनुसंधान भी किया।
पहली बार कलकत्ता में कॉन्सर्ट किया
1952 में ही पहली बार कलकत्ता में कॉन्सर्ट किया, तब से ही कलकत्ता से भी उनका गहरा नाता रहा। 1978 में कलकत्ता में आईटीसी की संगीत रिसर्च एकेडमी में उन्हें फेकल्टी के तौर पर बुलाया गया। इसके बाद से कलकत्ता गिरिजा देवी के लिए दूसरा घर बन गया। वो कलकत्ता की सैकड़ों छात्राओं को संगीत भी सिखाती थीं और खुद शानदार बंगला भी बोलती थीं।
बनारस की बेटी गिरिजा देवी का अपनी काशी नगरी से बेहद लगाव था। यदि अप्पा जी बनारस में हैं तो वह संगीत से जुड़े कार्यक्रम में शिरकत जरूर करती थीं। बढ़ियां साड़ी, चमकते सफेद बाल और मुंह में पान का बीड़ा, जिस किसी भी कार्यक्रम में जाती, तो हमेशा यही कहती संगीत एक शास्त्र, योग, ध्यान-साधना है।