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नृत्य में गुरु-शिष्य की समृद्ध परंपरा

जब कोई व्यक्ति कला के क्षेत्र में दाखिल होता है तो वह सहज ही सफल कलाकार बनने का सपना देखने लगता है।...
नृत्य में गुरु-शिष्य की समृद्ध परंपरा

जब कोई व्यक्ति कला के क्षेत्र में दाखिल होता है तो वह सहज ही सफल कलाकार बनने का सपना देखने लगता है। लेकिन कला में कौशल्य अर्जित करने के लिए सार्थकता के साथ निरंतर प्रयास करना पड़ता है। इस समय संगीत- नृत्य के क्षेत्र में कई  उस्ताद और गुरु हैं जो पूरी निष्ठा और लगन से प्रशिक्षण प्रदान करके शिष्यों को प्रतिभावान बना रहे हैं। उनमें एक ओड़िशी नृत्य की मशहूर नृत्यांगना और गुरु शोरेन लावेन हैं। पांच दशक पहले मूल अमेरिका की शोरेन भारत में नृत्य कलाओं को सीखने आई और यहीं की माटी में रच-बस गई। कई नृत्य शैलियों को सीखते हुए आखिर में वे ओड़िशी नृत्य से जुड़ गई। सुविख्यात ओड़िशी गुरु केलुचरण महापात्र के अधीन लंबे समय तक पूरे लगन से उन्होने इस नृत्य की बारीकियों को बखूबी से सीखा और कुशल नृत्यांगना के रूप में अपने को स्थापित किया। इस समय एक सुयोग्य गुरु के रूप में भी उनकी पहचान है उनसे सीख रहे कई शिष्यों में एक होनहार शिष्या हैं सुश्री पूजा कुमार गुरु से नृत्य के हर पक्ष को गहराई से सीखकर और साधकर पूजा एक कुशल नृत्यांगना के रूप में उभरी हैं। शोरेन के अलावा पूजा प्रखर नर्तक विश्वनाथ भंगराज से भी नृत्य सीख रही हैं हाल ही इण्डिया हबिटेट सेंटर के समागार में पूजा कुमार के नृत्य का मनोरम प्रर्दशन हुआ। उन्होंने नृत्य का आरंभ पारंपरिक भक्तिपूर्ण रचना मानक्य वीणा मंगला चरण से किया। इस प्रस्तुति में मां धरती और विद्या और संगीत की देवी सरस्वती की आराधना और प्रणाम का भाव निहित था। रचना की संकल्पना में सारे विश्व की मातृ देवी के असीम रूप, श्लोक उच्चारण में ईश्वर गुरु और दर्शको को त्रिखंडी प्रणाम व अभिवादन की जो परंपरा ओड़िशी नृत्य में है। उसे पूजा ने भक्ति भाव में समर्पित होकर तन्मयता से प्रस्तुत किया। मानक्य वीणा मंगला चरण की नृत्य संरचना गुरु केलु चरण महापात्र द्वारा और इसे संगीत से पं. मुनेश्वर मिश्र ने संवारा था। यह राग मालिका में ताल जति और एकताली पर राग पहाड़ी मालकौस, बागेश्री और दुर्गा मेें निबद्ध था। इसके उपरांत उडिया कवि बनमाली दास की काव्य रचना पथ चारी की प्रस्तुति हुई। राग जागिया और एकताल पर आधारित रचना के भाव में गांव की सुकोमल सुन्दर छोरी राधा का कृष्णा के प्रति आकर्षण, रास्ते पर मिलन में दोनो का प्रेम भरा संवाद छेड़छाड़ राधा द्वारा फूलो को तोड़ने की इच्छा, स्नान करने बाद भगवान सूर्य की प्रार्थना करते समय वह कृष्णा को संकेत देती है कि मेरी तरफ टकटकी लगाकर मत देखना क्योंकि मै चन्द्रबली नहीं हॅूं। इस प्रस्तुुति में नायिका के संचारी में श्रृंगारिक भावो को नृत्य और अभिनय भाव की अभिव्यक्ति में पूजा की गहरी सूक्ष्म थी। राग शंकरा बरनम पर आधारित पारंपरिक शुद्ध नृत्य पल्लवी को सही लीक और दिशा में पूजा ने प्रस्तुत कि नृत्य में उनका अंग संचालन, चैक  त्रिभंगी और विविध गतियों में चलन शुद्ध और सुन्दर था। अगली प्रस्तुति में संत कवि जयदेव के गीत गोविंद के अष्टपदी से उद्धत प्रसंग - चन्दन चर्चित की पूजा द्वारा भावपूर्ण प्रस्तुति थी गुरु केलु चरण महापात्र की नृत्य संरचना में निबद्ध इस रचना में राधा की सखि उसे बताती है कि तुम्हारा प्रियतम अन्य गोपियों के साथ अठखेलियां कर रहा है गोपियां उन्हे शहद चखा रही है। यह सुनकर कृष्ण की प्रतीक्षा में सजी-धजी बैठी राधा की जो मनोदशा है उसका मार्मिक चित्रण पूजा कुमार ने नृत्य और अभिनय के जरिए किया। आखिर में पारंपरिक मोक्ष की प्रस्तुति भी सरस थी।

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