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मणि मोहन की कविताएं

अब तक दो कविता संग्रह और एक अनुवाद की पुस्तक प्रकाशित। कविता संग्रह, शायद पर म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा वागीश्वरी सम्मान। सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित।
मणि मोहन की कविताएं

सुबह

आज फिर खुली रह गई

नींद की खिड़की

आज फिर घुस गया

बेशुमार अंधेरा भीतर तक

आज फिर जहन में

तैरते रहे

शब्द और सपने

अंधकार की सतह पर

आज फिर

सुबह हुई

इस अंधेरे को

उलीचते-उलीचते।

पुताई करते हुए एक खयाल

कितनी भी दक्षता और तन्मयता के साथ की जाए घर की पुताई

रह ही जाते हैं

कुछ कोने खुरदरे

जो हर बार रंगीन होने से बच जाते हैं

पेंट की आखरी बूंद खत्म होते ही

अचानक हमारी निगाह पड़ती है

इन छपकों पर

और ये मुस्कराते हुए जान पड़ते हैं

मानो कह रहे हों

बची रहने दो

घर में थोड़ी सी जगह

दुख और उदासी के लिए भी।

दु:स्वप्न

देखना एक दिन

नदी आएगी

हमारे शहरों में

गुस्से से फुंफकारती

और बहाकर ले जाएगी

अपनी रेत

देखना इसी तरह

किसी दिन

समुद्र भी घुस आएगा

हमारे घरों में

और बहाकर ले जाएगा

अपना पूरा नमक

देखना किसी दिन

सच न हो जाए

इस अदने से कवि का

यह दु:स्वप्न।

ज्ञानी जी

सुनो ज्ञानी जी!

एक ज्ञान की बात सुनो

जिस स्त्री के साथ रह रहे हो तुम

पिछले तीस बरस से

वह तुमसे प्रेम नहीं करती

सुनो ज्ञानी जी!

एक भेद की बात सुनो

इस स्त्री के मन में

एक अंधेरा कोना है

जहां एक लाश सड़ रही है

बरसों से

और अब अंतिम बात

मैं इस स्त्री से...

खैर जाने दो

क्या फर्क पड़ता है

तुम तो मर चुके हो

बरसों पहले।

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