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पुस्तक समीक्षा : 'समय से परे स्वर छंदों की यात्रा'

लब्ध प्रतिष्ठ सरोद वादक तथा संगीत इतिहासकार, प्रो सी एल दास द्वारा बिहार, विशेष रूप से पटना की...
पुस्तक समीक्षा : 'समय से परे स्वर छंदों की यात्रा'

लब्ध प्रतिष्ठ सरोद वादक तथा संगीत इतिहासकार, प्रो सी एल दास द्वारा बिहार, विशेष रूप से पटना की सांस्कृतिक यात्रा पर लिखित पुस्तक 'समय से परे स्वर छंदों की यात्रा' नाम से प्रकाशित हुई है।

कनिष्क पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली से प्रकाशित यह किताब, 'समय से परे स्वर छंदों की यात्रा' दरअसल संगीत विद्वान प्रो सी एल दास के पटना, बल्कि पूरे बिहार के सांस्कृतिक परिदृश्य और गतिविधियों से जुड़ी स्मृतियों का एक संकलन है। 

 

प्रो सी एल दास एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे। देश की आजादी के बाद के वर्षों में बिहार में जो सांस्कृतिक परिदृश्य था और प्रदेश में संगीत परंपरा तथा संगीतकारों की जो दशा थी, उसे एक दिशा देने में उन्होंने भूमिका निभाई थी। 

 

प्रो दास अंग्रेजी साहित्य के अध्यापक रहे, लेकिन उनके व्यक्तित्व का विस्तार कई क्षेत्रों में था। वे सरोद वादक, पद्म विभूषण उस्ताद अल्लाउद्दीन खाँ के शिष्य थे और प्रो दास के बहाने ही मैहर घराने की संगीत परंपरा बिहार आई। साथ ही, बिहार में कला लेखन की नींव में रहे थे वो। अपने कौलेज के दिनों से ही उनहोंने कला लेखन की शुरूआत कर दी थी।हाथरस, उत्तर प्रदेश से प्रकाशित संगीत पत्रिका में उनहोंने 1950 के दशक में ही आकाशवाणी के अखिल भारतीय संगीत समारोह की समीक्षा तथा बिहार तथा देश के अन्य के संगीतकारों पर फीचर लिखना शुरू कर दिया था। और 1960 के दशक से उन्होंने बिहार के समाचार पत्रों में कला लेखन की शुरुआत की। 

 

साथ ही, वे एक कुशल संगीत समारोह आयोजक थे और एक उदारमन गुरु भी। इन विविध भूमिकाओं को जीते- निभाते, प्रो सी एल दास ने पटना और बिहार के अन्य शहरों में शास्त्रीय संगीत परंपरा और संगीतकारों की जो परिस्थिति देखी, और यहाँ के सांस्कृतिक गतिविधियाँ को जैसा उनहोंने देखा- सुना, किया और जिया, उसे उसी रूप में पाठकों से साझा किया है इस किताब में। 

 

वैसे इस पूरे संकलन का नायक मूलतः पटना है जिसके इर्द गिर्द घूमती है शास्त्रीय संगीत के दिग्गज कलाकारों की गतिविधियां। यहां गज़ल साम्राज्ञी बेगम अख्तर की पटना और पटना वासियों से जुड़ी बहुत ही रोचक घटनाएँ भी हैं और दिग्गज ख्याल गायिका रोशन आरा बेगम के पटना सिटी के कचौरी गली में बिताए बचपन की बातें भी।

 

पंडित रवि शंकर के पटना में बिताए दिनों की यादें भी हैं। बल्कि एक पूरा चैप्टर ही है पटना से उनके प्रेम-लगाव पर।इस किताब में पद्म विभूषण उस्ताद अल्लाउद्दीन खाँ के पटना प्रवास की विस्तृत चर्चा है। उनपर आधारित चैप्टर में कई दुर्लभ तस्वीरें भी हैं। साथ ही, बिहार के ध्रुपद गायक, पंडित रामचतुर मालिक से लेकर भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी की पटना से जुड़ी यादें भी हैं।और जिन्होंने पटना में होनेवाले दशहरा संगीत समारोह की चर्चा देखी या अपने बुजुर्गों से सुनी है, उनके लिए काफी रोचक होगी यह किताब। पटना के उन आयोजनों की चर्चा विस्तार से की गई है यहाँ और उसकी बहुत तस्वीरें उपलब्ध हैं यहाँ।आरंभ के कुछ चैप्टर में दरभंगा राज के अनन्य संगीत प्रेम और कला संरक्षण पर भी लंबी चर्चा है।पूरे तौर पर कहें तो यह किताब बिहार की सांस्कृतिक यात्रा के उन अनछुए पहलू का दस्तावेजीकरण है जिसने बिहार को एक सांस्कृतिक पहचान दिलाई थी और जिसकी नींव पर आज भी बिहार अपनी सांस्कृतिक साख बनाए हुए है।

 

इस किताब में देश के दिग्गज कलाकारों और संगीत समारोहो की दुर्लभ तस्वीरें हैं। लगभग सभी तस्वीरें प्रो सी एल दास द्वारा ली गई है। वे एक शौकिया फोटोग्राफर थे। लेकिन उनके द्वारा ली गई तस्वीरें आज आजादी के बाद के वर्षों में बिहार में सांस्कृतिक परिदृश्य से रूबरू कराने का एक औथेंटिक जरिया बन गईं हैं।

 

इस किताब को बिहार, विशेष रूप से पटना की सांस्कृतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण और मौलिक श्रोत माना जा सकता है। और युवा पीढ़ी के लिए विशेष महत्वपूर्ण है यह किताब यहाँ उन्हे बिहार और पटना की संस्कृति के बारे मे विस्तृत जानकारी मिलेगी। 

 

यह किताब 'समय से परे स्वर छंदों की यात्रा'' बिहार की सांस्कृतिक यात्रा का दस्तावेजीकरण है। दरअसल बिहार के इंटैंजिबल हेरिटेज के जिन पहलुओं की चर्चा यहाँ की गई है, वह कहीं और शायद ही लिखित रूप में उपलब्ध हो। बहुत कम लिखा गया है उन विषयों और व्यक्तित्व पर। इस किताब के माध्यम से प्रो सी एल दास ने बिहार की उस सांस्कृतिक धरोहर को संभाला और सहेज कर महत्वपूर्ण काम किया। इस किताब का संपादन वरिष्ठ कलाकार और लेखिका, डाॅ रेखा दास तथा कला लेखिका, रीना सोपम ने किया है और इसके कवर पेज का लेआउट तथा पूरे किताब की डिजाईनिंग वरिष्ठ कलाकार श्यामल दास ने किया है। 

 

यह किताब अमेज़न पर भी उपलब्ध है।

 

पुस्तक: समय से परे स्वर छंदों की यात्रा 

लेखक: प्रो सी एल दास 

प्रकाशक: कनिष्क पब्लिशिंग हाउस , दिल्ली 

मूल्य: 850 रुपये

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