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कोशिश करने वालों की सच में हार नहीं होती

'कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती' एक सशक्त रचना है। इस रचना को हरिवंश राय बच्चन की रचना के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। इस रचना के बारे में काफी समय से मतभेद है कि यह रचना हरिवंशराय बच्चन की है या निराला की। हमने निराला और बच्चन की रचनावली के सभी खंड खंगाले लेकिन यह रचना कहीं नहीं मिली।
कोशिश करने वालों की सच में हार नहीं होती

बच्चन रचनावली के संपादक अजित कुमार ने संपर्क करने पर बताया, ‘यह बच्चन रचनावली में नहीं है पर एकाध जगह इसे उनके नाम से जुड़ा हुआ मैंने भी पाया, मैं भी तब से पता करने की कोशिश कर रहा हूं।’

अमेरिका से डॉ. कविता वाचक्नवी ने जोर देकर कहा था कि यह रचना सोहनलाल द्विवेदी की ही है। वह कहती हैं, ‘निराला जी की रचना तो यह किसी भी तरह हो ही नहीं सकती, पता नहीं किसी ने इसे कह कैसे दिया और दूसरों ने इसे मान कैसे लिया। निराला जी की भाषा और शैली से इसका मेल नहीं है। किसी भी भाषा वैज्ञानिक या शैली वैज्ञानिक से इसकी परीक्षा करवा लीजिए। कविता का इतिहास जिसने भी पढ़ा है या जानते हैं, वे भी दावे के साथ कह सकते हैं कि यह किस कालखंड की रचना होगी। अतः यह तय है कि यह रचना निराला जी की नहीं हो सकती। शेष दोनों में से भी इसका शिल्प, शैली, भाषा और वस्तु सभी, यदि किसी रचनाकार से मिलती हैं तो वह है, सोहन लाल द्विवेदी जी।’

शैली और भाषा की दृष्टि से सोहनलाल द्विवेदी इस रचना के प्रबल दावेदार हैं। कुछ काव्य पर पकड़ रखने वाले लोग इसके शिल्प और शैली को देखते हुए इसे बच्चन या निराला की रचना न मानकर, बहुत पहले से यह कहते रहे हैं कि यह रचना सोहनलाल द्विवेदी की रचना है। हमने सोहनलाल द्विवेदी की रचनाएं खोजना शुरू कीं। हमारे साथ अन्य साथियों ने भी इसमें सहायता की। वशिनी शर्मा ने अपने नेटवर्क में पूछताछ की, तो प्रवीण रघुवंशी ने सोहन लाल द्विवेदी की अधिक से अधिक साहित्य-कृतियों की जानकारी उपलब्ध करवाई। फिर भी इस रचना का मूल स्रोत हाथ न लगा। हम द्विवेदी जी की समस्त कृतियां नहीं जुटा पाए।  सोहनलाल द्विवेदी ने बाल-साहित्य भी बहुत लिखा है जो हमें उपलब्ध न हो सका।


इस संदर्भ में 22 फरवरी 2010 को देवमणि पांडेय ने अपने ब्लॉग पर इस बारे में लिखा था,

"लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती


मैंने हिंदी जगत के अपने साथियों से पूछा था कि ये पंक्तियां किसकी हैं ? अधिकांश मित्रों ने इसके रचनाकार का नाम डॉ. हरिवंशराय बच्चन बताया था। शायद सभी ने इंटरनेट पर उपलब्ध सूचना का इस्तेमाल किया। इस लिए कहा जा सकता है कि इंटरनेट पर उपलब्ध हर सूचना सच नहीं होती। इसके वास्तविक रचनाकार का नाम सोहनलाल द्विवेदी है। महाराष्ट्र पाठ्य पुस्तक समिति के अध्यक्ष डॉ.रामजी तिवारी ने बताया कि लगभग 20 साल पहले श्री अशोक कुमार शुक्ल नामक सदस्य ने सोहनलाल द्विवेदी की यह कविता वर्धा पाठ्यपुस्तक समिति को लाकर दी थी। तब यह कविता छ्ठी या सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल की गई थी। समिति के रिकार्ड में रचनाकार के रूप में सोहनलाल द्विवेदी का नाम तो दर्ज है मगर एक रिमार्क लगा है कि 'पता अनुपलब्ध है।'  इसके कारण कभी इसकी रॉयल्टी नहीं भेजी गई। कानपुर के मूल निवासी सोहनलाल द्विवेदी का नाम ऐसे कवियों में शुमार किया जाता है जिन्होंने एक तरफ़ तो आज़ादी के आंदोलन में सक्रिय भागीदरी की और दूसरी तरफ देश और समाज को दिशा देने वाली प्रेरक कविताएं भी लिखीं। मुंबई में चाटे क्लासेस ने अपने विद्यार्थियों के उत्साहवर्धन के लिए इस कविता का सर्वाधिक इस्तेमाल किया। ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म में भी इस कविता का बहुत सुंदर फिल्मांकन किया गया। अगर हम इस कविता के साथ सोहनलाल द्विवेदी का नाम जोड़ सकें तो यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

23 जुलाई 2010 को पूनम राय नाम की युवती ने एक ट्विटर के माध्यम से अमिताभ से यह सवाल किया, “यह रचना आपके पिताजी ने लिखी है या निरालाजी ने?”

उसी दिन अमिताभ बच्चन ने इस प्रश्न के उत्तर में ट्विट किया, ‘बाबूजी ने लिखी है।’

अमिताभ ने इस रचना को स्वयं पढ़ा भी है जिसके कारण और अधिक लोग मानते हैं कि यह हरिवंशराय बच्चन की ही रचना है। अमिताभ के अतिरिक्त अनुपम खेर ने भी इस रचना को प्रभावशाली रूप में पढ़ा है। उनके ट्विटर पर अब भी यह रचना बिना किसी रचनाकार के नाम के दी गई है और इसे उनकी आवाज में सुना भी जा सकता है। यही नहीं, लोकसभा के 2014 चुनावों में जाने माने अभिनेता जावेद जाफरी आम आदमी पार्टी की ओर से उत्तर प्रदेश की लखनऊ सीट के उम्मीदवार थे।  उन्होंने अपने चुनावी दौरे के समय 'कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती' कविता बहुत प्रचारित की थी।

नि:संदेह यह कविता लोकप्रिय है ही, इसे शैक्षिणक संस्थाओं के अतिरिक्त फिल्मी सितारों से लेकर मीडिया तक उपयोग करते रहे हैं लेकिन इतनी सशक्त रचना का वास्तविक रचनाकार भला इतने समय तक क्योंकर विदित न था। जब भी इस रचना की बात उठती इसके रचनाकार के बारे में मतभेद होता लेकिन हमारी शैक्षणिक संस्थाएं अपने दायित्व का किस प्रकार निर्वाह करती हैं इसका एक उदाहरण यहां है।

हरिवंशराय बच्चन को उनके कविता–संग्रह ‘दो चट्टानें’ के लिए 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। विद्यालय के पाठ्यक्रम में शैक्षणिक तौर पर इसे 1968 में मिला पढ़ाया जाता रहा। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) 2003 की पुस्तक, 'वासंती भाग 2'  जो कक्षा 12 के लिए थी, में हरिवंशराय बच्चन को साहित्य अकादमी पुरस्कार 1969 में मिला बताया गया है। बाद में इसकी भूल-सुधार की अपेक्षा वर्ष ही हटा दिया गया। 

हमने देवमणि पांडेय (जिन्होंने 22 फरवरी 2010 को अपने ब्लॉग पर इस रचना की चर्चा की थी) को 3 दिसंबर को एक ई-मेल किया जिसमें हमने यह चर्चा की थी कि ‘सोहन लाल द्विवेदी की शैली से यह रचना अवश्य मेल खाती है। मैं आपसे पूछना चाहता था कि क्या डॉ रामजी तिवारी ने स्वयं आपसे यह बात बताई थी या यह किसी समाचार में प्रकाशित हुई थी कि यह द्विवेदी जी की रचना है।’

हमने उन्हें सूचित किया, ‘यह रचना इस समय महाराष्ट्र के 6वीं कक्षा के पाठ्यक्रम में बिना रचनाकार के नाम के प्रकाशित है। यदि डॉ० तिवारी ने यह आपको 2010 में बताया था तो यह बिना नाम के क्यों प्रकाशित है? संभव है साक्ष्य के अभाव या किसी अन्य कारणों से नाम हटा दिया गया हो?’

इधर, अभी भी कई लोग यह खोजते रहे कि यह रचना किसकी है? इस रचना के बारे में जानकारी एकत्रित करने के बाद हमने अमिताभ बच्चन से 2 दिसंबर 2015 को ट्विटर के माध्यम से यह जानकारी मांगी, ‘क्या 'कोशिश करने वालों की....' कविता का मूल स्रोत बता सकते हैं? यह निराला जी एवं सोहनलाल द्विवेदी की भी कही जा रही है।’


अमिताभ बच्चन ने 3 दिसंबर 2015  को एक ट्विट जारी किया। अमिताभ जी ने स्पष्ट लिखा है, ‘एक बात आज स्पष्ट हो गई, ये कविता है, बाबूजी की लिखित नहीं है। इस के रचयिता सोहन लाल द्विवेदी हैं। कृपया इस कविता को बाबूजी, डॉ हरिवंश राय बच्चन के नाम पर न दें। अमिताभ ने यही अपील फेसबुक पर भी की।

इस रचना के शब्द जितने प्रेरक हैं, उतने सार्थक भी। अंततः एक ईमानदार प्रयास का परिणाम निकला। रचनाकार को न्याय मिला है। इतने बरसों बाद अब यह विवाद विराम ले रहा है। वास्तविक रचनाकार के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए अब यह रचना सोहनलाल द्विवेदी की रचना के रूप में प्रकाशित की जानी चाहिए।

 

रोहित कुमार 'हैप्पी'

आउटलुक के लिए यह खबर न्यूजीलैंड से रोहित कुमार ‘हैप्पी’ ने भेजी है। वह न्यूजीलैंड से प्रकाशित विश्व की पहली हिंदी इंटरनेट पत्रिका 'भारत-दर्शन' के संपादक हैं। रचना के वास्तविक रचनाकार को उसका हक दिलाने के लिए रोहित कुमार ने काफी प्रयास किए हैं। 

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