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संस्कृत सहित कई भाषाओं को अनिवार्य बनाने पर संघ सक्रिय

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े एक संगठन ने शिक्षा नीति में बदलाव कर संस्कृत या अन्य शास्त्रीय भाषाओं जैसे अरबी, फारसी, लैटिन और ग्रीक को कम से कम चार वर्ष तक स्कूली शिक्षा में अनिवार्य बनाने की सलाह दी है।
संस्कृत सहित कई भाषाओं को अनिवार्य बनाने पर संघ सक्रिय

शिक्षा जगत में नीतिगत बदलावों की सिफारिश करने वाले मसौदे में भारतीय शिक्षण मंडल ने एक भाषा नीति का प्रस्ताव रखा है जिसके तहत सामान्य शिक्षा के पहले आठ सालों में मातृभाषा पहली भाषा होगी जबकि हिंदी, संस्कृत या अन्य राष्ट्रीय भाषाएं या अंग्रेजी को दूसरी भाषा के रूप में चुना जा सकेगा।

 

शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे संघ से जुड़े संगठन ने इस मसौदे पर जनता के सुझाव मांगे हैं। भारतीय एड्यूकेशन आउटलाइन शीर्ष वाले इस दस्तावेज के अनुसार, यदि कोई छात्र अंग्रेजी नहीं पढ़ना चाहता है तो उन्हें ऐसा करने की छूट होनी चाहिए।

 

हालांकि संगठन के मसौदे के अनुसार, अगले चार वर्षों की शिक्षा के दौरान विद्यार्थियों को  हिंदी या अंग्रेजी भाषा पढ़े बगैर अपनी शिक्षा पूरी करने का विकल्प मिलना चाहिए। लेकिन उसके लिए संस्कृत या किसी अन्य शास्त्रीय भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य होगा।

 

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