कुछ कहता है शहर
देश के पूर्वी इलाके में एक ऐसा शहर हुआ करता था, जिसके अधीन न सिर्फ बंगाल, बिहार और ओडीशा थे, बल्कि आज का संपूर्ण बांग्लादेश भी यहीं से शासित हुआ करता था, जो क्षेत्रफल में प्राचीन रोम से भी बड़ा था और अब मात्र एक सब-डिवीजन में सिमट कर रह गया है। यह झारखंड का राजमहल है। गंगा नदी झारखंड में सिर्फ यहीं बहती है। राजमहल वर्तमान में संथाल परगना के जिले साहेबगंज का सब-डिवीजन है, फिर भी भारतीय लोकतंत्र में संसदीय और विधानसभा का क्षेत्र राजमहल नाम से ही जाना जाता है।
गंगा से रहा जीवित
गंगा भले ही बहुत मैली हो चुकी हो, राजमहल में जो गंगा बहती है, उसमें डाल्फिन आज भी पाए जाते हैं, जो जीव-वैज्ञानिकों के अनुसार सिर्फ साफ पानी में जीवित रह पाते हैं। फरक्का बराज के निर्माण के बाद यहां गंगा थोड़ी स्थिर-सी हो गई और परिणाम यह हुआ कि बंगालियों की पहली पसंद हिलसा मछलियां गायब हो गईं। आज भी सदियों से चली आ रही फेरी सर्विस यहां मौजूद है, जो राजमहल गंगा तट से लोगों को बंगाल के मालदा जिले के मानिकचक घाट तक ले जाती है। इसके दृश्य याद दिलाते हैं बंदिनी फिल्म के नायक-नायिका अशोक कुमार तथा नूतन के प्रेम कहानी की। आज राजमहल शहर से थोड़ी दूर नदी पर एक पोर्ट का भी निर्माण किया जा रहा है।
अंग्रेज तो इसी रास्ते शहर में आए थे
ऐसे ही सैकड़ों नावों-जहाजों का सहारा लेकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी राजमहल से कोलकाता की तरफ बढ़ी थी। उन्होंने 1773 में राजमहल को एक जिले का दर्जा देकर अगस्टस क्लीवलैंड (1754-1783) को मात्र 19 वर्ष की आयु में यहां का असिस्टेंट कलेक्टर बना दिया। क्लीवलैंड ब्रिटिश भारत में सबसे कम उम्र का कलेक्टर था, जिसने मात्र 29 वर्ष की उम्र में इस संसार से विदा ली। उसी ने पहाड़िया जन-जाति के प्रति अपनी सुधारवादी नीतियों को 1780 में लागू किया, जिसे देख आजादी के बाद बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने एक अलग पहाडि़या विभाग की स्थापना कर दी। फिर जब 1983 में साहेबगंज अलग जिला बना तब राजमहल को उसका सब-डिवीजन बना दिया गया।
मात्र एक कॉलेज, वह भी अनुदान वाला
1980 में कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने यहां के व्यापारी बाबूलाल-नंदलाल बोहरा की सहायता से एक कॉलेज की स्थापना की, जो पहले भागलपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध था। फिर जब 1992 में संथाल परगना में एक अलग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तब राजमहल कॉलेज को उससे जोड़ दिया गया। राजमहल कॉलेज में तीन हजार से भी अधिक छात्र-छात्राएं हैं। मुट्ठी भर शिक्षक पिछले 40 वर्षों से इस कॉलेज को चला रहे हैं, लेकिन आज तक इसे अंगीभूत नहीं किया गया।
दस टकिया रेल
राजमहल की भाषा बंगाल से प्रभावित है, तो लोग रुपये को आज भी टका बोलते हैं। आप भारतीय रेल के इतिहास को देखेंगे तो पहली ट्रेन 1853 में बंबई से थाणे की बताई जाती है, मगर राजमहल में 1851 में ही रेल लाइन का काम शुरू हुआ था। ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी की स्थापना 1 जून 1845 को हुई और उसे राजमहल से कलकत्ता तक रेल लाइन बिछाने की जिम्मेदारी दी गई। लेकिन वह कंपनी कुछ दिनों के लिए दिवालिया हो गई, वरना भारत की पहली ट्रेन राजमहल में ही खुलती। यह रेल लाइन 1859 में बन कर तैयार हुई, जिस पर ट्रेन राजमहल से तीनपहाड़ स्टेशन (मात्र 12 किलोमीटर) तक आज भी चलती है, जिसका किराया मात्र 10 टका है। तीनपहाड़, पटना और हावड़ा के बीच एक छोटा-सा जंक्शन है। अस्सी के दशक में मात्र 12 किलोमीटर चलने वाली यह ट्रेन अधिकारिक रूप से 57 मिनट का समय लेती थी, अब आधे घंटे का।
इतना गौरवशाली शहर कोई नहीं
मुगल बादशाह अकबर के प्रधान सेनापति मान सिंह ने 1592 में राजमहल शहर को बंगाल, बिहार, ओडीशा और वर्तमान बांग्लादेश की राजधानी बनाया था। वह यहां का पहला गवर्नर भी रहा। राजमहल ने तब खूब तरक्की की, जब शाहजहां ने 1639 में अपने पुत्र शाह शुजा को गवर्नर बनाया। लेकिन औरंगजेब के साथ हुए सत्ता के संघर्ष में 1659 में पूरे राजमहल को जला दिया गया। फिर राजधानी ढाका (बांग्लादेश) चली गई। राजमहल की सारी चमक जाती रही। फिर भी मुगल जमाने के कुछ तांगे, मिठाइयां, पान, मछली, रहन-सहन और भाषाएं आज भी जीवित हैं। राजमहल शहर खुद के बारे में बहुत कुछ कहना चाहता है, पर इसकी सुनता कौन है?
कोलफील्ड सिर्फ नाम का
संथाल परगना का पूरा ललमटिया इलाका कोयले के खदानों से भरा पड़ा है, जहां अब एक बड़े व्यापारिक घराना अडाणी का गोड्डा जिले में पावर प्लांट लग रहा है। यह सारा कोलफील्ड राजमहल कोलफील्ड के नाम से ही जाना जाता है। बस सिर्फ नाम है, ‘काला हीरा’ यहां नहीं!