मध्य प्रदेश की राजधानी से लगा हुआ सीहोर जिले का इतिहास भोपाल से भी पुराना है। भोपाल 1972 तक इस जिले की एक तहसील हुआ करता था, जिला नहीं था। एक पुराना कस्बा सीद्रपुर, सिद्धपुर या सीदपुर। चंद्रगुप्त, हर्षवर्धन, अशोक, भोज के राज्य का हिस्सा रहा। फिर पेशवाओं का राज, फिर भोपाल नवाबों के आधीन और फिर नवाबों की अंग्रेजों से 1818 में हुई संधि के बाद अंग्रेजों की छावनी यहां बनी। उसी छावनी या कंटोन्मेंट ऑफ रेजिमेंट या सीओआर का अपभ्रंश होते-होते बन गया सीहोर। 1857 में यहां सैनिक विद्रोह हुआ, ऐसा कि हवलदार महावीर कोठ और वली शाह के नेतृत्व में सिपाहियों ने अंग्रेजों को भगा कर यहां ‘सिपाही बहादुर सरकार’ बना ली, बतर्ज ‘कंपनी बहादुर सरकार।’ यह शायद अपनी तरह की पहली सरकार थी, जो 14 जनवरी 1858 तक चली, जब जनरल हृयूरोज ने आकर यहां बर्बरतापूर्वक विद्रोह को कुचला और 356 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। यह जालियांवाला बाग जैसा ही बर्बर हत्याकांड था। सीहोर पूरे देश के साथ 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र नहीं हुआ, क्योंकि भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह ने विलय पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। लोगों के आंदोलन के बाद 1 जून 1949 को सीहोर ने स्वतंत्रता की सांस ली और भारत का हिस्सा बना।
गेटवे ऑफ मालवा
गेटवे ऑफ मालवा कहा जाने वाला सीहोर शहर दो हिस्सों में बंटा हुआ है, प्राचीन कस्बा और अंग्रेजों की 1818 में बसाई गई छावनी। अब भी यही नाम हैं, छावनी और कस्बा। छावनी में अंग्रेजों की बनाई इमारतें हैं, तो कस्बे में पेशवाकालीन स्थापत्य। उल्टे शंकु के आकार के बारह खंभे, जिनमें कुछ आज भी बचे हैं, छावनी और कस्बे को अलग करते हैं, क्योंकि छावनी में अंग्रेजों और कस्बे में उनके मित्र नवाबों का शासन था। कस्बे में मूल नागरिक रहते हैं, तो छावनी में अंग्रेजों के बसाए मारवाड़ी, हरियाणवी, गुजराती परिवार, जिनको अंग्रेजों ने दुकानें लगाने के लिए बाहर से लाकर बसाया था। कस्बे में स्थित राम मंदिर, शिव मंदिर, हनुमान गढ़ी जैसे मंदिर पेशवाकालीन स्थापत्य का खूबसूरत नमूना हैं। लेकिन सीहोर की प्रसिद्धि है उस पेशवाकालीन चिंतामन गणेश मंदिर के कारण, जो कस्बे के एक छोर पर बना है। कहते हैं, पूरे देश में इस प्रकार के केवल चार मंदिर हैं। आज यह गणेश मंदिर सीहोर की देश भर में पहचान है।
नमक चौराहे के कवि सम्मेलन
सीहोर में कवि सम्मेलनों की लंबी परंपरा रही है। यहां का नमक चौराहे का कवि सम्मेलन, जो अब बंद हो गया है, इतना प्रसिद्ध था कि देश भर के कवि उसमें कविता पढ़ने को आतुर रहते थे। यह भी था कि नए उभरते कवि इस मंच पर पढ़ने के लिए जेब से पैसा देने को तैयार रहते थे। हिंदी के सभी बड़े कवियों बच्चन, नीरज, सुमन, भरत व्यास ने इस कवि सम्मेलन के मंच पर काव्य पाठ किया है। विशेषता यह थी कि चौराहे के एक तरफ पुरुष और एक तरफ महिलाओं के बैठने की व्यवस्था रहती थी। कवि सम्मेलन सूरज निकलने तक चलते रहते थे।
कालिदास से नाता
कहा जाता है कि कालिदास ने अपने कुछ ग्रंथों की रचना सीहोर में ही की थी। अंग्रेजों के गजेटियर के अनुसार यहां एक प्राचीन संस्कृत विश्वविद्यालय हुआ करता था, हालांकि अब उसका कोई निशान नहीं बचा है। इस बात के संकेत मिलते हैं कि यहां संस्कृत का बड़ा अध्ययन केंद्र था। कालिदास से सीहोर के इसी रिश्ते के कारण जब पहला कालिदास समारोह आयोजित किया गया था, तो उसका शुभारंभ सीहोर में किया गया था और समापन उज्जैन में। बाद में फिर कालिदास समारोह उज्जैन का ही होकर रह गया।
सीहोर का शरबती गेहूं और कचौरियां
सीहोर की प्रसिद्धि मंदिर के कारण ही नहीं है, यहां का शरबती गेहूं इतना प्रसिद्ध है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने आटे के पैकेट पर गर्व से छापती हैं, ‘सीहोर, मध्य प्रदेश के शरबती गेहूं से तैयार।’ यहां का शरबती गेहूं देखने में एकदम सोने की तरह दमकता है। इस गेहूं के आटे की रोटियां इतनी मुलायम होती हैं कि मुंह में रखते ही मक्खन की तरह घुल जाती हैं। गेहूं के अलावा जो एक और चीज यहां प्रसिद्ध है, वह है कचौरियां। हींग डली हुई मूंग दाल की कचौरियों की इतनी प्रसिद्धि है कि सीहोर से जाने वाले मेहमान अपने मेजबान के लिए मिठाई नहीं, बल्कि कचौरियां लेकर जाते हैं। फिल्म अभिनेता गोविंदा एक बार सिर्फ कचौरियां खाने के लिए सीहोर आए थे।
अब हॉलीडे डेस्टिनेशन
सीहोर आज आसपास के शहरों के लिए अच्छा हॉलिडे डेस्टिनेशन बन गया है। रिजॉर्ट, वॉटर पार्क, एम्यूजमेंट पार्क, होटल, थिएटर, मंदिरों के कारण भोपाल के लोग भी छुट्टी मनाने सीहोर आते हैं। घूमते-फिरते हैं और यहां के प्रसिद्ध दाल-बाफले का आनंद लेते हैं। और हां, यकीन कीजिए, यह कस्बा डेस्टिनेशन वेडिंग के रूप में भी प्रसिद्ध हो रहा है। वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का गृह जिला तो यह है ही।