Advertisement

शांति शर्मा के गाने में अनोखी रुहानियत और तासीर

हिन्दुस्तानी संगीत में एक उत्कृष्ठ ख्याल गायिका और गुरु के रूप में विदूषी शांति शर्मा एक बड़ी...
शांति शर्मा के गाने में अनोखी रुहानियत और तासीर

हिन्दुस्तानी संगीत में एक उत्कृष्ठ ख्याल गायिका और गुरु के रूप में विदूषी शांति शर्मा एक बड़ी शाख्सियत थीं। सन 2008 में उनका असमायिक निधन हो गया। यह संगीत जगत और उनके शिष्यों के लिए बहुत बड़ा आघात था। दिल्ली संगीत रसिकों में उनको चाहने वाले बहुतेरे थे। उनके बीच शांति जी को याद करने और उनकी गायिकी को जीवंत रखने के लिए उनके पटु शिष्य मन्जीत सिंह हर साल गुरु की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। हर साल की तरह इस बार यह आयोजन त्रिवेणी कला संगम के सभागार में हुआ।

जयपुर घराने की मशहूर गायिका सुश्री देविका पंडित ने शांति जी को नमन करते हुए राग भीमपलासी से गायन की शुरुआत की। विलम्बित एक ताल में बंदिश- ‘बमन सगुण विचारो रे बिन घर आए’ को परम्परागत ठोस जयपुर गायिकी अंग में सहजता और खूबसूरती से पेश किया। उनका पूरा गाना आकार में ही घुमड़ता रहा। भरावदार और गूंज भरी आवाज में सूरों का तीनों सप्तकों के संचार में अच्छा प्रवाह था। छोटी-छोटी गमक, मुर्की, बहलावा और सुगाठित तानों, मींड के स्वरों की निकास आदि में उनका गाना परिपक्व और सूझभरा था। 

 मध्यलय तीनताल में छोटा ख्याल की बंदिश- ‘रहस्य सा कर डारी जो घर आए मोरे पिहरवा’ की बंदिश को खूबसूरत लय ताल में बांधकर उन्होंने सरसता से प्रस्तुत किया। राग मारु विहाग सुविख्यात, गायक पं. जितेन्द्र अभिषेक की रचना- ‘निरंजन-निराकार अचल अमर’ को झपताल और द्रुत एकताल में रचना कौन संग कीन्ही प्रीति और आखिर में जीतेंद्र जी का भजन- एक सुर चराचर छायो रे को भक्ति भाव में सुरीले अन्दाज से पेश किया। उनके गाने के साथ तबला पर विनोद लेले और हरमोनियम वादन में पं. विनय मिश्रा ने बेजोड़ संगत की। अगली प्रस्तुति में कथक की सुपरचित नृत्यांगना सुश्री भास्वती मिश्रा और उनकी शिष्या बेटी सुश्री इपसिता मिश्रा और शिष्य डानयल फ्रेडी का युगल नृत्य की प्रस्तुति थी। 

भास्वती ने कार्यक्रम का आरम्भ ओम नम: शिवाय से किया। शिव अराधना और दुर्गा स्तुति में दुर्गा के रूपों को रौद्रपूर्ण भाव में बहुती ही उत्तेजक और प्रभावशाली ढंग से दर्शाया। इपसिता और डानयल के युगल नृत्य को देखने से लगा कि लखनऊ घराने की कथक शैली में उनकी पुख्ता तालीम है। उसकी उम्दा झलक दोनों के नाचने में थी। थिरकन भरी लय में उनका भरापुरा नृत्य नज़र आया। परम्परागत नृत के प्रकार में ठाठ, उठान, कई प्रकार के टुकड़े बोल छन्द, तिहाईयां कई तरह का चाला, गिनती की तिहाई से लेकल लयकारी में दोनों ही अच्छा रंग बिखेरते दिखे।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad