Advertisement

केएस तूफान की कहानी - बुद्धिमत्ता

3 जून 1944 को नजीबाबाद, जिला बिजनौर में जन्म। लहरों का संघर्ष लघुकथा संग्रह। स्वप्न भंग, टूटते संवाद कहानी संग्रह। नारी - तन मन गिरवी, कब तक (नारी विमर्श), सफाई का नरक (दलित विमर्श) और अंधेरे में रोशनी (दलित संघर्ष) पर निबंध संग्रह। कई पुरस्कारों से सम्मानित।
केएस तूफान की कहानी - बुद्धिमत्ता

विनीत को मृत्यु के बाद यमराज के दरबार में पेश किया गया। दूसरे मृतकों का हिसाब-किताब पूरा होने के बाद यमराज ने विनीत की ओर घूरते हुए देखा, ‘कौन है यह और इसे कहां भेजा जाए?’ चित्रगुप्त की ओर संकेत करते हुए यमराज ने पूछा। 

‘महाराज यह विनीत है। नाम तो इसका विनीत अवश्य है, किंतु इसने मृत्यु-लोक में रहते हुए काम सब धूर्तता के किए हैं।’ चित्रगुप्त ने खाता पलटते हुए विनीत की ओर देखते हुए जवाब दिया। 

‘अच्छा! मुझे इसके अपराध ब्योरेवार सुनाओ चित्रगुप्त।’ यमराज ने क्रोधित स्वर में कहा। 

‘श्रीमान, यह व्यापारी है। जल्दी करोड़पति होने के चक्कर में इसने खूब मिलावटखोरी की है। श्रीमान, इसने पिसी मिर्च में लाल ईंट का बुरादा, पिसी हल्दी में पीली मिट्टी तथा धनिये के पाउडर में घोड़े की लीद मिलाकर बेची है। बहुत बेवकूफ बनाया है इसने उपभोक्ताओं को।’ 

सुनकर यमराज का क्रोध बढ़ गया। उन्होंने मिलावट करने वाले व्यापारी को नरक भेजने की आज्ञा देते हुए उपहासपूर्ण लहजे में कहा, ‘बहुत बुद्धिमान बनते थे न? यहां कोई बुद्धिमता काम नहीं आने वाली है। हर चीज का हिसाब होता है और बिना किसी दबाव के निर्णय सुनाया जाता है। अब जाओ और सड़ो नरक में।’ यमराज ने मनुष्य पर अपनी भड़ास निकाली। 

विनीत भी जैसे किसी अड़ियल घोड़े की तरह अड़ गया। बोला, ‘यमराज जी आप हम मनुष्यों से डरते हो, तभी तो आपने यहां मेरी आत्मा बुलाई है।’ 

यह सुनकर यमराज जी का क्रोध और भड़क गया। उन्होंने अपनी भारी-भरकम गदा पर हाथ फिराते हुए मूंछ को ताव देते हुए पूछा, ‘कहने का तात्पर्य क्या है तुम्हारा?’ 

विनीत मुस्कराते हुए बोला, ‘यमराज जी यदि आपको मेरी बुद्धि का चमत्कार देखना है, तो मुझे सशरीर बुलाकर देखिए।’ 

यमराज को भी अपने आप पर पूरा भरोसा था। उन्होंने मनुष्य की चुनौती को स्वीकार कर लिया। ‘ठीक है चित्रगुप्त इसे तत्काल छोड़ दिया जाए और पुन सशरीर हमारे समक्ष प्रस्तुत किया जाए।’ कहकर यमराज सिंहासन से उठ खड़े हुए। 

अभी यमराज विश्राम करने के लिए जा ही रहे थे कि चित्रगुप्त ने उन्हें रोक लिया। ‘महाराज अनर्थ न कीजिए। मनुष्य को हम सशरीर यहां ले आए तो गलत परंपरा पड़ जाएगी। फिर ये मनुष्य बहुत चालाक होते हैं। एक बार मनमानी हुई तो फिर होती रहेगी। कहीं ऐसा न हो कि आपका सिंहासन ही डोल उठे।’ 

‘ऐसा कुछ नहीं होगा चित्रगुप्त। तुम मेरे आदेश का पालन करते हो कि नहीं।’ यमराज ने त्योरियां चढ़ाते हुए कहा तो चित्रगुप्त के सामने आदेश मानने के सिवाय कोई रास्ता ही नहीं था।

कुछ समय पश्चात यमदूतों ने विनीत को सशरीर यमराज के समक्ष उपस्थित कर दिया। ‘हां तो धूर्त मनुष्य, अब दिखलाओ अपनी बुद्धि का चमत्कार।’ यमराज ने ऊंचे स्वर में कहा।

‘भला मेरी क्या औकात आपको चमत्कार दिखलाने की महाराज। अलबत्ता आपके नाम विष्णु भगवान का एक संदेश अवश्य है मेरे पास। विनीत ने और भी विनीत बनते हुए कहा, ‘अच्छा, लाओ दिखलाओ क्या संदेश है तुम्हारे पास?’ यमराज ने चौंकते हुए पूछा। 

विनीत ने एक पत्र यमराज को थमा दिया। जो बैकुंठ धाम का लैटर हैड था। उस पर एक आदेश लिखा था और कैंप कार्यालय क्षीर-सागर की रबर स्टैंप (मोहर) भी लगी थी। यमराज ने वह पत्र हाथ में लेते हुए पूछा, ‘क्या है यह?’ 

विनीत ने सिर झुकाकर कहा, ‘स्वयं ही पढ़ लीजिए महाराज। इतना पढ़ना तो आप जानते ही होंगे?’ आगे वह बोला, ‘ठीक से देख लीजिए महाराज। आजकल विष्णु जी क्षीर-सागर में लक्ष्मी जी के साथ विश्राम कर रहे हैं।’   

यमराज ने विनीत की बात सुनी और फिर पत्र पढ़ना प्रारंभ किया। तभी विनीत ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘जोर से पढ़िए महाराज। जरा और लोग भी सुन लें तो अच्छा रहेगा।’ 

यमराज जी ने पत्र पढ़ा। पढ़कर वह आश्चर्यचकित रह गए। वह पत्र क्या ट्रांसफर आदेश था। जिसमें यमपुरी का प्रभार विनीत को सौंपने की बात कही गई थी। 

यमराज बुरी तरह घबरा गए। उन्होंने संदेह व्यक्त करते हुए कहा, ‘किंतु विष्णु जी को जो आदेश देना होता है, वह आकाशवाणी के माध्यम से देते हैं, फिर उन्होंने यह पत्र क्यों लिखा?’ 

विनीत यमराज जी के मनोभावों को ताड़ गया था। वह परिस्थिति को समझते हुए बोला, ‘यमराज जी इसमें संदेह कैसा? आज मृत्यु-लोक में दूरसंचार क्रांति चरम पर है। सभी की जेब में मोबाइल रहता है। कहो तो मैं विष्णु जी से आपकी बात मोबाइल पर करा दूं?’ 

यमराज जी ने कभी मोबाइल का नाम नहीं सुना था। उन्होंने पूछा, ‘यह मोबाइल होता क्या है?’ विनीत जोरदार ठहाका लगाते हुए बोला, ‘बस महाराज इतने से ज्ञान के दम पर यमपुरी चलाते हो? विष्णु जी सही कह रहे थे कि हमारे यमराज अब सठिया गए हैं, उन्हें कुछ जानकारी नहीं है। हम देवता निरंतर पिछड़ते जा रहे हैं जबकि मनुष्य अपने दम पर आगे निकल गया है। यदि यही स्थिति रही तो हमें मनुष्य से ही ज्ञान उधार मांगना पड़ेगा।’ 

विनीत की बात यमराज ने ध्यान से सुनी और फिर आग्रह करते हुए पूछा, ‘किंतु भाई, यह मोबाइल होता क्या है? उसके बारे में तो कुछ बताओ।’ 

विनीत किसी विजेता की भांति अकड़कर बोला, ‘महाराज यह बड़े काम की वस्तु है। जब विष्णु जी आपको आदेश देने के लिए आकाशवाणी करते थे तब आपके आस-पास वाले लोग भी उसे सुन लेते थे। जब वह आपको डांटते थे तब आपको भी बुरा लगता था। लगता था न?’ 

‘हां लगता तो था।’ यमराज ने मासूमियत से जवाब दिया। विनीत ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा, ‘बस आकाशवाणी वाले मामले में मनुष्य ने कुछ सुधार किया है। यह ऐसा यंत्र है कि आप यदि चाहें तो ही दूसरा कोई सुन पाएगा अन्यथा नहीं। इसे चलंतू/घुमंतू दूरभाष के नाम से भी जाना जाता है। आप खाते-पीते, उठते-बैठते, लेटे हुए यहां तक की नहाते हुए भी बात कर सकते हैं। बाई द वे यदि आपको पत्र के विषय में शंका है तो मैं विष्णु जी की आकाशवाणी अपने मोबाइल पर आपको सुनवा सकता हूं।’ 

यमराज ने संदेह दूर करना चाहा मगर विनीत भी बहुत तेज था। उसने शीघ्रता से कहा, ‘क्या अभी भी आप चाहेंगे कि विष्णु जी के आदेश का उल्लंघन करें। खैर मुझे क्या, इसकी सजा और डांट भी आप ही को मिलेगी।’ 

विनीत ने दृढ़तापूर्वक कहा तो यमराज घबरा गए। उन्होंने घबराते हुए कहा, ‘नहीं। उसकी कोई आवश्यकता नहीं। आइए विराजिए।’ कहते हुए यमराज ने सदियों पुराना अपना सिंहासन छोड़ दिया। 

विनीत के सिंहासनारूढ़ होते ही समस्त यमदूत शीश झुकाकर बोले, ‘आज्ञा करें महाराज।’ 

विनीत ने अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए आदेश दिया, ‘पूर्व यमराज को सामने के पेड़ पर लटका दिया जाए। सैकड़ों वर्ष से मनोरंजन कर रहे, स्वर्गलोक वासियों को नरक में और नरकलोक वासियों को स्वर्गलोक में ट्रांसफर कर दिया जाए।’ आज्ञा का तत्काल पालन किया गया।

व्यवस्था परिवर्तन होते ही चहुंओर त्राहि-त्राहि मच गई। अप्सराओं की चीख निकल गई। देवताओं में चिल्ल-पों मच गई और इंद्रासन डोलने लगा। सभी एकत्र होकर ब्रह्मा के पास गए। वह शिव के पास गए और अंततः सब विष्णु जी के पास पहुंचे। सबका नेतृत्व कर रहे ब्रह्मा जी ने कहा, ‘यह किस प्रकार का पत्र लिख दिया भगवन। समस्त व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई है। स्वर्ग-नरक की कानून-व्यवस्था चरमरा गई है।’ 

‘कैसा पत्र? मैंने किसी को कोई पत्र नहीं लिखा।’ विष्णु ने विस्मित स्वर में कहा। संपूर्ण कथा सुनकर विष्णु मंद-मंद मुस्कराए और बोले, ‘यह मृत्यु-लोक में रहने वाला मनुष्य नामक जीव बहुत चुस्त, चालाक है। मुझे भी यह चिंता सता रही थी कि कहीं किसी दिन यह हमें हिसाब देने के बजाय हमसे हिसाब मांगने न लग जाए। आप चिंता न करें देवगण। हमारे पास इसका उपाय है।’ 

विष्णु ने मुस्कराते हुए कहा तो जैसे देवताओं के चेहरे की छिन चुकी लालिमा वापस आई। ब्रह्मा ने कहा, ‘फिर देर किस बात की भगवन। आप शीघ्र वह उपाय बताएं।’ 

विष्णु ने मंद-मंद मुस्कराते हुए लक्ष्मी की ओर देखा। वह भी मंद-मंद मुस्करा रही थीं। जबकि देवताओं का धैर्य टूटा जा रहा था। ब्रह्मा ने पुनः कहा, ‘हमें उपाय बताइए भगवन।’

‘मृत्युलोक से किसी दूसरे सशरीर मनुष्य को बुलवा लो।’ कहकर विष्णु अन्तर्ध्यान हो गए।

 

 

 

 

 

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad