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चेखव की कहानी: छुई-मुई

अंतोन चेखव (1860-1904) को रूसी साहित्य में ही नहीं बल्कि विश्व साहित्य में महानतम कहानीकारों में से एक माना जाता है। उन्होंने न केवल कहानियां लिखीं, बल्कि चार कालजयी नाटक भी लिखे, जिनमें ‘चेरी का बगीचा’ और ‘तीन बहनें’ नाटकों को अप्रतिम माना जाता है। उनकी कहानियां विश्व के समीक्षकों और आलोचकों में बहुत सम्मान के साथ सराही जाती हैं। चेखव पेशे से चिकित्सक थे। अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए उन्होंने कहानियां लिखना शुरू किया था और बाद में वह लेखक बन गए। वह कहा करते थे, डॉक्टरी मेरी धर्मपत्नी है और साहित्य प्रेमिका।
चेखव की कहानी:  छुई-मुई

हाल ही में मैंने अपने बच्चों की अध्यापिका यूलिया वसिल्येव्ना को अपने दफ्तर में बुलाया। मुझे उनसे उनके वेतन का हिसाब-किताब करना था।


मैंने उनसे कहा, ‘आइए...आइए...बैठिए। जरा हिसाब कर लें। आपको पैसों की जरूरत होगी। पर आप इतनी संकोची हैं कि जरूरत होने पर भी आप खुद पैसे नहीं मांगेगी। खैर। हमने तय किया था कि हर महीने आपको तीस रुबल दिए जाएंगे।

‘चालीस’

‘नहीं...नहीं... तीस। तीस ही तय हुए थे। मेरे पास लिखा हुआ है। वैसे भी मैं हमेशा अध्यापकों को तीस रुबल ही देता हूं। आपको हमारे यहां काम करते हुए दो महीने हो चुके हैं...।’

‘दो महीने और पांच दिन हुए हैं।’

‘नहीं, दो महीने से ज्यदा नहीं। बस, दो ही महीने हुए हैं। यह भी मैंने नोट कर रखा है। तो इस तरह मुझे आपको कुल साठ रूबल देने हैं। लेकिन इन दो महीनों में कुल नौ इतवार पड़े हैं। आप इतवार को तो कोल्या को पढ़ाती नहीं हैं, सिर्फ थोड़ी देर उसके साथ घूमती हैं, इसके अलावा तीन छुट्टियां त्योहार की भी पड़ी हैं।’


यूलिया वसील्येव्ना का चेहरा आक्रोश से लाल हो उठा था। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा और अपने घाघरे की सलवटें ठीक करती रहीं।
‘तीन त्योहार की छुट्टियों को मिलाकर बारह दिन हुए। इसका मतलब आपकी तनख्वाह में से बारह रूबल कम हो गए। चार दिन कोल्या बीमार रहा और आपने उसे नहीं पढ़ाया। तीन दिन तक आपके दांत में दर्द रहा। तब भी मेरी पत्नी ने आपको यह इजाजत दे दी थी कि आप उसे दोपहर में न पढ़ाया करें। इसके हुए सात रूबल। तो बारह और सात मिलाकर हुए कुल उन्नीस रूबल। अगर साठ रुबल में से उन्नीस रूबल निकाल दिए जाएं तो आपके बचे कुल इकतालीस रूबल। क्यों मेरी बात ठीक है न?’


यूलिया वसिल्येव्ना की दोनों आंखों के कोरों पर आंसू चमकने लगे थे। उनका चेहरा कांपने लगा था। घबराहट में उन्हें खांसी आ गई और वह रुमाल से अपनी नाक साफ करने लगीं। पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की।

‘नए साल के समारोह में आपने एक कप-प्लेट भी तोड़ दिया था। दो रूबल उनके भी जोड़िए। प्याला तो बहुत ही महंगा था। बाप-दादा के जमाने का था। लेकिन, चलिए, छोड़ देता हूं। आखिर नुकसान तो हो ही जाता है। बहुत-कुछ गंवाया है। एक प्याला और सही। आगे आपकी लापरवाही के कारण कोल्या पेड़ पर चढ़ गया था और उसने अपनी जैकेट फाड़ ली थी। दस रूबल उसके। फिर आपकी लापरवाही के कारण ही नौकरानी वार्या के जूते लेकर भाग गई। आपको सब चीजों का खयाल रखना चाहिए। आखिर आपको इसी काम के लिए रखा गया है। जूतों के भी पांच रूबल लगाइए। दस जनवरी को आपने मुझसे दस रूबल उधार लिए थे।’

‘नहीं, मैंने आपसे कुछ नहीं लिया।’ यूलिया वसिल्येव्ना ने फुसफुसा कर कहा।

‘लेकिन मैंने यह नोट कर रखा है।’

चलिए ठीक है। कुल सत्ताईस रूबल हुए।’

‘इकतालिस में से सताईस घटाइए। बाकी बचे चौदह।’

उनकी दोनों आंखें आंसुओं से भर गई थीं। उनकी सुंदर और लंबी नाक पर पसीने की बूंदे झलकने लगी थीं। बेचारी लड़की!

‘मैंने सिर्फ एक ही बार पैसे लिए थे।’ उन्होंने कांपती आवाज में कहा। ‘आपकी पत्नी से मैंने तीन रूबल लिए थे। इसके अलावा कभी कुछ नहीं लिया।’

‘अच्छा? अरे, यह तो मेरे पास लिखा हुआ ही नहीं है। तो चौदह में से तीन और घटा दीजिए। बाकी बचे ग्यारह। लीजिए, ये रहे आपके पैसे। तीन...तीन...तीन... एक... और एक... उठा लीजिए।’

और मैंने उन्हें ग्यारह रूबल दे दिए। उन्होंने चुपचाप पैसे ले लिए और कांपते हुए हाथों से उनको अपनी जेब में रख लिया।

‘धन्यवाद। उन्होंने फ्रांसिसी भाषा में फुसफुसाकर कहा।’

मैं झटके से उठ खड़ा हुआ और कमरे में चक्कर काटने लगा। मुझे गुस्सा आ गया था।

‘किसलिए धन्यवाद?’ मैंने पूछा।

‘पैसों के लिए धन्यवाद।’

‘पर मैंने तो आपको लूट लिया है। बेड़ा गर्क हो मेरा! किसलिए धन्यवाद?’

‘दूसरी जगहों पर तो मुझे यह भी नहीं दिया जाता था।’

‘नहीं दिया जाता था? तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है? मैंने तो आपसे मजाक किया है। मैंने आपको एक क्रूर सबक सिखाया है। मैं आपका एक-एक पैसा दे दूंगा। ये देखिए, यह लिफाफे में आपकी पूरी तनख्वाह रखी हुई है। आप गलत बात का विरोध क्यों नहीं करतीं। आप चुप कैसे रह जाती हैं? क्या इस दुनिया में कोई इतना बेचारा और असहाय भी हो सकता है? क्या आपकी इच्छाशक्ति इतनी कमजोर है? क्या यह संभव है?’

वह उदासी से मुस्कराई और मैंने उसके चेहरे पर पढ़ा, ‘हां, यह संभव है।’

मैंने अपने क्रूर व्यवहार के लिए उससे माफी मांगी और उसे दो महीने की पूरी तनख्वाह के अस्सी रूबल दे दिए। वह आश्चर्यचकित हो उठी और बेहद संकोच के साथ मेरा आभार प्रकट करने लगीं। फिर वह कमरे से बाहर चली गईं और मैं सोचने लगा कि इस दुनिया में ताकतवर बनना बहुत आसान बात है!

 

 

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मूल रूसी से अनुवाद: अनिल जनविजय

अनुवादक अनिल जनविजय बरेली, उत्तरप्रदेश में जन्मे। पिछले 33 साल से मास्को में रह रहे हैं। वह मास्को विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में एसोसियेट प्रोफेसर हैं, साथ ही ‘स्पूतनिक’ रेडियो में प्रोड्यूसर हैं और हिंदी डेस्क देखते हैं। रूसी और अंग्रेजी से सैकड़ों कविताओं और कई कहानियों का अनुवाद किया है।

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