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सिगरेट का आखरी कश

लेडी श्रीराम कॉलेज और भारतीय जनसंचार संस्थान से पढ़ाई के बाद पांच साल टीवी की नौकरी की। फिलहाल डॉक्युमेंट्री फिल्ममेकर, कम्युनिकेशन्स कंसलटेंट और अनुवादक के रूप में काम। पहला कहानी संग्रह नीला स्कार्फ बहुत ज्यादा चर्चित। मदरहुड और पेरेंटिंग पर पहली हिंदी की किताब मम्मा की डायरी को भी बहुत सराहना।
सिगरेट का आखरी कश

कमरे का कोना-कोना दुरुस्त कर दिया गया था। केन के लैंपशेड से ठीक उतनी ही रोशनी आ रही थी जितनी उसे पसंद थी। सिर्फ उसी कोने पर बिखरती हुई, जहां कांच के एक फूलदान में नर्गिस के गुच्छे बेतरतीबी से डाल दिए गए थे।

 

फूलदान के नीचे मेजपोश पर गिरती रोशनी में उसने जल्दी से उस पर बिखरे रंग गिन लिए। छह थे। एक रंग छूट गया था। खरीदते हुए उसने ध्यान क्यों नहीं दिया था? सपने देखते हुए भी कहां सोचा था कि सात ही रंग के हों यह नामाकूल सपने?

 

कपड़े बदलते हुए उसने लिली ऑफ द वैली की शीशी को देखा। दम तोड़ती खुशबुओं की कुछ आखिरी बूंदें बाकी थीं। कुछ स्थाई नहीं होता। अपनी-सी लगने वाली खुशबू का अपनापन भी एक दिन जाता रहेगा।

 

फ्रिज में पिछली पार्टी की बची हुए बीयर की कुछ बोतलें थीं जिनका नसीब तय किया जाना था। पार्टी में उसने अपने एक कलिग से कहा था कि बीयर और घोड़े की लीद की बदबू में कोई खास अंतर नहीं होता। उसका इतना कहना था कि पार्टी में सब बीयर छोड़कर ब्रीजर पर भिड़ गए थे और किंगफिशर की ये बोतलें अभी भी वैसी ही पड़ी थीं। लावारिस। 

‘बालों की कंडिशनिंग अच्छी होती है इनसे।’ उसकी रूममेट ने कहा तो उसे सोनमर्ग की घाटियों पर पसरे आर्मी कैंप के अस्तबलों से आती बदबू याद आ गई। 

'मिसमैच होगा। तुम्हारे बाल, ये बदबू... सोनमर्ग और कैंप्स की तरह।' और बोतलों में बची बीयर के इस्तेमाल की योजना फिर अनिश्चितकाल के लिए मुल्तवी हो गई।

जाने क्या सोचकर उसने बीयर के दो मग और बोतलें डाइनिंग टेबल पर रख दीं। बहुत ठंडी बीयर गले को नुकसान पहुंचाएगी और फिर कल प्राइम टाइम में उसी के शो के लिए कोई वॉयस ओवर करने वाला नहीं मिलेगा।

रूममेट आज रात देर से आने वाली थी, क्लाइंट पार्टी में एप्पल जूस पर बेतुका बहस-मुहाबिसों वाली एक लंबी शाम काटने की सजा भुगतकर। लड़का कभी एक घंटे से ज्यादा वक्त के लिए आता नहीं था इन दिनों उसके पास। दूरी एक बहाना हो सकती थी लेकिन रोहिणी और जीके वन की दूरी से उसे ये जहन की दूरी ज्यादा लगती थी। मार्स और वीनस की दूरी जैसी कुछ।

 

हम दूरियां बचाए रखने पर आमादा हों तो कोई भी बहाना काम करने लगता है।

 

खैर, रोहिणी से लड़के को आने में कम-से-कम डेढ़ घंटे तो लगते ही। यानी उसके पास बहुत सारा वक्त था। इतनी देर में डिनर के लिए राजमा-चावल बन सकता था, कपड़ों की अलमारी ठीक की जा सकती थी, कोई किताब पढ़ने का दंभ भरा जा सकता था, हर हफ्ते मंगाए जाने वाले न्यूजवीक का एक आर्टिकल पढ़ कर अखबारवाले पर अहसान किया जा सकता था। या यह तय किया जा सकता था कि अपनी दिशाहीन रिलेशनशिप का करना क्या है। ये आखरी काम सबसे आसान था, क्योंकि इस रिलेशनशिप का करना क्या है, ये तय करना अब मुश्किल नहीं था।

 

छोटे शहर से आई थी वह। लौटकर वहीं चली जाती। वहां सुकून था और पहचान बनाने की कोई जद्दोजहद नहीं थी। और प्यार भी कर लिया था आसानियों वाला। फलां-फलां की बेटी अमुक साहब की बहू होती, किसी को कोई शिकायत न होती। दोनों बचपन के दोस्त थे। यह अंतरजातीय विवाह नहीं था। परिवार एक दूसरे को जानते थे, इसलिए पैरों के नीचे छह इंच मोटी गद्देदार लाल कालीन बिछाकर उसका स्वागत किया जाता। कोई लड़ाई नहीं थी, एक आसान रास्ता था। जिंदगी भर की आसानी थी।


मन सवाल पूछता रहा। मन जवाब देता रहा।

 

फिर ये जिद किसलिए? कैसी बेताब तमन्ना जो पूरी होते हुए भी अधूरी दिखती है?

 

जिद इसलिए क्योंकि जिंदगी की आसानियां ही सबसे बड़ी मुश्किलें होती हैं। हम जितने संघर्षों के बीच होते हैं, उतनी आसानी से जिए जाने के भ्रम को लेकर संतोष में होते हैं। और तमन्नाओं का क्या है? बेताब बने रहना उनकी फितरत है।

फिर क्या बचाए रखना था?

 

बचाने वाले हम कौन होते हैं? ताउम्र बिखेर के समेटने का काम जरूर हमारा होता है।

 

तो फिर? हासिल क्या करना था आखिर? 

सिगरेट। सिगरेट हासिल करना था फिलहाल।

 

आदत न सही, तलब सही।

 

तलब न सही, जरूरत सही।

 

उसने लड़के को फोन करके उसे क्लासिक माइल्ड्स लाने की हिदायत दे दी। लड़के के आने में अब भी एक घंटे का वक्त था।

 

60 मिनट। 3600 सेकंड।

 

जरूरत इतना लंबा इंतजार क्यों करती? सो, उसने नीचे जाकर खुद ही सिगरेट खरीदने का फैसला किया। लाल रंग के चमकी चप्पलों में चमकते लाल रंग के नाखूनों पर नजर गई तो रूममेट की एक और जिद का जीत जाना याद आया। वह इतनी जल्दी क्यों हार मान लेती है? अब घर जाकर नेलपॉलिश रिमूवर ढूंढ़ने का अलग काम करना होगा। वैसे हर नाखून पर बीस सेकेंड के हिसाब से वक्त लगाया जाए तो 200 सेकेंड कम किए जा सकते हैं। रिमूवर ढूंढ़ने में कम-से-कम 600 सेकेंड।

जीके में लड़कियों को सिगरेट खरीदते देखकर किसी की भौंहें नहीं चढ़तीं और यहां सुपरमार्केट में आसानी से एल्कोहॉल मिल जाया करता है। सिगरेट भी खरीद ली गई और ग्रीन एप्पल फ्लेवर वाले वोदका की बोतल भी। इस खरीददारी में 600 सेकेंड का सौदा भी कर आई थी वह।

 

वक्त का सौदा इतना भी मुश्किल नहीं होता।

इंटरनेट नहीं था, वर्ना कोई अच्छी-सी कॉकटेल बनाई जा सकती थी। वोदका को नीट पिया जा सकता है या नहीं, यह जानने के लिए उसने फिर लड़के को फोन किया। ‘आखिरी ट्रैफिक सिग्नल पर हूं’ इस जवाब में लड़की के पूछे गए सवाल के जवाब जैसा कुछ नहीं था। नीट सही, यह सोचते हुए उसने एक गिलास में वोदका डाली और क्लासिक माइल्ड्स के डिब्बे से सिगरेट निकाल ली, जलाने के लिए।

 

‘तुम्हें सिगरेट पीना कभी नहीं आएगा लड़की।’ रूममेट का ताना याद आ गया। बाएं हाथ में सिगरेट थी और दाहिने में माचिस की जलती हुई तीली।

 

‘मुंह में लेकर जलाओ और गहरा कश लो।’ दिमाग में रूममेट का निर्देश फॉलो करती रही और वॉयला! जलती हुए एक सिगरेट उसके हाथ में थी। 240 सेकंड...

फोन की घंटी बजी। मां थीं। 1200 सेकंड, कम-से-कम। वक्त पर शादी और बच्चे हो जाने चाहिए। लोग बातें बनाते हैं... 200 सेकंड... मोहल्ले में चिंकी-पिंकी-बिट्टू-गुड़िया की शादियां तय हो गईं। लड़कों के खानदान का विवरण और दहेज की तैयारी... 600 सेकंड... तुम्हारी नालायकी और सिरफिरेपन पर हमले... 600 सेकंड... यह तो बोनस था!

 

दरवाजे की घंटी बजी और फोन से सुबह तक के लिए निजात मिल गई।

‘सिगरेट नहीं मिली। गाड़ी नहीं रोक सका कहीं,’ लड़के ने कहा।

‘मुझे मिल गई, पियोगे?’ उसने पूछा।

‘ओह! नो थैंक्स।’ लड़के ने कहा।

‘वोदका या बीयर?’ उसने पूछा।

‘कुछ खास है?’ लड़के ने पूछा।

‘नौकरी की दूसरी सालगिरह है। अगले पच्चीस साल वहीं टिके रहने का वायदा कर आई हूं।’ उसने कहा।

‘क्या चाहती हो?' लड़के ने पूछा।

'पूछो क्या नहीं चाहती। जवाब देना आसान होगा।' उसने कहा।

'तुम्हें उलझने की बीमारी है?' लड़के ने पूछा।

'इतने सालों में आज पता चला है?' उसने कहा।

'कुछ खाओगी? बाहर चलना है?' लड़के ने शाम की बदमिजाजी बदलने की नाकाम कोशिश की।

'ग्रीन एप्पल वोदका के साथ काला नमक मस्त लगता है,' उसने जवाब दिया।

'आई गिव अप,' लड़के ने कहा।

'बचपन से जानती हूं तुम लूजर हो,' उसने जवाब दिया।

'व्हॉट्स रॉन्ग विथ यू? आई फील लाइक शेकिंग यू अप,' लड़के ने झल्लाकर कहा।

'यू वोन्ट बिकॉज आई डोन्ट परमिट। तुम तो मुझे छूने के लिए मुझसे ही इजाज़त मांगते हो,' सिगरेट का गहरा कश लेते हुए उसने आराम से जवाब दिया।

'आर यू ड्रंक?' लड़के ने प्यार से पूछा।

'देखकर क्या लगता है?' उसने उतनी ही बेरूखी से जवाब दिया।

'लगता है कि कोई फायदा नहीं। हम बेवजह कोशिश कर रहे हैं। मुझे वापस घर लौट जाना चाहिए,' लड़के ने हारकर कहा।

'दरवाजा तुम्हारे पीछे है। जाते-जाते मुझे सिगरेट की एक और डिब्बी देते जाना। रूममेट को चाहिए हो शायद। हम आधी रात को कहां खोजते फिरेंगे?' लड़की ने बात ही खत्म कर दी।

'यही होता है जब छोटे शहरों से लड़कियां आती हैं दिल्ली पढ़ने। बिगड़ जाती हैं। कुछ तो अपने वैल्युज याद रखा करो। यही करने के लिए आई थी यहां?' लड़के ने एक आखरी कोशिश की।

'यह अगर तुम्हारा आखरी वार था तो खाली गया। अगली कोई कोशिश मत करना,' लड़की ने कहा और वोदका गिलास में डालने लगी। जान-बूझकर इतने ऊपर से कि शीशे के ग्लास में उतरते हुए वोदका की खनक दूर तक जाती। कम-से-कम लड़के तक तो जाती ही।

'आई गिव अप,' लड़के ने कहा।

ये वोदका लेते जाओ। यू मे नीड इट। सिगरेट भी एक्स्ट्रा खरीद लेना। तुम्हारे सारे गुनाह माफ हैं। वैल्युज मुझे ही गठरी में बांधकर दिए गए थे दिल्ली आते हुए। लेते जाओ। मेरे घर वापस कर आना। बॉयफ्रेंड... सॉरी... एक्स बॉयफ्रेंड होने का कोई तो फर्ज अदा करोगे!’ लड़की ने यह कहते हुए दरवाजे का पल्ला थाम लिया।

लड़के ने उसकी तरफ बहुत उदास होकर देखा और कहा, मुझे क्यों लग रहा है कि तु्म्हें आखरी बार देख रहा हूं?’

फिर तो ठीक से देख लो। मैं इतनी खूबसूरत दोबारा नहीं लगूंगी।’ लड़की ने दरवाज़े को थामे रखा और अपनी आवाज को बहकते जाने की इजाजत दे दी।

लड़के ने नजर भर उसको देखा, फिर एक गहरी नजर उसके चेहरे पर छोड़कर चला गया। थोड़ी देर बाद वॉचमैन क्लासिक माइल्ड्स के पांच डिब्बे पहुंचा गया था।

रूममेट के इंतजार में वह बालकनी में बैठकर एक डिब्बा फूंक चुकी थी। नया डिब्बा उसने रूममेट के आने पर ही खोला।

‘मेरी कोशिश कामयाब रही। वह अब वापस नहीं लौटेगा,’ उसने अचानक आ गई हिचकी को पानी के घूंट से गटकते हुए कहा।

‘तुमने ऐसा किया क्यों आखिर?’

'उसे अपने घर पर होना चाहिए, अपने मां-बाप के साथ। ही ओज देम हिज लाइफ। ही डिडन्ट ओ मी एनीथिंग। वैसे भी मेरे साथ रहेगा तो जिंदगी भर रोएगा,’ उसने रूममेट के कंधे पर सिर टिका दिया था और बहुत थकी हुई आवाज में कहा था, ‘बचपन से जानती हूं उसको। वह नहीं बदलेगा। और देखो न, मैं कैसे हर लम्हा, कित्ती तेजी से बदल रही हूं। मुझे बर्दाश्त नहीं कर पाएगा तो कोसेगा। रोएगा। चिल्लाएगा। उसका जाना मंजूर है लेकिन उसका एक दिन तंग आकर मुझे छोड़ देना मंजूर नहीं।’ वह एक सुर में बड़बड़ाए जा रही थी, यूं कि जैसे सिगरेट का नशा धीरे-धीरे हावी होने लगा हो।

'तुम उसके साथ भी तो जा सकती थी। वह किसी अनजान शहर तो जा नहीं रहा था,’ रूममेट ने जाने क्यों पूछ लिया था।

 

'शहर अनजान या अपना नहीं होता। हम उसे अपना या बेगाना बना देते हैं,’ लड़की ने कहा और रूममेट की बगल से उठकर जाने को हुई।

 

'प्यार नहीं करती थी उससे?' ये रूममेट का आखरी सवाल था। जमीन पर बैठे-बैठे अपनी बगल में खड़ी हो गई लड़की की आंखों में आंखें डालकर रूममेट ने पूछा था यह मुश्किल सवाल।

‘करती थी। करती हूं। इसलिए तो उसके साथ नहीं गई,’ यह कहते हुए लड़की ने रूममेट के हाथ से सिगरेट लेकर एक आखरी गहरा कश लिया और उठकर बीयर से बालों की कंडिशनिंग करने के लिए बाथरूम में घुस गई।

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