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फॉलो ऑन

हिंदी जगत के जाने-माने क्रिकेट कमेंटेटर। क्रिकेट के मैदान से आंखों देखा हाल सुनाने के लिए प्रसिद्ध। हिंदी के अकेले ऐसे कमेंटेटर जिन्होंने रेडियो से लेकर टेलीविजन के युग तक हिंदी में श्रोताओं-दर्शकों के लिए क्रिकेट की शब्दावली को आगे बढ़ाया। हाल ही में पद्मश्री से सम्मानित। राजकमल प्रकाशन से क्रिकेट पर आधारित कहानियों की किताब क्रिकेट का महाभारत प्रकाशित।
फॉलो ऑन

शौकत अली को क्रिकेट टीम के मैनेजर का पद बमुश्किल मिला था। यह पद उन्हें ऑस्ट्रेलियाई टीम के पूरे भारत दौरे के लिए मिला था। उन्हें याद आया, जब वह क्रिकेट खेला करते थे तब रुपये-पैसे की तंगी बनी रहती थी। मैन ऑफ द मैच जीतते तो टू इन वन या ज्यादा से ज्यादा 5 हजार रुपयों का सामान मिल जाया करता था। टीम भावना का ध्यान रख कर यह रकम भी सभी खिलाड़ियों में बराबर बंट जाया करती थी। अब तो राष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ियों के वारे-न्यारे हो गए हैं। शोहरत, दौलत और ग्लैमर उनके कदमों में लोट रहे हैं।

शौकत अली की पत्नी अनीसा हमेशा उन पर झल्लाया करती, 'क्या दिया है इस क्रिकेट ने आपको? देश के लिए खेलने का गौरव मिला है, यह कहते-कहते आपकी जबान भी थक गई होगी। आपकी तरह खेलने वाले कई क्रिकेटर धनवान कैसे हो गए, यह भी सोचने की कोशिश की है कभी? आपको तो जिंदगी संवारने का तरीका ही नहीं मालूम। मामूली जिंदगी से तंग आ गई हूं मैं।’

शौकत अली पत्नी की चुभती फब्तियों का कभी बुरा नहीं मानते थे। उन्हें यह भी यकीन था कि इन चुभती हुई फब्बतियों के पीछे कहीं वह भलाई ही सोच रही थी। अगर वह तड़क-भड़क वाली सुविधाजनक जिंदगी जीना चाहती है तो यह उसका अधिकार है। ऐसा सोचने में बुराई क्या है? शौकत अली सोचते जरूर थे कि ऐसा क्या करें कि दौलत हासिल हो, बच्चे शानदार जिंदगी बसर करें, पत्नी गहने पहन कर इठलाती हुई दिखे और वह समाज में संभ्रांत वर्ग में बैठने के काबिल बनें।

घर बैठे वह इन सपनों को हकीकत में बदलने से तो रहे। शहर के पांच सितारा शीशम होटल में वह क्रिकेट टीम मैनेजर की हैसियत से रुके थे। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट मैच था। इस बार भारतीय टीम हावी थी और ऑस्ट्रेलिया पर फॉलो ऑन का खतरा मंडराया हुआ था। सारे भारतीय खिलाड़ी प्रसन्न थे कि शक्तिशाली ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम पर शानदार विजय प्राप्त की जा सकती है। ऑस्ट्रेलियाई टीम भारतीय टीम की पहली पारी के स्कोर से 270 रन पीछे थी और पहली पारी में उसके 2 विकेट ही बाकी थे। खेल के तीन दिन समाप्त हो गए थे पर अगले दो दिनों में ऑस्ट्रेलिया को फॉलो ऑन खेलने पर मजबूर कर दूसरी बार आसानी से आउट किया जा सकता था। पिच खतरनाक रूप से स्पिन गेंदबाजी को मदद देने लगी थी और भारतीय स्पिनरों का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था। पूरे देश में भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को लगने लगा था कि भारत यह टेस्ट मैच जरूर जीत जाएगा।

इधर अपने कमरे में बैठ कर शौकत अली मन ही मन स्थिति का आकलन कर रहे थे। उन्होंने घड़ी देखी। रात के 8 बजे थे। एक घंटे बाद टीम के सभी सदस्यों के साथ मीटिंग थी। इसमें शौकत अली कप्तान और टीम के अन्य सदस्यों के साथ बैठ कर आने वाले दो दिनों की योजनाएं बनाने वाले थे। शौकत अली अपने जमाने के महान क्रिकेटर माने जाते थे। अपने दिनों में उन्होंने कई मैच अकेले के बलबूते पर जिताए थे। इसका उन्हें गर्व था और इसकी चर्चा भी अखबारों में यदा-कदा होती रहती थी। टीम के वर्तमान कप्तान और सभी सदस्य भी उन्हें बड़ी इज्जत से देखते थे। इसी कारण उन्हें भारतीय टीम की मैनेजरशिप मिली थी। उनकी मैनेजरशिप में भारतीय टीम जीत गई तो बड़ा नाम होगा। उनका नाम भी फिर सुर्खियों में आ जाएगा। यह सोच कर वह मन ही मन प्रसन्न हो उठे। अनीसा तो गर्व से भर उठेगी।

उन्होंने खुद से सवाल किया, शायद नहीं। भारतीय टीम की जीत-हार से अनीसा को क्या लेना-देना? अनीसा के सपनों की दुनिया कुछ और थी। खुशी के इन लमहों में भी शौकत अली को उदासी ने फिर आ घेरा।

इन्हीं खयालों और उधेड़बुन में वह लगे थे कि दरवाजे की घंटी बजने लगी। खयालों की दुनिया से उठ कर वह दरवाजे की तरफ बढ़े। उन्होंने सोचा, टीम मीटिंग में तो अभी एक घंटा है। कौन हो सकता है? दरवाजा खोलने पर उन्होंने आने वाले को देखा। वह नितांत अजनबी था। उसके हाथ में एक गुलदस्ता था। वह मुस्करा रहा था। ठिगने कद का यह शख्स उन्हें अजीब लगा। 'यह गुलदस्ता आपके लिए है। कबूल फरमाएं।’ उसने दांत निकालते हुए कहा। 'क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’ आगंतुक की इस बेतकल्लुफी ने उन्हें चौंका दिया। शिष्टचारवश उन्होंने कहा, 'हां, क्यों नहीं?’

शौकत अली को वह व्यक्ति थोड़ा रहस्यमय लगा। उन्होंने सकुचाते हुए पूछा, 'आपका परिचय?’ 'वैसे नाम में क्या रखा है? आइए काम की बात करें।’ उस अजनबी के रहस्यमय अंदाज ने उन्हें चौंका दिया। 'चलिए, मैं बता ही देता हूं। मेरा नाम अब्दुल कासिम है। मैं आज आपको ऐसा ऑफर देने आया हूं, जो आप ठुकरा नहीं सकेंगे। कल आपकी टीम जीत सकती है। फॉलो ऑन में खेल कर स्पिन लेते हुए विकेट पर ऑस्ट्रेलियाई टीम कहां टिक पाएगी। मैं चाहता हूं कि आप ऑस्ट्रेलिया को फॉलो ऑन में न खिलाएं। इसके बदले आपको एक चमचमाती लग्जरी कार और 50 लाख रुपये आपके घर पहले पहुंच जाएंगे।’

कासिम की ये बातें शौकत अली को हथौड़े की चोट की तरह लगीं। उनका सिर घूमने लगा। 'यह क्या कह रहे हैं आप? चलिए, जाइए यहां से?’ उनके मुंह से अनायास निकल गया।

कासिम शायद ऐसी प्रतिक्रिया के लिए तैयार ही था। उसने बड़ी निर्लज्जता के साथ मुस्कराना शुरू कर दिया। 'कोई बात नहीं शौकत साहब। आपकी मर्जी। आप क्रिकेट को ईमान मानते हैं और हम व्यवसाय।’ एक कागज पर अपना मोबाइल नंबर बढ़ाते हुए उसने कहना जारी रखा। 'अगर आपका मन बदले और अपने तथा परिवार की समृद्धि की इच्छा हो तो, मुझे टेलीफोन पर सिर्फ हां कह दीजिए। एक घंटे में ही आपके घर मेरा कारिंदा पहुंच कर 'आपका काम कर देगा।’ इतना कह कर कासिम तो चला गया पर शौकत अली को निढ़ाल छोड़ गया। कौन होगा यह आदमी? वह सोच में पढ़ गए। निश्चय ही कोई बड़ा 'बुकी’ होगा। इनके हाथ बड़े लंबे होते हैं। इनकी बात न मानो तो कोई बड़ी दुर्घटना की आशंका भी हो सकती है। शौकत ने यह भी सुना था कि बेईमानी के धंधे में पैसों का बंटवारा बड़ी ईमानदारी से होता है। फिर कासिम तो रकम अग्रिम जमा कराने के लिए तत्पर था। इतना पैसा और लग्जरी कार तो वह ताउम्र नहीं कमा सकते थे। अनीसा तो यह सब पा कर बहुत खुश हो जाएगी। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का पूरा इंतजाम हो जाएगा। एक छोटा-सा फ्लैट भी खरीदा जा सकता है। पर जोखिम? क्या भारत की जीत को पीछे धकेलना मुनासिब होगा? वह अपने आप से सवाल किए जा रहे थे।

रात के 9 बजे कप्तान और टीम के सदस्यों ने कमरे में प्रवेश किया। मीटिंग की शुरुआत हुई। कप्तान ने कहा कि दो विकेट जल्दी लेकर ऑस्ट्रेलिया को फॉलो ऑन दिया जा सकता है। सो दिन में उन्हें दोबारा आउट करना मुश्किल नहीं होगा। टीम के अन्य सदस्यों ने भी सहमति जता दी। 'पर मेरा मत कुछ अलग है,’ शौकत अली की यह बात सुनकर सभी चौंक पड़े। 'क्या कह रहे हैं आप,’ कप्तान ने आश्चर्य से कहा।

'देखो भाई, आप जो कह रहे हैं वह बाहरी रूप से ठीक लगता है। पर यह भी सोचो कि हमारे गेंदबाज लगातार गेंदबाजी करते-करते थक गए होंगे। थकने पर हमारे गेंदबाज असरहीन हो जाएंगे। तब ऑस्ट्रेलिया हमारे चंगुल से निकल जाएगा। अगर उन्होंने बहुत रन बना लिए तो आखिरी पारी हमें खेलनी है। तब विकेट बहुत ही विकराल रूप धारण कर लेगा। गेंद ऊंची-नीची तो रहेगी ही, स्पिन भी सर्पीला होगा। अगर उन्होंने रन उतार कर 150 रनों की लीड भी ले ती तो हमें लेने के देने पड़ सकते हैं। मेरी मानो तो 200 से ज्यादा की लीड मिल जाने पर फॉलो ऑन खिलाने के बजाए फिर खुद ही बल्लेबाजी करना मुनासिब होगा।’ शौकत अली के तर्क ने कप्तान और टीम के सदस्यों को चुप कर दिया। शौकत अली का वे सभी सम्मान करते थे। न चाहते हुए भी सबने उनकी यह बात मान ली।

कप्तान और टीम के सदस्यों के जाने के बाद शौकत अली ने कासिम को फोन लगा कर हां कह दिया। उधर से कासिम ने कहा, 'मुझे मालूम था कि आप अंतत: बुद्धिमानी का परिचय देंगे। आपको बधाई।’

एक घंटे बाद घर से फोन आया कि आपका एक प्रशंसक एक कार और रुपयों से भरा एक बैग दे गया है। अनीसा बहुत प्रसन्न थी। उसने फोन पर ही कहा, 'आपको मैं हमेशा भला-बुरा कहती रही। आपकी सही कीमत मैं समझ नहीं सकी थी। आप घर कब आ रहे हैं?’

शौकत अली को यह सब चलचित्र की तरह गुजरता हुआ प्रतीत हो रहा था। अगले दिन ऑस्ट्रेलिया 250 रन पीछे रह कर ऑल आउट हो गया। भारत ने फॉलो ऑन नहीं खिलाया। चौथे दिन भारत ने बल्लेबाजी जारी रखी और पांचवें दिन लंच के एक घंटे पहले पारी समाप्ति की घोषण की।

अब इतना समय नहीं बचा था कि भारत शक्तिशाली ऑस्ट्रेलियाई टीम के सभी बल्लेबाजों को आउट कर सके। मैच ड्रॉ हो गया। अखबारों में 'फॉलो ऑन’ न दिया जाना चर्चा का विषय बना रहा। शौकत अली पर कुछ आरोप भी लगे पर समय की गर्द में सब कुछ दब गया।

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