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विकलांगों का मज़ाक उड़ाने पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कॉमेडियंस को मांफी मांगने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और कॉमेडियंस को विकलांग व्यक्तियों का मज़ाक उड़ाने के...
विकलांगों का मज़ाक उड़ाने पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कॉमेडियंस को मांफी मांगने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और कॉमेडियंस को विकलांग व्यक्तियों का मज़ाक उड़ाने के लिए सख़्त फटकार लगाते हुए उनके पॉडकास्ट और कार्यक्रमों में सार्वजनिक रूप से माफी माँगने का निर्देश दिया है। इस मामले में जिन कॉमेडियंस और इन्फ्लुएंसर्स के नाम सामने आए हैं उनमें समय रैना, विपुल गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर शामिल हैं।

सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को भी निर्देश दिया कि वह सोशल मीडिया पर ऐसी आपत्तिजनक और अपमानजनक सामग्रियों पर रोक लगाने के लिए ठोस दिशा-निर्देश तैयार करे, जो विकलांगों, महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों का मज़ाक उड़ाती हैं या उन्हें नीचा दिखाती हैं। अदालत ने कॉमेडियंस से सख्त लहज़े में सवाल किया कि मज़ाक की भी एक सीमा होती है और यह सीमा कहाँ जाकर खत्म होगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि सभी कॉमेडियंस को अपने-अपने पॉडकास्ट्स और कार्यक्रमों में माफी माँगनी होगी।

याचिकाकर्ता पक्ष से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि इन कॉमेडियंस को सिर्फ माफी तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि अपनी प्रभावशाली पहुंच का इस्तेमाल जागरूकता फैलाने के लिए करना चाहिए। सिंह ने कहा, "यदि ये लोग अपने प्रभाव का उपयोग इस मुद्दे को आगे बढ़ाने में करें, तो यही सबसे बड़ी माफी होगी।"

दरअसल, CURE SMA (स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी) फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इन कॉमेडियंस के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। याचिका में आरोप लगाया गया कि समय रैना और अन्य कॉमेडियंस ने शो में SMA से पीड़ित व्यक्तियों और अन्य विकलांग लोगों का मज़ाक उड़ाते हुए आपत्तिजनक और अपमानजनक टिप्पणियां कीं। फाउंडेशन ने अदालत के समक्ष वीडियो साक्ष्य भी प्रस्तुत किए, जिनमें स्पष्ट रूप से दिखाया गया कि किस तरह विकलांगों का मज़ाक उड़ाया गया और उनकी पीड़ा को मनोरंजन के तौर पर प्रस्तुत किया गया।

याचिका में कहा गया कि ऐसे वीडियो गैर-जिम्मेदाराना और असंवेदनशील कंटेंट के प्रसार को बढ़ावा देते हैं। यह न केवल विकलांग व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि अनुच्छेद 14 और 21 का भी हनन है। साथ ही यह समाज में उनके सहभाग को बाधित करता है और उनके प्रति असंवेदनशीलता और अमानवीयता को बढ़ावा देता है। अदालत ने यह भी कहा कि बोलने की आज़ादी का अधिकार असीमित नहीं है, और जब कोई अभिव्यक्ति किसी समुदाय को नीचा दिखाती है तो वह अनुच्छेद 19(2) के तहत वाजिब प्रतिबंधों के दायरे में आती है।

गौरतलब है कि यह पहला मौका नहीं है जब समय रैना को सुप्रीम कोर्ट की फटकार झेलनी पड़ी है। इससे पहले भी उन्हें और रणवीर अल्लाहबादिया को कॉमेडी शो ‘इंडियाज़ गॉट लेटेंट’ में विवादित टिप्पणियों के लिए अदालत ने तलब किया था।

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