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गांधी की भारत वापसी के सौ साल

गांधी की पूजा नहीं उनके विचारों पर अमल करना जरूरी
गांधी की भारत वापसी के सौ साल

‘आज से सौ साल पहले भारत की जिन समस्याओं पर गांधी जी ने काम करना शुरू किया था वे आज भी किसी न किसी रूप में देश में विद्यमान हैं' उक्त विचार प्रख्यात लेखक और पत्रकार मधुकर उपाध्याय ने साहित्य अकादेमी द्वारा ‘गांधी की भारत वापसी के सौ साल’पर आयोजित व्याख्यान में व्यक्त किए। आगे उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के सभी प्रयोगों जैसे सफाई, ब्रह्मचर्य, धर्म, आश्रम, भष्ट्राचार आदि के अलावा ‘भाषा’ और ‘हिंदु-मुस्लिम एकता’ दो ऐसे विषय थे जिन पर उन्होंने भारत आते ही काम शुरू किया। अपने राजनीतिक गुरू गोखले के कहने पर उन्होंने शुरू के एक वर्ष केवल देखनें और सुनने की उनकी शर्त को मानते हुए ही भारत भर की यात्राएं कीं।

हालांकि 1915 उनकी भारत वापसी का साल है लेकिन यह संभवतः उनके बारे में सबसे कम रिकाडर्ड साल भी है क्योंकि वे तब तक सभी भारतीयों के बीच एक मसीहा के रूप में स्वीकार्य नहीं हुए थे और तब के प्रकाशित समाचार पत्रों में भी उनकी कोई विशेष चर्चा नहीं हुई थी। कांग्रेस को भी उनको अपने साथ लेकर कितना आगे बढ़ना है इसकी भी कोई रूप रेखा तब तक स्पष्ट नहीं थी। लेकिन गांधी ने धीरे-धीरे भारत के जनमानस को समझकर उनकी छोटी से छोटी समस्याओं पर अहिंसात्मक सत्याग्रह की योजनाएं बनाईं और ‘हिंदुस्तानी भाषा’ और ‘हिंदु-मुस्लिम एकता’ की वकालत कर उनके बीच गहरी पैठ बनाई।

अपने सारगर्भित व्याख्यान के बाद मधुकर जी ने श्रोताओं के सवालों के जवाब भी दिए। एक श्रोता के सौ साल बाद बदलाव पर किए गए सवाल पर उन्होंने कहा कि हमने गांधी की पहली ही मांग, ‘मुझे कभी भगवान बनाकर न पूजना,  को ही भूलकर उन्हें पूजना शुरू कर दिया है, जबकि वह इस आडंबर के सख्त खिलाफ थे और जीवन में लगातार श्रम के महत्व को स्वीकारते थे।

एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि गांधी अपने विचारों को लेकर बेहद स्पष्ट थे और उन पर किसी भी कीमत पर अडिग रहते थे। वे विश्व इतिहास के सबसे सहज और कई मसलों पर सबसे असहज इतिहास पुरूष हैं।

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