हर दिन स्क्रिप्ट पढ़ने, संवाद याद करने और भूमिका के लिए अभ्यास करने के अभ्यस्त कलाकार लॉकडाउन में जैसे काठ के होकर रह गए थे। रंगमंच सूना था और तमाम दूसरी बातों की तरह यहां भी हर गतिविधि बंद थी।
जैसे ही, अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय भी अपने रंग में लौटने लगा। कोरोना काल के बाद पहली बार वेबिनार से निकल कर रानावि अपने असली रूप में आया। पिछले दिनों ड्रामा स्कूल ने ओपन थिएटर में 'पहला सत्याग्रही' नाम से नाटक का मंचन किया और महामारी के तमाम भय को पीछे छोड़ते हुए इस मंचन को दर्शकों की जरा भी कमी महसूस नहीं हुई। एनएसडी रेपर्टी कंपनी के इस नाटक को देखने के लिए काफी संख्या में लोग मौजूद थे।
गांधी जयंती के अवसर पर हुए इस मंचन के बारे में ड्रामा स्कूल के निदेशक सुरेश शर्मा ने आउटलुक को बताया, 'हमने लगभग 100 लोगों को नाटक देखने की व्यवस्था की थी। गेट पर ही हाथ सेनेटाइज कराने के अलावा मास्क अनिवार्य था। हमें लगा था कलाकार बहुत दिनों तक रंगमंच से दूर नहीं रह सकते। लेकिन दर्शकों की मौजूदगी ने हमें एहसास कराया कि नाटकों के मुरीद भी लंबे वक्त तक इससे दूर नहीं रह सकते।'
ज्यादा लोगों को बैठने की व्यवस्था के चलते इस बार स्टेज थोड़ा बड़ा बनाया गया था। ताकि कलाकार भी एक निश्चित दूरी पर रह सकें। दर्शकों के बैठने की व्यवस्था भी ऐसी की गई थी कि दो लोगों के बीच पर्याप्त दूरी रहे।
नाटक में महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका के आंदोलन से लेकर चंपारण, नमक सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन को सिलसिलेवार ढंग से दिखाया गया। गांधी जी के दक्षिण अफरीका से लेकर विभिन्न आंदोलन से लेकर उनकी हत्या तक की तमाम यात्रा पर आलेख रविन्द्र त्रिपाठी ने तैयार किया था, जबकि निर्देशन सुरेश शर्मा ने किया था।