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सफलता के लिए मनोज वाजपेयी का गुरूमंत्र: जिद और जुनून जरूरी है

बिहार के एक छोटे से किसान के बेटे ने कैसे बालीवुड की सपनीली दुनिया में पहुंच कर अपने लिए एक मुकाम हासिल...
सफलता के लिए मनोज वाजपेयी का गुरूमंत्र: जिद और जुनून जरूरी है

बिहार के एक छोटे से किसान के बेटे ने कैसे बालीवुड की सपनीली दुनिया में पहुंच कर अपने लिए एक मुकाम हासिल किया जहां हर रोज हजारों सपने साकार भी होते हैं और दम भी तोड़ देते हैं? मनोज वाजपेयी इसका जवाब देते हैं – सिर्फ एक ‘सोची समझी जिद’ के बल पर।

‘सत्या’ के भीखू महात्रे से लेकर ‘दी फैमिली मैन’ के श्रीकांत तिवारी तक, कमर्शियल और कलात्मक से लेकर छोटे और बड़े परदे तक, मनोज वाजपेयी ने हर किरदार में खुद को साबित किया है। मनोज वाजपेयी कहते हैं कि उन्हें बहुत जल्दी यह बात समझ आ गई थी कि अपने सपनों के लिए जो जुनूनी नहीं होता है, परिस्थितियां उसकी बलि ले लेती हैं।

बिहार के बेलवा गांव से निकले वाजपेयी ने जिंदगी में जो कुछ पाया है, वह किसी परिकथा सा है और उनकी अपनी कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है।

मनोज वाजपेयी के मुताबिक, उन्हें एक बात जल्दी समझ में आ गयी थी कि ‘‘आपको बुद्धि के साथ ही जिद से काम लेना होगा और हाड़ तोड़ मेहनत करनी होगी। मैं जिद इसलिए कह रहा हूं क्योंकि नहीं तो परिस्थितियां और हालात हर कदम पर चुनौती बनकर आपके सामने खड़े हो जाएंगे और तब आप अपनी ही काबिलियत पर शक करने लगेंगे।’’

मनोज वाजपेयी ने यहां समाचार एजेंसी पीटीआई के मुख्यालय में एक विशेष साक्षात्कार के दौरान अपनी जिंदगी और फिल्मी कैरियर के कुछ बेहद आत्मीय पल साझा किए। उन्होंने कहा, ‘‘एक कहावत है, ‘छलांग लगाने से पहले आपको चार कदम पीछे हटना पड़ता है।’ मैं खुद पर इतरा नहीं रहा, पर मैं हालातों से वाकिफ था।’’

अंडरवर्ल्ड माफिया पर 1998 में बनी ‘सत्या’ में पहला मौका मिलने के बाद मनोज के पास बेहिसाब मौके आए। सत्या को रामगोपाल वर्मा ने निर्देशित किया था और इतने सालों बाद भी लोग गैंगस्टर भीखू म्हात्रे के किरदार को भूले नहीं हैं।

मनोज (55) ने बताया, ‘‘ मेरी जिद थी कि मुझे टाइपकास्ट (एक ही चरित्र में बंधना) नहीं होना है… इंडस्ट्री को समझ नहीं आ रहा था कि मुझे क्या ऑफर करे और उसने सोचा कि अगर ये मना कर रहा है तो और ज्यादा पैसा दे दो ….लेकिन मुझे पता था कि मैं विलेन नहीं बनूंगा क्योंकि अगर मैंने उस समय ये कर लिया होता तो मैं कभी इससे बाहर नहीं निकल पाता।’’

उन्होंने तुरंत दोहराया, ‘‘ मुझे उस उम्र में भी ये बात पता थी।’’ उन्होंने साथ ही कहा कि प्राण और अजीत जैसे महान कलाकार विलेन के खांचे से बाहर निकल ही नहीं पाए।

मनोज जल्द ही डायरेक्टर कनु बहल की ‘डिस्पैच’ में खोजी पत्रकार के तौर पर जॉय बेग की भूमिका में नजर आएंगे जो 13 दिसंबर को जी5 पर रिलीज होने जा रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘ यदि मनोज वाजपेयी अपने कैरियर में एक निश्चित ऊंचाई तक पहुंचा है तो यही बात नवाजुद्दीन सिद्धीकी, इरफान खान या के के मेनन के बारे में भी कही जा सकती है। आपको किसी की नकल करने की जरूरत नहीं है।’’ हालांकि मनोज इस बात को भी समझते हैं कि लोगों का अपना अपना प्रारब्ध और अपनी अपनी मंजिल होती है।

छह भाई बहनों के बीच पले बढ़े मनोज बहुत कम उम्र में ही अभिनेता बनने के सपने देखने लगे थे लेकिन उनके किसान पिता के पास उनकी हसरतों को पूरा करने के साधन नहीं थे। वाजपेयी 17 साल की उम्र में दिल्ली आ गए और कॉलेज में दाखिला ले लिया क्योंकि ये उनकी मां की इच्छा थी। इसके बाद उन्होंने थियेटर किया और जा पहुंचे मुंबई।

उन्हें वास्तव में पहला मौका 1994 में गोविंद निहलानी की ‘द्रोहकाल’ में मिला था और उसी साल शेखर कपूर की ‘बैंडिट क्वीन’ से उन्होंने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। लेकिन, यह फिल्म ‘सत्या’ थी जब दर्शकों की नजरें मनोज वाजपेयी की ओर उठीं।

‘सत्या’ एक ऐसा लांचिंग पैड थी जिसने उनके अगले तीन दशक के कैरियर की नींव रखी जो दिन ब दिन मजबूत होती जा रही है। इस दौरान उन्होंने ‘शूल’,‘जुबैदा’, ‘राजनीति’,‘गैंग्स आफ वासेपुर’, ‘अलीगढ़’, ‘सोनचिरिया’ जैसी दमदार फिल्मों के जरिए प्रशंसकों के दिलो दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ी। छोटे परदे पर उन्होंने ‘गुलमोहर’, ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ और वैब शो ‘दी फैमिली मैन’ किया, जिसका तीसरा सीजन तैयार है।

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