वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को यहां बजट पूर्व बैठक के सिलसिले में अर्थशास्त्रियों के साथ चर्चा की जिसमें इस तरह के सुझाव आए। बैठक में मौजूदा कर और सब्सिडी व्यवस्था पर भी चर्चा हुई और वृद्धि में सुधार के लिये उसमें बदलाव की जरूरत पर बल दिया गया।
इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ डेवलपमेंट रिसर्च के निदेशक एस महेंद्र देव ने कहा, ‘हमने कहा कि सरकार राजकोषीय घाटा कम करने की राह से थोड़ा हट सकती है लेकिन उसे मध्यम अवधि के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करना ही होगा।..2016-17 में कुछ ढील दी जा सकती है।
संशोधित राजकोषीय सुदृढ़ीकरण रूपरेखा के तहत सरकार ने राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष में 3.9 प्रतिशत से कम कर 2016-17 में 3.5 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा है। वेतन में वृद्धि को देखते हुए इस लक्ष्य को हासिल करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण लग रहा है। सातवें वेतन आयोग ने केंंद्र सरकार के कर्मचारियों तथा पेंशनभोगियों के वेतन, भत्ते तथा पेंशन में 23.55 प्रतिशत का इजाफा करने की सिफारिश की है। इससे सालाना 1.02 लाख करोड़ रपये का बोझ पड़ेगा। इसके अलावा कृषि की खराब स्थिति को देखते हुए गांवों पर ध्यान देने पर भी चर्चा हुई।
उन्होंने कहा, जबतक मानसून अच्छा नहीं होता, कृषि वृद्धि अच्छी नहीं होगी...हमें और विनिर्माण तथा सेवाओं की जरूरत है। अंतत: सामाजिक क्षेत्र खासकर स्वास्थ्य पर व्यय बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि इसके जोखिम बहुत अधिक हैं। जेपी मोर्गन के मुख्य अर्थशास्त्री सज्जीद चिनॉय ने कहा कि प्रत्येक मुद्दे पर चर्चा हुई। हालांकि उन्होंने विस्तार से नहीं बताया कि बैठक में किन मुद्दों पर चर्चा हुई।
अशोक विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पुलपारे बालकृष्णन ने कहा कि राजकोषीय घाटे पर चर्चा हुई। इसके अलावा कर एवं सब्सिडी के मुद्दे पर भी बातचीत हुई।