अभी कच्चे तेल के आयात पर कोई शुल्क नहीं है जबकि देश में उत्पादित कच्चे तेल पर दो प्रतिशत का केंद्रीय बिक्री कर लगता है जबकि आयातित कच्चे तेल को इससे छूट है। सरकारी सूत्राों ने कहा कि यह स्थिति घरेलू उत्पादकों के विपरीत है। कच्चे तेल की खपत का 20 प्रतिशत हिस्सा घरेलू उत्पादन से पूरा होता है जिस पर कर लगता है आयातित 80 प्रतिशत हिस्सा अभी कर मुक्त है।
सूत्रों ने कहा कि जेटली 28 फरवरी को पेश किए जा रहे अपने पहले पूर्ण बजट में इस विसंगति को दूर करने के उपाय कर सकते हैं। वित्त मंत्रालय के सामने जो विकल्प हैं उनमें घरेलू कच्चे तेल पर लगा केंद्रीय बिक्री कर हटाया जाना जाना शामिल हो सकता है ताकि घरेलू उत्खनन कंपनियों को प्रोत्साहन मिले। वैकल्पिक तौर पर कच्चे तेल की कीमत में मौजूदा नरमी का फायदा उठाकर सरकार कच्चे तेल पर सीमा-शुल्क का फिर से लागू कर सकती है।
पांच प्रतिशत के मूल सीमा-शुल्क के अधार पर सरकार को सालाना तीन अरब डालर से अधिक राशि मिलेगी। सीमा-शुल्क अधिक मिलने से सरकार को राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पूरा करने में मदद मिलेगी।
सरकार ने देश में उत्पादित कच्चे तेल के संबंध में 6.57 करोड़ बैरल पर केंद्रीय बिक्री के जरिये 12.5 करोड़ डालर का संग्रह किया। चालू वित्त वर्ष के पहले 10 महीने में 5.33 करोड़ बैरल पर 8.7 करोड़ डालर का संग्रह किया गया।
सूत्रों ने बताया कि सीमाशुल्क में बढ़ोतरी कर प्रणाली को तर्कसंगत बनाने की दीर्घकालिक नीति के अनुरूप है। पिछले कई साल से आयातित कच्चे तेल पर सीमाशुल्क का उपयोग कच्चे तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव के असर को साधने और राजस्व बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है। शुल्क लगा होने पर अंतरराष्टीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत बढ़ने पर सरकार उपभोक्ताओं को इसके बोभुा से बचाने के लिए उसमें कटौती कर सकती है।