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जेटली का बजट विश्व बैंक से प्रेरित?

वित्त मंत्री अरुण जेटली लगातार दो बजट पेश कर चुके हैं और दोनों ही बजट में खास बात रही है उनका सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम यानी एमएसएमई औद्योगिक इकाईयों के लिए खुलकर फंड की व्यवस्‍था करना।
जेटली का बजट विश्व बैंक से प्रेरित?

पिछले साल जहां उन्होंने इस सेक्टर की बिलकुल नई इकाईयों (स्टार्टअप कंपनी) के फंड के लिए 10 हजार करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया था वहीं इस साल भी एमएसएमई इकाईयों की फंडिंग के लिए मुद्रा बैंक खोलने के लिए उन्होंने भारी भरकम 20 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्‍था की है। हालांकि मंगलवार को आई एक खबर से ऐसा लग रहा है कि एमएसएमई के प्रति जेटली की यह दयानतदारी कहीं विश्व बैंक से प्रेरित तो नहीं है। दरअसल विश्व बैंक ने भारत में एमएसएमई सेक्टर की मदद के लिए करीब 31 सौ करोड़ (50 करोड़ डॉलर) रुपये का लोन मंजूर किया है। यह राशि स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवेलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (सिडबी) के जरिये सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को सीधे वित्त मुहैया कराने में खर्च की जाएगी। विश्व बैंक द्वारा दी जा रही इस राशि का बड़ा हिस्सा भी नई कंपनियों को वित्‍तीय मदद देने में खर्च की जाएगी। जाहिर है कि वित्त मंत्री के एमएसएमई सेक्टर पर इतना ध्यान दिए जाने के पीछे यह संभावना हो सकती है कि सरकार को पहले से पता हो कि उसे विश्व बैंक से एक बड़ी राशि मिल सकती है इसलिए उसने अपने हिस्से की ग्रांट पहले से तैयार कर ली। जो भी हो इसे एमएसएमई सेक्टर के अच्छे दिन आने की उम्मीदें तो बढ़ ही गई हैं। विश्व बैंक के अनुसार भारत का स्टार्टअप परितंत्र दुनिया में सबसे तेज गति से विकास करता तंत्र है और इसलिए सिडबी के जरिये इसमें और मदद के लिए यह लोन दिया जा रहा है।

गौरतलब है कि भारत में एमएसएमई सेक्टर कुल औद्योगिक उपक्रमों का 80 फीसदी हैं जो कि 8 हजार से अधिक वैल्यू एडेड उत्पादों का उत्पादन करती हैं। भारत के विनिर्माण क्षेत्र में इस सेक्टर की हिस्सेदारी 45 फीसदी है और निर्यात में इसकी भागीदारी 40 फीसदी है। करीब 50 फीसदी एमएसएमई इकाईयां देश के ग्रामीण इलाकों में और कम आय वाले राज्यों में फैली हुई हैं जिसके कारण ये इकाईयां गरीबी उन्मूलन और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। हालांकि पर्याप्त फंड की कमी के इस सेक्टर की सबसे बड़ी चुनौती रही है। वर्ष 2006-07 के एक सर्वे के अनुसार करीब 87 फीसदी ऐसी इकाईयां अपने प्रमोटरों के पैसे से ही चलती हैं और उन्हें वित्तीय मदद नहीं मिल पाती। अब सरकार और विश्व बैंक की पहलों से इस चुनौती से निपटना कुछ आसान हो जाएगा। सिडबी और पार्टिसिपेटिंग फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशंस (पीएफआई) के जरिये विश्व बैंक तीन तरह से एमएसएमई की मदद करेगा। सबसे पहले तो स्टार्टअप कंपनी को कर्ज, दूसरे उसके लिए जोखिम पूंजी और तीसरे सर्विस और विनिर्माण से संबंधित वित्त मुहैया कराने का काम किया जाएगा।

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