पिछले साल से सरकार नए फार्मूले के आधार पर जीडीपी का आकलन कर रही है। तब अचानक देश की जीडीपी में बढ़ोतरी दिखाई गई थी। लेकिन ताजा आंकड़ों ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सरकार की मुश्किलें उजागर कर दी हैं। जीडीपी के कमजोर ग्रोथ का असर भारत की रेटिंग पर भी पड़ सकता है। अर्थशास्त्रियों ने इन आंकड़ों पर निराशा जाहिर की है। क्रिसिल के चीफ इकोनॉमिस्ट डीके जोशी का कहना है कि जीडीपी की ग्रोथ उम्मीद से कम रही है। ऐसे में आरबीआई के लिए सितंबर में आने वाली मोनेटरी पॉलिसी में ब्याज दरों में कटौती का दबाव बढ़ गया है।
हालांकि जीडीपी के ताजा आंकड़े जनवरी-मार्च 2015 तिमाही से बेहतर रहे हैं, तब जीडीपी ग्रोथ 6.7 फीसदी ही रही थी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश का ग्रोस वैल्यू एडिशन यानी जीवीए 7.1 फीसदी रहा है जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह दर 8.4 फीसदी थी। कृषि और संबंधित क्षेत्रों का जीवीए 2.6 फीसदी से घटकर 1.9 फीसदी रह गया है जबकि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का जीवीए 8.4 फीसदी से घटकर 7.2 फीसदी है। बिजली, गैस और जल आपूर्ति को सबसे ज्यादा झटका लगा है। इस क्षेत्र का ग्रोस वैल्यू एडिशन 10.1 फीसदी के मुकाबले सिर्फ 3.2 फीसदी रह गया है।
गौरतलब है कि सरकार ने पिछले साल से ही जीडीपी की तरह जीवीए के जरिये भी अर्थव्यवस्था की प्रगति को मापना शुरू किया है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, जीडीपी और जीवीए दोनों पैमाने पर अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त पड़ी है। चालू वित्त वर्ष की शुरुआत में मोदी सरकार ने जीडीपी की विकास दर 8.1 से 8.5 फीसदी के बीच रहने का अनुमान लगाया था। लेकिन पहली तिमाही के प्रदर्शन के आधार पर यह लक्ष्य हासिल करना काफी मुश्किल नजर आ रहा है।
मेन इन इंडिया जैसे बड़े अभियान के बावजूद मैन्युफैक्चरिंग और बुनियादी उद्याेगों की हालत सुधरती नजर नहीं आ रही है। फाइनेंशियल, रियल एस्टेट और प्रोफेशनल सर्विसेज की जीवीए ग्रोथ गत वर्ष 9.3 फीसदी के मुकाबले 8.9 फीसदी रह है। हालांकि, कंस्ट्रक्शन से जुड़ी गतिविधियों में 6.5 फीसदी के मुकाबले 6.9 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।