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आर्थिक वृद्धि के अनुमान में सरकार ने की बड़ी कटौती

अभी तक हर मंच पर देश के आर्थिक विकास के बड़े दावे करने वाली सरकार ने अब आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान में बड़ी कटौती की है। इसके लिए अब सरकार देश में कमजोर मानसून का हवाला दे रही है हालांकि हाल तक सरकार ये दावा कर रही थी कि कमजोर मानसून से आर्थिक विकास पर बहुत ज्यादा अंतर नहीं पड़ने वाला है।
आर्थिक वृद्धि के अनुमान में सरकार ने की बड़ी कटौती

सरकार ने आज 2015-16 के लिए अपना आर्थिक वृद्धि का अनुमान 8.1-8.5 प्रतिशत से घटाकर 7-7.5 प्रतिशत कर दिया। हालांकि सरकार ने कहा है कि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया जाएगा। सरकार का यह भी कहना है कि सार्वजनिक उपक्रम की हिस्सेदारी की बिक्री से होने वाली आय लक्ष्य से कम भले ही रहे पर इसकी भरपाई कर-राजस्व में वृद्धि से हो जाएगी।

सरकार की ओर से आज संसद में प्रस्तुत मध्यावधि आर्थिक विश्लेषण रपट में वित्त मंत्रालय ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.9 प्रतिशत तक सीमित रखने के लक्ष्य पर वह कायम है पर अगले साल इसे घटाकर 3.5 प्रतिशत करने के लक्ष्य की चुनौती कड़ी होगी क्योंकि वेतन और पेंशन वृद्धि के लिए सातवें वेतन आयोग के कार्यान्वयन से केंद्र के खजाने पर दबाव बढेगा।

रपट में कहा गया है, ‘जो चुनौतियां हैं उनके मद्देनजर हमारा अनुमान है कि इस साल वास्ताविक आर्थिक वृद्धि 7.7.5 प्रतिशत के दायरे में रहेगी। जबकि खुदरा मुद्रास्फीति आरबीआई के करीब छह प्रतिशत के लक्ष्य के दायरे में ही रहेगी। संवाददाताओं से बातचीत करते हुए मुख्य आर्थिक सलाहकार और इस समीक्षा के लेखक अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा, अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है लेकिन इस सुधार की शक्ति और दायरे का अभी बिल्कुल सुनिश्चित आकलन करना मुश्किल है। एक वजह है कि अर्थव्यवस्था मिले-जुले संकेत भेज रही है और दूसरे सकल घरेलू उत्पाद के जो आंकड़े आए हैं उसकी व्याख्या को लेकर अनिश्चितता है।

विश्लेषण के अनुसार आंकड़ों की अनिश्चितता इस बात में झलकती है कि अर्थव्यवस्था से मिले-जुले और कभी-कभी तो पेचीदे संकेत उभर रहे हैं। वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने हालांकि कहा, इस विश्लेषण से संकेत मिलता है कि सरकार का राजकोषीय और आर्थिक प्रदर्शन बेहतरीन रहा है। सार्वजनिक निवेश और निजी खपत आर्थिक वृद्धि को आगे बढ़ा रही है .. हम भारत में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं हालांकि अर्थव्यवस्था के कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें हम और बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।

सरकार ने फरवरी में 2015-16 के लिए 8.1-8.5 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान जाहिर किया था। इसे घटाकर 7-7.5 प्रतिशत कर दिया गया है। सरकार का कहना है कि ऐसा मुख्य तौर पर कम बारिश और वैश्विक घटनाक्रमों के कारण निर्यात में नरमी के कारण है। वित्त वर्ष 2015-16 में हुए कर संग्रह को उत्साहजनक करार देते हुए समीक्षा में कहा गया, उत्साहजनक प्रदर्शन बेहतर कर प्रशासन विशेष तौर पर अप्रत्यक्ष कर के संबंध में जाहिर हो सकता है। रपट में कहा गया है कि अप्रत्यक्ष कर का प्रदर्शन प्रत्यक्ष कर से बेहतर रहा है शायद इसलिए कि कारपोरेट मुनाफा उत्साहजनक नहीं रहा जिससे वर्तमान मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद में नरमी की झलक दिखती है। वित्त वर्ष 2016-17 के लिए समीक्षा में कहा गया कि जब तक कच्चा तेल और नहीं गिरता और करीब 50 अरब डॉलर प्रति बैरल के करीब बरकरार रहता है तो इस साल अर्थव्यवस्था में खपत को जो अतिरिक्त प्रोत्साहन करीब 1-1.5 प्रतिशत- मिला वह कम हो सकता है।

उन्होंने कहा, इसके मुकाबले यदि मानसून का प्रदर्शन अगले साल बेहतर रहता है तो ग्रामीण खपत अतिरिक्त जोर पड़ सकता है। कारपोरेट बैलेंसशीट में सुधार धीरे-धीरे ही होने की उम्मीद है इसलिए निजी निवेश वित्त वर्ष 2015-16 के मुकाबले बहुत अधिक नहीं होगा। एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का अनुमान है कि पूरे वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्धि 7.4 प्रतिशत रहेगी।

चालू खाते की स्थिति के बारे में समीक्षा में कहा गया है कि चालू खाते का घाटा कम हुआ है और यह सुकूनदेह स्तर (सकल घरेलू उत्पाद के करीब 1.2 प्रतिशत) पर है। चार दिसंबर 2015 तक विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 352.1 अरब डालर हो गया जो पर्याप्त नजर आता है। 

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