उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि अब इसमें धीमी लेकिन निरंतर वृद्धि दिखेगी। पिछले महीने के संकेतकों से स्पष्ट है कि निर्यात में गिरावट 0.79 प्रतिशत तक सीमित रह गयी। पर अब भी ऐसी स्थिति है जहां हमें निर्यात में गति लाने के लिए बहुत कुछ करना है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, यह ऐसा समय है जब मदद करनी होगी। चाहे वह ब्याज सहायता के तौर पर हो या फिर निर्यात पर किसी अन्य तरह के प्रोत्साहन के रूप में। हम खंडवार तरीके से इस पर विचार कर रहे हैं। वाणिज्य मंत्री की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि निर्यात मई महीने में लगातार 18वें महीने गिरा हालांकि यह 0.79 की गिरावट मामूली रह गयी। मई में निर्यात 22.17 अरब डालर रहा। इंजीनियरिंग और रत्न एवं जेवरात जैसे कई गैर तेल खंडों में निर्यात बढ़ा है। दिसंबर 2014 से अब तक मई महीने में निर्यात में सबसे कम गिरावट हुई।
सीतारमण ने कहा कि वह सतर्क हैं लेकिन, ‘मैं देख रही हूं कि निर्यात में गिरावट को थामा जा चुका है और यह धीरे धीरे सुधर रही है।’ चीनी निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क के बारे में सीतारमण ने कहा कि इस पहल से घरेलू बाजार में जिंस की उपलब्धता बढ़ाने में मदद मिलेगी। मंत्री ने कहा, हम नहीं चाहते कि चीनी के मूल्य में अटकलों के कारण कोई बढ़ोतरी हो। भारतीय बाजार में पर्याप्त चीनी उपलब्ध कराने के लिए यह पहल की गई है। सरकार ने चीनी निर्यात पर 20 प्रतिशत सीमा शुल्क लगाया है ताकि घरेलू आपूर्ति बढ़ाई जा सके और मूल्य पर अंकुश किया जा सके जो 40 रपये किलो के स्तर पर पहुंच गया है। भारत, ब्राजील के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक है। चीनी विपणन वर्ष 2015-16 में देश ने अब तक 16 लाख टन चीनी का निर्यात किया है। इस फैसले के बाद अब चीनी का और निर्यात बढने की संभावना नहीं लगती।
यह पूछने पर कि क्या सरकार इस्पात पर न्यूनतम आयात मूल्य (एमआईपी) की मियाद और बढ़ाने पर विचार कर रही है, उन्होंने कहा कि मंत्रालय समय आने पर इस मुद्दे पर बात करेगा। यह व्यवस्था अभी अगस्त के शुरू तक के लिए लागू है। एक अधिकारी के मुताबिक एमआईपी विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अनुकूल पहल नहीं है। भारत को डंपिंग रोधी शुल्क जैसी पहलों पर विचार करना चाहिए जो डब्ल्यूटीओ के अनुरूप है ताकि इस्पात समेत जिंसों के सस्ते आयात से निपटा जा सके।