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राफेल सौदा: रिलायंस और दसाल्ट ने संयुक्त उद्यम का गठन किया

देश में निजी रक्षा उद्योग के क्षेत्र में हुए एक बड़े सौदे के तहत अनिल अंबानी की अगुवाई वाले रिलायंस समूह और राफेल विनिर्माता दसाल्ट एविएशन ने संयुक्त उद्यम लगाने की घोषणा की है। यह उद्यम लड़ाकू जेट सौदे के तहत 22,000 करोड़ रुपये के ऑफसेट अनुबंध को पूरा करने में अहम भूमिका निभाएगा।
राफेल सौदा: रिलायंस और दसाल्ट ने संयुक्त उद्यम का गठन किया

भारत और फ्रांस द्वारा 23 सितंबर को 36 राफेल लड़ाकू जेट के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद रिलायंस समूह और दसाल्ट एविएशन ने एक संयुक्त उद्यम, दसाल्ट रिलायंस एयरोस्पेस गठित किए जाने की घोषणा की है। लड़ाकू विमान का यह सौदा 7.87 अरब यूरो (करीब 59,000 करोड़ रुपये) का है। दोनों कंपनियों के संयुक्त बयान के अनुसार ऑफसेट बाध्यताओं के क्रियान्वयन में संयुक्त उद्यम कंपनी दसाल्ट रिलायंस एयरोस्पेस प्रमुख कंपनी होगी। रिलायंस समूह रक्षा क्षेत्र में जनवरी 2015 में आया। ऐसे में यह समझौता समूह के लिए उत्साहजनक है। बयान के अनुसार, नया संयुक्त उद्यम दसाल्ट रिलायंस एयरोस्पेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया और कुशल भारत अभियान को गति देगा। साथ ही उच्च प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के साथ बड़े भारतीय कार्यक्रम का विकास करेगा जिससे पूरे एयरोस्पेस क्षेत्र को लाभ होगा। दसाल्ट और रिलायंस के बीच प्रस्तावित रणनीतिक भागीदारी में आईडीडीएम कार्यक्रम (स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित एवं विनिर्मित) के तहत परियोजनाओं के विकास पर जोर होगा। आईडीडीएम कार्यक्रम रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर की एक नई पहल है।

ऑफसेट अनुबंध के तहत संबंधित कंपनी को सौदे की राशि का एक निश्चित प्रतिशत लगाना पड़ता है। ऱाफेल समझौते में 50 प्रतिशत ऑफसेट बाध्यता है जो देश में अबतक का सबसे बड़ा ऑफसेट अनुबंध है। ऑफसेट समझौते का मुख्य बिंदु यह है कि 74 प्रतिशत भारत से आयात किया जाएगा। इसका मतलब है कि करीब 22,000 करोड़ रुपये का सीधा कारोबार होगा। इसमें प्रौद्योगिकी साझेदारी की भी बात है जिस पर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के साथ चर्चा हो रही है। राफेल सौदे में अन्य कंपनियां भी हैं जिसमें फ्रांस की एमबीडीए तथा थेल्स शामिल हैं। इसके अलावा सैफरान भी आफसेट बाध्यता का हिस्सा है।

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